चर्चा में क्यों?
- 30 जून, 2025 को हुल दिवस के अवसर पर राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के खिलाफ संघर्ष करने वाले संथाल योद्धाओं को श्रद्धांजलि अर्पित की।

हुल दिवस क्या है?
- हुल दिवस 30 जून को मनाया जाता है, जो 1855 में संथाल हुल (विद्रोह) की शुरुआत की वर्षगांठ है।
- यह भारत के स्वतंत्रता संग्राम की शुरुआती जनजातीय क्रांतियों में से एक थी।
संथाल विद्रोह (Hul Rebellion) की पृष्ठभूमि
- शुरुआत: 30 जून, 1855
- नेतृत्व: सिद्धू और कान्हू मुर्मू, साथ में उनकी बहनें फूलो और झानो
- कारण:
- ब्रिटिश शासन की दमनकारी नीतियाँ
- साहूकारों, ज़मींदारों और अंग्रेजों द्वारा आदिवासियों का आर्थिक, सामाजिक व सांस्कृतिक शोषण
- भूमि छीनने और आजीविका के साधनों से वंचित करने की नीतियाँ
संथाल विद्रोह की विशेषताएँ
- यह एक संगठित आदिवासी सशस्त्र विद्रोह था।
- संथालों ने अपने परंपरागत अस्त्र-शस्त्र से अंग्रेजों के खिलाफ मोर्चा खोला।
- यह विद्रोह झारखंड, बिहार, पश्चिम बंगाल के इलाकों में फैला।
- हज़ारों संथाल वीरों ने अपने प्राणों की आहुति दी।
इस विद्रोह का प्रभाव
यद्यपि ब्रिटिश सरकार ने इस विद्रोह को बेरहमी से कुचल दिया, लेकिन इसके प्रभाव स्वरूप बाद में निम्नलिखित कानून बनाए गए:
- 1876 - संथाल परगना काश्तकारी अधिनियम
- आदिवासी किसानों की भूमि को सुरक्षा देने के उद्देश्य से लागू।
- 1908 - छोटानागपुर काश्तकारी अधिनियम
- आदिवासियों की भूमि और सांस्कृतिक अधिकारों को संरक्षण देने वाला कानून।
हुल विद्रोह का ऐतिहासिक महत्व
- यह ब्रिटिश उपनिवेशवाद विरोधी संघर्ष का एक प्रारंभिक और प्रभावशाली उदाहरण था।
- इसने आदिवासी आत्मनिर्णय, सामाजिक न्याय और भूमि अधिकारों की भावना को जन्म दिया।
- जल, जंगल और ज़मीन पर अधिकार की मांग को राष्ट्रीय विमर्श में स्थान मिला।
- इसने आगे चलकर मुंडा विद्रोह (1899) और भील आंदोलन जैसे संघर्षों को प्रेरणा दी।
प्रश्न :-हुल दिवस किस दिन मनाया जाता है?
(a) 15 अगस्त
(b) 29 जून
(c) 30 जून
(d) 9 अगस्त
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