(प्रारंभिक परीक्षा: समसामयिक आर्थिक घटनाक्रम) (मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 3: भारतीय अर्थव्यवस्था तथा योजना, संसाधनों को जुटाने, प्रगति, विकास तथा रोज़गार से संबंधित विषय) |
संदर्भ
अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) ने अपनी वार्षिक समीक्षा 2025 में भारत के राष्ट्रीय लेखा आँकड़ों, जैसे- GDP व GVA को ‘C’ ग्रेड प्रदान किया है जो दूसरी सबसे निम्न श्रेणी है। यह ग्रेड बताता है कि भारत के आर्थिक आँकड़ों में कुछ महत्वपूर्ण कमियाँ हैं जो आर्थिक विश्लेषण और नीति-निर्माण को प्रभावित कर सकती हैं।
पृष्ठभूमि
- IMF प्रत्येक वर्ष सदस्य देशों की आर्थिक स्थितियों और आँकड़ों की गुणवत्ता का मूल्यांकन करता है।
- GDP, GVA, CPI, बाह्य व्यापार, सरकारी वित्त, बैंकिंग आँकड़े जैसे डेटा किसी भी देश की नीति-निर्माण एवं आर्थिक स्वास्थ्य का आधार होते हैं।
- भारत में वर्तमान GDP एवं CPI श्रृंखला का आधार वर्ष 2011-12 है जिसे लगभग 13 वर्ष हो चुके हैं।
- इसी पुरानी पद्धति एवं कवरेज की सीमाओं के कारण IMF ने भारत को निम्न ग्रेड दिया है।
IMF की मुख्य टिप्पणियाँ
- GDP आंकड़ों से जुड़े मुद्दे
- पुराना आधार वर्ष (2011-12): अर्थव्यवस्था में बड़े बदलाव होने के बावजूद GDP श्रृंखला का आधार वर्ष अद्यतन नहीं हुआ है।
- WPI पर निर्भरता: प्रोड्यूसर प्राइस इंडेक्स (PPI) की कमी के कारण GDP को डिफ्लेट करने में WPI का उपयोग किया जाता है जिससे वास्तविक GDP में विकृति आ सकती है।
- अनौपचारिक क्षेत्र का कम आकलन
- IMF के अनुसार भारत के राष्ट्रीय लेखों में अनौपचारिक क्षेत्र (जो 45–50% रोजगार देता है) का डाटा पर्याप्त रूप से नहीं आ पाता है।
- सांख्यिकीय तकनीकों की कमजोरी
- मौसमी समायोजन जैसी आधुनिक तकनीकों का सीमित उपयोग।
- निवेश (GFCF) का संस्थागत वर्गीकरण बहुत देर से प्रकाशित होता है।
- त्रैमासिक GDP में अधिक विस्तृत उप-विभाजन की आवश्यकता।
महंगाई (CPI) डाटा पर IMF टिप्पणी
- भारत के CPI डाटा को ‘B’ ग्रेड दिया गया।
- मुख्य समस्या
- आधार वर्ष एवं बास्केट (इंडेक्स में शामिल वस्तुएँ) दोनों पुराने (2011-12) हैं जबकि आज के उपभोक्ता व्यय पैटर्न काफी बदल चुके हैं, जैसे- ई-कॉमर्स, डिजिटल सेवाएँ, निजी स्वास्थ्य, शिक्षा इत्यादि किंतु CPI बास्केट इन्हें सही तरह से नहीं दर्शाती।
सरकार के वर्तमान प्रयास
- सांख्यिकी मंत्रालय GDP और CPI के आधार वर्ष को अद्यतन करने पर काम कर रहा है। नई श्रृंखला वर्ष 2026 तक जारी होने की संभावना है।
- सांख्यिकीय तरीकों को अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुरूप बनाने की योजना आगे बढ़ रही है।
IMF द्वारा चिन्हित प्रमुख चुनौतियाँ
- अनौपचारिक अर्थव्यवस्था का अपर्याप्त आकलन
- आंकड़ों के स्रोतों में सीमित विविधता
- पुराने बेस ईयर के कारण वास्तविक अर्थव्यवस्था का गलत चित्रण
- डेटा में समय-सीमा और सूक्ष्मता की कमी
- डिफ्लेटर्स के लिए WPI जैसी पुरानी पद्धतियों का उपयोग
- मौसमी समायोजन और आधुनिक सांख्यिकीय तकनीकों की अपर्याप्तता
महत्व
- सटीक GDP आँकड़े निवेशकों, अर्थशास्त्रियों, और सरकार के लिए बेहद आवश्यक हैं।
- गलत अनुमान नीति-निर्माण, सरकारी खर्च, गरीबी अनुमान, और कल्याणकारी योजनाओं पर गलत असर डाल सकते हैं।
- अंतरराष्ट्रीय संस्थानों की विश्वसनीयता रेटिंग भी डाटा की गुणवत्ता से प्रभावित होती है।
आगे के लिए सुझाव
- आधार वर्ष का त्वरित अद्यतन : GDP और CPI दोनों का आधार वर्ष 2023–24 जैसे हाल के वर्ष पर आधारित होना चाहिए।
- प्रोड्यूसर प्राइस इंडेक्स (PPI) का विकास : PPI के शुरू होने से GDP मापन अधिक सटीक होगा।
- अनौपचारिक क्षेत्र के मापन को मजबूत बनाना : नए सर्वेक्षण और डिजिटल डेटा से इसे बेहतर कैप्चर किया जा सकता है।
- मौसमी समायोजन अपनाना : अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुरूप त्रैमासिक डेटा को बेहतर किया जा सकता है।
- डेटा संग्रह की विश्वसनीयता बढ़ाना : उच्च गुणवत्ता वाले सर्वेक्षण, बेहतर सैंपलिंग, और डिजिटल रजिस्ट्रियों का उपयोग।
- पारदर्शिता और डेटा उपलब्धता सुधारना : डेटा को ओपन-एक्सेस और विस्तृत वर्गीकरण के साथ उपलब्ध कराया जाए।