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भारत को राष्ट्रीय अंतरिक्ष कानून की तत्काल आवश्यकता

(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 2: सरकारी नीतियों और विभिन्न क्षेत्रों में विकास के लिये हस्तक्षेप तथा उनके अभिकल्पन व कार्यान्वयन के कारण उत्पन्न विषय)

संदर्भ 

23 अगस्त को दूसरे ‘राष्ट्रीय अंतरिक्ष दिवस’ का आयोजन किया गया। वर्तमान में भारत का अंतरिक्ष क्षेत्र तेज़ी से विस्तार कर रहा है, भारतीय राष्ट्रीय अंतरिक्ष संवर्धन एवं प्राधिकरण केंद्र (IN-SPACe) की स्थापना और इसरो के अंतर्गत नई पहलों के बाद निजी भागीदारी बढ़ रही है। हालाँकि, एक व्यापक राष्ट्रीय अंतरिक्ष कानून का अभाव नियामक, कानूनी एवं व्यावसायिक चुनौतियाँ उत्पन्न करता है।

वैश्विक कानूनी आधार

  • वर्ष 1967 की बाह्य अंतरिक्ष संधि यह स्थापित करती है कि अंतरिक्ष समस्त मानव जाति का अधिकार क्षेत्र है। 
  • यह राष्ट्रीय विनियोग को प्रतिबंधित करने के साथ ही अंतरिक्ष में राष्ट्रीय गतिविधियों के लिए राज्यों (राष्ट्रों) पर ज़िम्मेदारी डालती है, चाहे वे सरकारी हों या निजी संस्थाएँ।
  • इसके सहयोगी समझौते अधिकारों, ज़िम्मेदारियों एवं दायित्व नियमों का बाध्यकारी ढाँचा तैयार करते हैं।
    • हालाँकि, ये संधियाँ स्वतः क्रियान्वित नहीं होती हैं। 
  • बाह्य अंतरिक्ष पर संयुक्त राष्ट्र की प्रमुख संधियाँ सभी अंतरिक्ष गतिविधियों, जैसे- बाह्य अंतरिक्ष के शांतिपूर्ण उपयोग से लेकर राज्यों की ज़िम्मेदारी एवं दायित्व तक के लिए आधारभूत सिद्धांत प्रदान करती हैं। 
  • राष्ट्रीय कानून वह माध्यम है जिसके द्वारा राष्ट्र इन सिद्धांतों को घरेलू स्तर पर लागू कर सकते हैं।
  • भारत ने प्रमुख संयुक्त राष्ट्र अंतरिक्ष संधियों का अनुसमर्थन कर दिया है किंतु वह अभी भी व्यापक राष्ट्रीय अंतरिक्ष कानून निर्माण की प्रक्रिया में है जो इन अंतर्राष्ट्रीय प्रतिबद्धताओं को पूरी तरह से क्रियान्वित करता है।

भारत के लिए राष्ट्रीय अंतरिक्ष कानून की आवश्यकता 

बाह्य अंतरिक्ष क्षेत्र में अन्वेषण 

बाह्य अंतरिक्ष के क्षेत्र में खोज, नवाचार एवं व्यावसायीकरण की दौड़ में स्थायी, न्यायसंगत व सुरक्षित अंतरिक्ष गतिविधियों के लिए ‘कानून’ लॉन्चपैड की तरह है। इसके बिना अंतरिक्ष महत्वाकांक्षाओं को बिना नेविगेशनल मानचित्र के आगे बढ़ने का खतरा है।

निजी क्षेत्र की बढ़ती भागीदारी

  • अंतरिक्ष तकनीक में स्टार्टअप्स एवं निवेशकों को प्रोत्साहित करने के लिए लाइसेंसिंग, दायित्व व बीमा के स्पष्ट नियम आवश्यक हैं।
  • वर्तमान ढाँचा (IN-SPACe दिशानिर्देश, सैटकॉम नीति) एकीकृत नहीं है।
    • IN-SPACe वर्तमान में बिना किसी औपचारिक कानूनी समर्थन के संचालित होता है, जिसको केंद्रीय नियामक निकाय के रूप में अपनी भूमिका मज़बूत करने के लिए स्पष्ट वैधानिक प्राधिकरण की आवश्यकता है।

अंतर्राष्ट्रीय प्रतिबद्धताएँ

  • भारत बाह्य अंतरिक्ष संधि (1967) का हस्ताक्षरकर्ता है जो अंतरिक्ष में अपनी गैर-सरकारी संस्थाओं की गतिविधियों के लिए राष्ट्रों को उत्तरदायी ठहराती है।
  • घरेलू कानून के बिना इसका अनुपालन एवं जवाबदेही कमज़ोर रहती है।

दायित्व एवं विवाद समाधान

  • दुर्घटनाओं (जैसे- उपग्रह टक्कर, मलबा) की स्थिति में दायित्व राज्य पर होता है।
  • ज़िम्मेदारी एवं मुआवज़ा आवंटित करने के लिए एक कानूनी तंत्र की आवश्यकता है।
  • बाध्यकारी सुरक्षा मानकों, अनिवार्य दुर्घटना जाँच प्रक्रियाओं, लागू करने योग्य अंतरिक्ष मलबा प्रबंधन कानूनों, अंतरिक्ष-संबंधी डाटा और उपग्रह संचार के लिए एकीकृत ढाँचों तथा हितों के टकराव को रोकने के लिए एक स्वतंत्र अपीलीय निकाय की आवश्यकता है।

व्यावसायिक अवसर

  • वैश्विक अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था वर्ष 2040 तक 1 ट्रिलियन डॉलर को पार कर जाने का अनुमान है।
  • एक स्पष्ट कानून प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) को आकर्षित करने के साथ ही अंतरिक्ष स्टार्टअप्स को मज़बूत करेगा और भारत को अमेरिका, यूरोपीय संघ एवं जापान के साथ प्रतिस्पर्धा करने में सक्षम बनाएगा।

रणनीतिक एवं सुरक्षा संबंधी चिंताएँ

  • अंतरिक्ष रक्षा एवं राष्ट्रीय सुरक्षा से तेज़ी से जुड़ रहा है।
  • एक कानून दोहरे उपयोग वाली तकनीकों को विनियमित कर सकता है और संप्रभुता की रक्षा कर सकता है।

भारत की वर्तमान स्थिति

  • अंतरिक्ष कानून के प्रति भारत का दृष्टिकोण एक व्यवस्थित एवं क्रमिक रणनीति को दर्शाता है। 
  • यह समझा जाना चाहिए कि राष्ट्रीय अंतरिक्ष कानून में दो प्रमुख परस्पर-निर्भरता पहलू शामिल हैं: 
    • वाणिज्यिक संस्थाओं द्वारा कक्षा में अंतरिक्ष संचालन को नियंत्रित करने वाले तकनीकी नियम। 
    • यह [बाह्य अंतरिक्ष संधि के] अनुच्छेद VI के तहत ‘प्राधिकरण’ प्रक्रिया का पहला पहलू है। भारतीय अंतरिक्ष विभाग इस मामले में सावधानीपूर्वक आगे बढ़ रहा है।
  • अंतरिक्ष संचालन की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए महत्वपूर्ण अंतरिक्ष उद्योग के लिए मानकों की सूची। 
  • भारतीय अंतरिक्ष नीति उन गतिविधियों का विवरण प्रदान करती है जिन्हें गैर-सरकारी संस्थाओं को करने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है। 
  • वर्ष 2024 में अंतरिक्ष नीति को लागू करने के लिए प्राधिकरण हेतु IN-SPACe मानदंड प्रक्रिया दिशानिर्देश।
  • हालाँकि, व्यापक नियामक ढाँचा अभी भी लंबित है क्योंकि अंतरिक्ष गतिविधियाँ विधेयक, 2017 (मसौदा) निरस्त हो गया है।
  • सरकार एक नए अंतरिक्ष गतिविधि विधेयक पर काम कर रही है किंतु इसे अभी तक संसद में प्रस्तुत नहीं किया गया है।

राष्ट्रीय अंतरिक्ष कानून का महत्त्व 

  • राष्ट्रीय अंतरिक्ष कानून सरकारी एवं निजी दोनों पक्षों के लिए पूर्वानुमान, कानूनी स्पष्टता और एक स्थिर नियामक वातावरण प्रदान करता है।
  • यह अंतर्राष्ट्रीय प्रतिबद्धताओं को क्रियान्वित करने के साथ ही प्रभावी निगरानी को सक्षम बनाता है। 
  • उद्योग के लिए यह स्पष्टता निवेश और नवाचार को बढ़ावा देती है। 
  • नियामकों के लिए यह लागू वैश्विक ढाँचे के अनुरूप अंतरिक्ष गतिविधियों को जिम्मेदारी से प्रबंधित करने के लिए उपकरण प्रदान करता है।
  • जापान, लक्ज़मबर्ग एवं अमेरिका ने अंतरिक्ष गतिविधियों और संसाधनों पर लाइसेंसिंग, देयता कवरेज व वाणिज्यिक अधिकारों को सुगम बनाने के लिए राष्ट्रीय अंतरिक्ष कानून निर्मित किए हैं। 

आगे की राह

  • एक व्यापक राष्ट्रीय अंतरिक्ष कानून बनाने की आवश्यकता है जिसमें शामिल हों:
    • निजी ऑपरेटरों का लाइसेंस
    • दायित्व, बीमा एवं विवाद निपटान
    • बौद्धिक संपदा अधिकार और डाटा साझाकरण
    • अंतरिक्ष मलबा प्रबंधन के लिए पर्यावरणीय मानदंड
    • स्पष्ट नियामक निश्चितता के साथ सार्वजनिक-निजी सहयोग को मज़बूत करना
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