भारत की ऊर्जा सुरक्षा को मज़बूत करने और जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता कम करने के प्रयास में प्रधानमंत्री मोदी ने असम के गोलाघाट ज़िले में भारत का तथा विश्व का पहला बांस-आधारित एथेनॉल प्लांट का उद्घाटन 14 सितंबर, 2025 को किया।
प्रथम एथेनॉल प्लांट के बारे में
- इसे असम बायो-एथेनॉल प्राइवेट लिमिटेड (ABEL) द्वारा नुमालीगढ़ रिफाइनरी लिमिटेड (NRL), फिनलैंड की Fortum और Chempolis OY के संयुक्त उपक्रम (Joint Venture) में बनाया गया है।
- यह शून्य-अपशिष्ट (Zero-Waste) सुविधा है, जहां बांस से न केवल एथेनॉल बल्कि एसिटिक एसिड एवं फूड-ग्रेड कार्बन डाइऑक्साइड जैसे अन्य सह-उत्पाद (By-products) भी बनेंगे।
- वार्षिक पाँच लाख टन हरित बांस असम, अरुणाचल प्रदेश सहित चार पूर्वोत्तर राज्यों से मंगाया जाएगा।
उद्देश्य
- ऊर्जा आत्मनिर्भरता : देश में एथेनॉल उत्पादन बढ़ाना और आयात पर खर्च घटाना
- स्वच्छ ऊर्जा : हरित ऊर्जा को बढ़ावा देकर कार्बन उत्सर्जन कम करना
- ग्रामीण विकास : किसानों एवं आदिवासी समुदायों को आर्थिक लाभ पहुँचाना
- औद्योगिक वृद्धि : पूर्वोत्तर भारत को नई औद्योगिक पहचान दिलाना
मुख्य विशेषताएँ
- क्षमता : प्रतिवर्ष 48,900 मीट्रिक टन एथेनॉल उत्पादन
- सह-उत्पाद : 11,000 टन एसिटिक एसिड, 19,000 टन फर्फुराल और 31,000 टन फूड-ग्रेड CO₂
- निवेश : लगभग ₹5,000 करोड़ की लागत से निर्मित
- आपूर्ति शृंखला : बांस की सतत (Sustainable) आपूर्ति के लिए किसानों के साथ अनुबंध
- पर्यावरण हितैषी: कोई अपशिष्ट शेष नहीं, सभी उप-उत्पाद उपयोग में लाए जाएंगे।
लाभ
- आर्थिक लाभ : असम की ग्रामीण अर्थव्यवस्था को लगभग ₹200 करोड़ का प्रतिवर्ष बूस्ट
- रोज़गार सृजन : किसानों, परिवहन एवं उद्योग क्षेत्र में हज़ारों नौकरियों का सृजन
- ऊर्जा सुरक्षा : पेट्रोल में 20% एथेनॉल ब्लेंडिंग के राष्ट्रीय लक्ष्य को पूरा करने में सहायक
- पर्यावरण संरक्षण : कार्बन उत्सर्जन में कमी और जलवायु परिवर्तन के खतरे को कम करना
- क्षेत्रीय विकास : पूर्वोत्तर राज्यों में औद्योगिक निवेश में वृद्धि और बुनियादी ढाँचा (Infrastructure) सुधार