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भारत की आंतरिक एवं अंतर्राष्ट्रीय प्रवासी आबादी: एक गहन विश्लेषण

(प्रारंभिक परीक्षा: समसामयिक घटनाक्रम)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 1 व 2: भारतीय समाज की विशेषताएँ; प्रवासी भारतीय; शहरीकरण, उनकी समस्याएँ और उनके रक्षोपाय)

संदर्भ

भारत में प्रवास का इतिहास लंबा एवं विविध है जिसमें लोग रोजगार, व्यापार व सांस्कृतिक कारणों से देश और विदेश में स्थानांतरित होते रहे हैं। वर्ष 2001-02 में भारतीय प्रवासी समुदाय पर उच्च-स्तरीय समिति की रिपोर्ट के बाद से ‘प्रवासी’ (डायस्पोरा) शब्द नीति और सामाजिक चर्चाओं में प्रचलित हुआ है। प्रवासी अनुभव केवल अंतर्राष्ट्रीय सीमाओं तक सीमित नहीं है; भारत जैसे सांस्कृतिक एवं भाषाई विविधता वाले देश में आंतरिक प्रवास भी ‘प्रवासी’ अनुभव को जन्म देता है।

प्रवासी (डायस्पोरा) का अर्थ

  • परिभाषा: प्रवासी उन लोगों को कहते हैं जो अपनी मूल संस्कृति, भाषा या पहचान को बनाए रखते हुए किसी अन्य क्षेत्र या देश में रहते हैं।
  • आंतरिक प्रवासी: देश के भीतर एक सांस्कृतिक या भाषाई क्षेत्र से दूसरे में स्थानांतरण, जैसे- ओडिशा के मजदूरों का गुजरात में ‘विदेश’ कहलाना।
  • अंतर्राष्ट्रीय प्रवासी: विदेशों में बसने वाले भारतीय, जैसे- अमेरिका में तेलुगु समुदाय या मॉरीशस में भारतीय मूल के लोग।
  • विशेषता: प्रवासी समुदाय अपनी भाषा, संस्कृति एवं परंपराओं को बनाए रखने के लिए संगठन बनाते हैं, जैसे- बंगाली एसोसिएशन या गुजराती समाज।

भारत की आंतरिक प्रवासी आबादी

  • आकार: हाल के एक अध्ययन के अनुसार, भारत की आंतरिक प्रवासी आबादी 100 मिलियन (10 करोड़) से अधिक है जो अंतर्राष्ट्रीय प्रवासी आबादी (30 मिलियन) से तीन गुना अधिक है।
  • उदाहरण:
    • मदुरै में गुजराती: तमिलनाडु के मदुरै जिले में 60,000 से अधिक गुजराती भाषी लोग हैं, जो पुराने व्यापारी और बुनकर समुदायों से संबंधित हैं।
    • महाराष्ट्र और पश्चिम बंगाल में तेलुगु: ये समुदाय रोजगार और व्यापार के लिए स्थानांतरित हुए।
    • शहरों में फैलाव: भारत के दस सबसे बड़े शहरों में एक-तिहाई आंतरिक प्रवासी रहते हैं।
  • सांस्कृतिक प्रभाव: बंगाली समुदाय दुर्गा पूजा, मराठी मंडल गणपति उत्सव और गुजराती समाज नवरात्रि जैसे आयोजनों के माध्यम से अपनी पहचान बनाए रखते हैं।
  • प्राचीन और आधुनिक प्रवास: गुजरात से तमिलनाडु में सैकड़ों वर्ष पहले बुनकरों और व्यापारियों का प्रवास ‘पुराना’ प्रवासी समुदाय है, जबकि कर्नाटक और महाराष्ट्र में हाल का प्रवास ‘नया’ प्रवासी समुदाय है।

आतंरिक प्रवास के कारण

  • आर्थिक अवसर: रोजगार की तलाश में लोग शहरों या अन्य राज्यों में जाते हैं, जैसे- ओडिया मजदूरों का गुजरात में निर्माण और कपड़ा उद्योगों में प्रवास।
  • शिक्षा और व्यापार: उच्च शिक्षा या व्यापार के लिए लोग बड़े शहरों, जैसे- मुंबई, दिल्ली या बेंगलुरु में बसते हैं।
  • सांस्कृतिक और ऐतिहासिक संबंध: पुराने प्रवास, जैसे- 19वीं सदी में व्यापारियों का तमिलनाडु में बसना।
  • आंतरिक और अंतर्राष्ट्रीय प्रवास का संबंध: मुंबई में गुजराती और मलयाली प्रवासी समुदायों ने सूरत के हीरा व्यापार व पश्चिम एशिया के तेल उद्योगों में प्रवास को बढ़ावा दिया।

अंतर्राष्ट्रीय प्रवासी आबादी

  • आकार: वर्ष 2001-02 में 20 मिलियन से बढ़कर वर्ष 2025 में 30 मिलियन से अधिक।
  • प्रमुख समुदाय:
    • पंजाबी: 4.3 मिलियन (12.4% पंजाबी भाषी), कनाडा, ब्रिटेन एवं अमेरिका में
    • मलयाली: 4.6 मिलियन (12.2%), खाड़ी देशों में
    • तमिल: 8.4 मिलियन (11.5%), श्रीलंका, मलेशिया एवं सिंगापुर में
    • हिंदी: 39.9 मिलियन (7.5%), विश्व स्तर पर सबसे बड़ा प्रवासी समूह, जिसमें भोजपुरी व मारवाड़ी शामिल।
  • सांस्कृतिक संगठन: विश्व भर में गुजराती समाज (120 संगठन), बंगाली एसोसिएशन और तमिल संगम अपनी संस्कृति को बढ़ावा देते हैं।
  • उदाहरण: मॉरीशस में 19वीं सदी के भारतीय प्रवासियों का वंशज समुदाय आज वहाँ की आबादी का बड़ा हिस्सा है।

हालिया अध्ययन के बारे में

  • स्रोत: चिन्मय तुम्बे (IIM अहमदाबाद) द्वारा ‘सोशियोलॉजिकल बुलेटिन’ जर्नल में प्रकाशित शोध पत्र।
  • शीर्षक: भारत की आंतरिक एवं अंतर्राष्ट्रीय प्रवासी आबादी
  • प्रक्रिया:
    • आंतरिक प्रवासी: हाल के भाषा जनगणना डाटा का उपयोग, राज्य सीमाओं पर सीमावर्ती जिलों को छोड़कर।
    • अंतर्राष्ट्रीय प्रवासी: अन्य देशों की भाषा जनगणना और अन्य स्रोतों से अनुमान।
  • विश्लेषण: भारत की प्रमुख भाषाओं (पंजाबी, मलयाली, तमिल, आदि) के आधार पर प्रवासी आबादी का अनुमान लगाया गया।

अध्ययन के निष्कर्ष

  • आकार: भारत की कुल प्रवासी आबादी 100 मिलियन से अधिक है जिसमें आंतरिक प्रवासी (70 मिलियन से अधिक) अंतर्राष्ट्रीय प्रवासी (30 मिलियन) से कहीं अधिक हैं।
  • फैलाव:
    • पंजाबी, मलयाली एवं तमिल भाषी समुदाय सर्वाधिक फैले हुए हैं (10% से अधिक)।
    • हिंदी भाषी प्रवासी सबसे बड़ा समूह (39.9 मिलियन) है किंतु उनकी कुल आबादी के अनुपात में कम फैले हुए (7.5%)।
    • मराठी, कन्नड़ एवं बंगाली कम फैले हुए हैं।
  • आंतरिक बनाम अंतर्राष्ट्रीय: मलयाली और तमिल को छोड़कर सभी प्रमुख भाषा समूहों की आंतरिक प्रवासी आबादी अंतर्राष्ट्रीय से बड़ी है।
  • शहरी प्रभाव: भारत के दस सबसे बड़े शहरों में एक-तिहाई आंतरिक प्रवासी रहते हैं।
  • सांस्कृतिक प्रभाव: प्रवासी समुदाय अपनी परंपराओं (दुर्गा पूजा, गणपति उत्सव) और भोजन को देश एवं विदेश में प्रसारित करते हैं।

चुनौतियाँ

  • एकीकरण: पहली एवं दूसरी पीढ़ी के प्रवासियों के बीच सांस्कृतिक व भाषाई एकीकरण की चुनौती है, जैसा कि झुम्पा लहिरी के उपन्यास द नेमसेक में दर्शाया गया।
  • भाषा संरक्षण: प्रवासी समुदायों में मूल भाषा का धीरे-धीरे लुप्त होना, विशेष रूप से महानगरीय क्षेत्रों में।
  • अध्ययन की कमी: अंतर्राष्ट्रीय प्रवासी पर 2,000 से अधिक अध्ययन हैं किंतु आंतरिक प्रवासी पर शोध बहुत कम है।
  • सामाजिक तनाव: स्थानीय एवं प्रवासी समुदायों के बीच सांस्कृतिक व आर्थिक मतभेदों के कारण तनाव है।
  • नीतिगत सीमाएँ: प्रवासी नीतियाँ मुख्य रूप से अंतर्राष्ट्रीय प्रवास पर केंद्रित हैं और आंतरिक प्रवास को कम ध्यान मिलता है।

आगे की राह

  • आंतरिक प्रवास पर शोध: आंतरिक प्रवासी समुदायों पर अधिक अध्ययन एवं डाटा संग्रह की आवश्यकता
  • नीतिगत ढांचा: केंद्र एवं राज्य सरकारों को आंतरिक प्रवासियों के लिए आवास, शिक्षा व रोजगार नीतियाँ बनाने की आवश्यकता 
  • सांस्कृतिक एकीकरण: स्थानीय भाषाओं को सीखने और प्रवासी संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए स्कूलों एवं सामुदायिक कार्यक्रमों का समर्थन
  • प्रवासी संगठन: पहचान बनाए रखने के लिए बंगाली, गुजराती एवं मराठी संगठनों जैसे समूहों को अधिक मजबूत करना
  • आर्थिक समर्थन: आंतरिक एवं अंतर्राष्ट्रीय प्रवासियों के लिए कौशल विकास व रोजगार के अवसर बढ़ाना
  • वैश्विक और स्थानीय संबंध: आंतरिक प्रवास को अंतर्राष्ट्रीय प्रवास के ट्रिगर के रूप में मान्यता देना और दोनों के बीच नीतिगत समन्वय
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