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सिंधु जल संधि विवाद

(प्रारंभिक परीक्षा : राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व की सामयिक घटनाएँ)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 2: द्विपक्षीय, क्षेत्रीय और वैश्विक समूह तथा भारत से संबंधित और/अथवा भारत के हितों को प्रभावित करने वाले करार)

संदर्भ 

  • पाकिस्तान एवं भारत के बीच सिंधु जल संधि को लेकर विवाद न केवल नदियों के पानी के प्रयोग को लेकर है, बल्कि विवादों को सुलझाने के लिए विशेषज्ञ या संस्थानों की नियुक्ति और संधि की शर्तें बदलने को लेकर भी हैं।
  • सिंधु जल संधि से संबंधित दो मुद्दे सुलझाने के लिए वर्ष 2022 में विश्व बैंक ने एक निष्पक्ष विशेषज्ञ ‘माइकल लीनो’ को चुना था। उनकी रिपोर्ट में कहा गया है कि वे (विशेषज्ञ) इस संधि के तकनीकी मुद्दों को सुलझाने में सक्षम है। 
    • ये मुद्दे सिंधु जल संधि के अंतर्गत शामिल नदियों पर निर्मित जलविद्युत परियोजनाओं (किशनगंगा एवं रतले जलविद्युत परियोजना) के डिजाइन पर भारत व पाकिस्तान के बीच मतभेदों से संबंधित हैं।
  • भारत ने इस निर्णय का स्वागत किया है क्योंकि यह उसके इस दृष्टिकोण को मान्य करता है कि उपरोक्त परियोजनाओं से संबंधित तकनीकी मुद्दे IWT के तहत उनकी क्षमता के अंतर्गत आते हैं।

सिंधु जल संधि (IWT) के बारे में 

  • हस्ताक्षरित तिथि : 19 सितंबर, 1960
    • भारतीय प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब खान द्वारा इस पर हस्ताक्षर किए गए।
  • मध्यस्थता : विश्व बैंक द्वारा
  • उद्देश्य : दोनों देशों के बीच उनके भू-राजनीतिक तनावों के बावजूद जल संसाधनों के शांतिपूर्ण बंटवारे एवं उपयोग को सुनिश्चित करना 
  • जल आवंटन :
    • भारत : तीन पूर्वी नदियों (रावी, ब्यास, सतलुज) पर नियंत्रण
    • पाकिस्तान : तीन पश्चिमी नदियों (सिंधु, झेलम, चिनाब) पर नियंत्रण
      • पश्चिमी नदियों पर भारत को सीमित उपयोग (कृषि, गैर-उपभोग्य उद्देश्य एवं जलविद्युत उत्पादन) की अनुमति है।

बांधों के निर्माण से हालिया विवाद की शुरूआत

  • वर्ष 2007 में भारत ने झेलम नदी पर किशनगंगा बांध के निर्माण की शुरुआत की। पाकिस्तान ने वर्ष 2010 में विश्व बैंक से मध्यस्थता न्यायालय (Court of Arbitration) बना कर इस मुद्दे को सुलझाने की मांग की।  
  • वर्ष 2018 में भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कश्मीर में किशनगंगा बांध का उद्घाटन किया। साथ ही, भारत ने चिनाब नदी पर रतले पनबिजली बांध भी बनाना शुरू कर दिया।

विवाद समाधान तंत्र

  • स्थायी सिंधु आयोग (PIC) : भारत एवं पाकिस्तान दोनों के प्रतिनिधियों को शामिल करते हुए वार्ता के लिए पहला मंच
    • पाकिस्तान मुद्दों को सुलझाने के लिए सबसे पहले मध्यस्थता न्यायालय जाना चाहता है। भारत का पक्ष है की पहले मुद्दे को स्थायी सिंधु आयोग (PIC) के पास सुलझाने की कोशिश होनी चाहिए क्योंकि यह संधि के तहत गठित है। 
  • निष्पक्ष विशेषज्ञ (NE) : तकनीकी मुद्दों के लिए विश्व बैंक द्वारा नियुक्त
  • मध्यस्थता न्यायालय (CoA) : पहले दो तरीकों का उपयोग करने के बाद अनसुलझे मुद्दों के लिए
    • विवादों को पहले PIC द्वारा हल करने का प्रयास किया जाना चाहिए। यदि वे सफल नहीं होते हैं, तो मामले को NE द्वारा देखा जाएगा। यदि यह भी विफल रहता है तो मामले का निर्णय CoA द्वारा किया जाएगा।

भविष्य की संभावनाएँ

  • अनुकूलन की आवश्यकता : वर्तमान भू-राजनीतिक, पर्यावरणीय एवं तकनीकी परिदृश्य में सिंधु जल संधि (IWT) के प्रावधानों के पुनर्मूल्यांकन की आवश्यकता है।
    • विशेषज्ञ जलवायु परिवर्तन अनुकूलन को शामिल करने, पर्यावरणीय प्रवाह सुनिश्चित करने तथा भारत एवं पाकिस्तान के बीच डाटा पारदर्शिता में सुधार करने का सुझाव देते हैं।
  • भारत की नई अवसंरचना परियोजनाएँ : भारत ने अपने हिस्से की नदियों के जल का पूर्ण उपयोग करने और नई अवसंरचना विकसित करने के लिए पूर्वी नदियों से जल को मोड़ने की योजना बनाई है।
  • पाकिस्तान की निर्भरता : पाकिस्तान अपनी कृषि के लिए सिंधु नदी प्रणाली पर अत्यधिक निर्भर है जो उसकी अर्थव्यवस्था की रीढ़ है। 
    • IWT में किसी भी तरह का बदलाव पाकिस्तान को गंभीर रूप से प्रभावित करेगा।
  • IWT का अनिश्चित भविष्य : दोनों देशों के मध्य बढ़ते तनाव और पर्यावरणीय चिंताओं के बीच अपने जल अधिकारों की सुरक्षा करने के कारण ये चिंता है।
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