(प्रारंभिक परीक्षा: राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व की सामयिक घटनाएँ) (मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 2: भारत एवं इसके पड़ोसी- संबंध; द्विपक्षीय, क्षेत्रीय व वैश्विक समूह और भारत से संबंधित और/अथवा भारत के हितों को प्रभावित करने वाले करार) |
संदर्भ
बांग्लादेश इन दिनों गहरे राजनीतिक संकट और व्यापक हिंसा के दौर से गुजर रहा है। इसी पृष्ठभूमि में बांग्लादेश राष्ट्रवादी पार्टी (BNP) के कार्यवाहक अध्यक्ष तारिक रहमान की 17 वर्षों के निर्वासन के बाद वापसी ने देश की राजनीति को एक नया मोड़ दे दिया है। हालाँकि, इस घटनाक्रम के साथ-साथ भारत-विरोधी बयानबाजी में आई तीव्रता ने न केवल आंतरिक स्थिरता, बल्कि क्षेत्रीय कूटनीति के लिए भी गंभीर प्रश्न खड़े कर दिए हैं।
स्वतःस्फूर्त विद्रोह या अन्य कारक
- जुलाई-अगस्त 2024 में शुरू हुई अशांति को प्राय: जन असंतोष की अचानक अभिव्यक्ति बताया गया किंतु समय के साथ सामने आए तथ्यों से संकेत मिलता है कि यह एक सुनियोजित सत्ता परिवर्तन अभियान था। वर्तमान में बांग्लादेश के मुख्य सलाहकार मुहम्मद यूनुस ने सितंबर 2024 में सार्वजनिक रूप से स्वीकार किया कि इस आंदोलन के पीछे एक संगठित रणनीति काम कर रही थी।
- इस प्रक्रिया में पाकिस्तान के साथ ऐतिहासिक गठबंधन वाला ‘जमात-ए-इस्लामी’ एक प्रभावशाली शक्ति के रूप में उभरी है। आज यह संगठन न केवल सड़कों पर बल्कि प्रशासनिक ढाँचे के भीतर भी अपना प्रभाव बढ़ाता दिख रहा है।
1971 की विरासत पर हमला
- मौजूदा उथल-पुथल का एक केंद्रीय लक्ष्य 1971 के मुक्ति संग्राम के बाद बनी राजनीतिक-सांस्कृतिक विरासत को कमजोर करना रहा है।
- 5 अगस्त, 2024 के बाद से अवामी लीग और मुक्ति युद्ध से जुड़े प्रतीकों, स्मारकों एवं संस्थानों को व्यवस्थित रूप से निशाना बनाया गया। यह केवल राजनीतिक विरोध नहीं है बल्कि राष्ट्रीय स्मृति को पुनर्परिभाषित करने का प्रयास प्रतीत होता है।
अल्पसंख्यकों पर बढ़ता दबाव
- इस राजनीतिक बदलाव का एक गंभीर पहलू अल्पसंख्यकों के खिलाफ बढ़ती हिंसा और खुले इस्लामीकरण की प्रवृत्ति है। वस्तुतः हिंदू, बौद्ध, ईसाई एवं अहमदिया समुदायों पर हमलों, संपत्ति नष्ट करने, भूमि कब्जाने और यहाँ तक कि हत्याओं के आरोप सामने आए हैं।
भीड़तंत्र एवं मीडिया पर शिकंजा
- भीड़तंत्र: मांगें मनवाने के लिए भीड़ द्वारा सरकारी कार्यालयों, अधिकारियों एवं न्यायाधीशों को घेरना आम होता जा रहा है।
- संस्थागत कब्जा: नौकरशाही व शिक्षा संस्थानों में जमात-समर्थक लोगों की नियुक्तियाँ तेज हो गई हैं।
- मीडिया दमन: स्वतंत्र पत्रकारिता पर दबाव बढ़ा है। प्रोथोम आलो और द डेली स्टार जैसे प्रतिष्ठित अखबारों के कार्यालयों पर हमले हुए हैं तथा कुछ पत्रकारों को बिना मुकदमे के हिरासत में लिया गया है।
आर्थिक गिरावट एवं भारत से दूरी
- राजनीतिक अस्थिरता का सीधा प्रभाव अर्थव्यवस्था पर पड़ा है। बांग्लादेश विगत 15 वर्षों में औसतन 6.5-7% की दर से बढ़ रहा था, वहाँ अब तस्वीर बदल चुकी है—
- विकास दर में गिरावट आई है
- कारखाने बंद हो रहे हैं
- बेरोजगारी बढ़ रही है
- निजी निवेश ठप है और महंगाई उच्च स्तर पर है।
- इसका एक बड़ा कारण भारत के साथ दशकों से चले आ रहे आर्थिक एवं व्यापारिक सहयोग में व्यवधान है जो शेख हसीना के शासनकाल की पहचान था।
तारिक रहमान की वापसी: उम्मीद या भ्रम
- 17 वर्ष बाद तारिक रहमान की घर वापसी ने बी.एन.पी. समर्थकों में उत्साह पैदा किया है। बीमार मां के प्रति सहानुभूति और निर्वासन की कहानी से उन्हें जन समर्थन मिलने की संभावना है। हालाँकि, यथार्थ कहीं इससे अधिक जटिल है-
- अवामी लीग को चुनावी प्रक्रिया से बाहर रखने के कारण कोई भी चुनाव स्वतंत्र एवं निष्पक्ष नहीं दिखता है।
- बी.एन.पी. स्वयं आंतरिक रूप से खंडित है।
- जमात-ए-इस्लामी की शक्ति लगातार बढ़ रही है।
- इसलिए रहमान की वापसी प्रतीकात्मक रूप से महत्वपूर्ण होने के बावजूद संरचनात्मक वास्तविकताएँ उनके लिए त्वरित राजनीतिक बदलाव की गुंजाइश को सीमित करती हैं।
भारत-विरोधी भावना: पुरानी धारा, नया उभार
- बांग्लादेश में भारत-विरोध कोई नई बात नहीं है। 1971 में भी आबादी का एक हिस्सा भारत की भूमिका का विरोधी था। यह अंतर्धारा दशकों से राजनीति के साथ-साथ बहती रही है।
- इसके बावजूद भारत-बांग्लादेश संबंध व्यापार, शिक्षा, चिकित्सा, पर्यटन एवं लोगों के बीच संपर्क पर आधारित रहे हैं जिसने राजनीति से परे गहरे आपसी हित निर्मित किए।
भारत के लिए रणनीतिक प्राथमिकताएँ
- बांग्लादेशी जनता को भरोसा देना : भारत को केवल सरकारों के बजाय आम जनता तक सद्भावना का संदेश पहुंचाना होगा। सहायता, व्यापार एवं संवाद निरंतर जारी रखना होगा। हाल ही में 50,000 मीट्रिक टन चावल बांग्लादेश को निर्यात किया जाना इसी दिशा में महत्वपूर्ण कदम है।
- समावेशी चुनावों पर जोर : नई दिल्ली को यह स्पष्ट करना चाहिए कि दीर्घकालिक स्थिरता केवल स्वतंत्र, निष्पक्ष एवं समावेशी चुनावों से ही संभव है जिनमें अवामी लीग सहित सभी दलों की भागीदारी हो।
भारत-बांग्लादेश संबंध का महत्त्व
- बांग्लादेश के लिए भारत आर्थिक विकास का एक केंद्रीय स्तंभ रहा है और भौगोलिक निकटता, प्रतिस्पर्धी कीमतें एवं ऐतिहासिक संबंध इसे स्वाभाविक साझेदार बनाते हैं।
- पाकिस्तान, चीन या तुर्की के साथ बढ़ते संपर्क भी भारत द्वारा दिए जाने वाले समर्थन की गति, पैमाने व गहराई की बराबरी नहीं कर सकते हैं।
भारत की सुरक्षा से जुड़ा सवाल
- भारत के लिए बांग्लादेश का महत्व केवल कूटनीतिक नहीं है बल्कि सुरक्षा से सीधे जुड़ा है। वस्तुतः 4,000 किमी. से अधिक की साझा सीमा और समुद्री संपर्क के कारण सहयोग अनिवार्य है।
- अतीत में पाकिस्तान समर्थित आतंकी नेटवर्क एवं पूर्वोत्तर के उग्रवादी समूह बांग्लादेशी जमीन का इस्तेमाल करते रहे हैं जिसे रोकने में हसीना सरकार ने अहम भूमिका निभाई थी।
अगस्त 2024 के बाद बढ़ते जोखिम
अगस्त 2024 के बाद से यह आशंका बढ़ी है कि पाकिस्तान सरकार एवं सेना बांग्लादेश के साथ 1971 से पहले जैसे सैन्य-रणनीतिक संबंध फिर से स्थापित करना चाहती हैं जिनमें भारत-बांग्लादेश सीमा के पास गहन सैन्य मौजूदगी भी शामिल हो सकती है। यह परिदृश्य क्षेत्रीय सुरक्षा के लिए गंभीर चिंता का विषय बन गया है।
निष्कर्ष
बांग्लादेश की मौजूदा उथल-पुथल केवल एक आंतरिक राजनीतिक संकट नहीं है। इसके दूरगामी प्रभाव भारत-बांग्लादेश संबंधों के साथ-साथ क्षेत्रीय स्थिरता व दक्षिण एशिया की सुरक्षा संरचना तक विस्तृत हैं। यद्यपि भारत के लिए संतुलन, संवाद एवं दीर्घकालिक रणनीतिक दृष्टि अब पहले से कहीं अधिक आवश्यक हो गई है।