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ईरान-रूस परमाणु समझौता

(प्रारंभिक परीक्षा: समसामयिक अंतर्राष्ट्रीय घटनाक्रम)

सन्दर्भ

हाल ही में ईरान और रूस ने 25 अरब डॉलर का एक बड़ा परमाणु समझौता किया है। इस समझौते के तहत रूस, ईरान में चार नए परमाणु ऊर्जा संयंत्रों का निर्माण करेगा। यह कदम ऐसे समय पर उठाया गया है जब ईरान पश्चिमी देशों के प्रतिबंधों का सामना कर रहा है और ऊर्जा सुरक्षा उसकी प्रमुख आवश्यकता है।

क्या है ईरान-रूस परमाणु समझौता

  • यह समझौता रूस की रोसाटॉम (Rosatom) कंपनी और ईरान के बीच हुआ है।
  • इसके तहत ईरान के दक्षिण-पूर्वी होरमुज़गान प्रांत (सिरिक क्षेत्र) में 500 हेक्टेयर क्षेत्रफल में चार जेनरेशन-III परमाणु संयंत्र स्थापित किए जाएंगे।
  • इन संयंत्रों से 5,000 मेगावाट बिजली का उत्पादन होगा।
  • समझौते के साथ ही दोनों देशों ने भविष्य में 8 अतिरिक्त परमाणु संयंत्र बनाने की योजना भी जताई है।
  • ईरान का लक्ष्य है कि वर्ष 2040 तक उसकी परमाणु ऊर्जा क्षमता 20 गीगावाट तक पहुँच जाए।

समझौते के मुख्य बिंदु

  • मूल्य: 25 अरब डॉलर
  • संख्या: 4 नए परमाणु ऊर्जा संयंत्र
  • क्षमता: कुल 5,000 मेगावाट बिजली उत्पादन
  • स्थान: सिरिक क्षेत्र, होरमुज़गान प्रांत, ईरान
  • भविष्य योजना: 8 और संयंत्रों का निर्माण, दीर्घकालीन सहयोग

समझौते का प्रभाव

  • ऊर्जा सुरक्षा: ईरान लंबे समय से बिजली की कमी से जूझ रहा है। इस समझौते से बिजली संकट काफी हद तक कम होगा।
  • रणनीतिक साझेदारी: रूस और ईरान के संबंध और गहरे होंगे, खासकर ऊर्जा क्षेत्र में।
  • प्रतिबंधों के बीच राहत: पश्चिमी देशों के प्रतिबंधों के बावजूद यह समझौता ईरान को वैश्विक स्तर पर सहयोग का संदेश देता है।
  • भूराजनीतिक प्रभाव: रूस और चीन, ईरान के साथ खड़े हैं जबकि अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस और जर्मनी इसके खिलाफ हैं। इससे वैश्विक शक्ति संतुलन पर असर पड़ेगा।
  • परमाणु ऊर्जा विस्तार: यह समझौता ईरान को 2040 तक 20 GW लक्ष्य तक पहुँचने की दिशा में बड़ा कदम है।

ईरान के परमाणु स्थल एवं चिंताएं

  • वर्तमान में ईरान के पास केवल बुशेहर परमाणु संयंत्र है, जिसे रूस ने बनाया था और जिसकी क्षमता 1 गीगावाट है।
  • नए संयंत्र बनने के बाद ईरान की परमाणु ऊर्जा उत्पादन क्षमता कई गुना बढ़ जाएगी।
  • संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने हाल ही में ईरान पर लगे स्थायी प्रतिबंध हटाने के प्रस्ताव को खारिज कर दिया।
  • पश्चिमी देशों का आरोप है कि ईरान 2015 परमाणु समझौते का पालन नहीं कर रहा और परमाणु हथियार बनाने की कोशिश कर रहा है।
  • ईरान लगातार इस आरोप से इंकार करता रहा है और कहता है कि उसका परमाणु कार्यक्रम केवल शांतिपूर्ण ऊर्जा उद्देश्यों के लिए है।

निष्कर्ष

ईरान-रूस परमाणु समझौता केवल ऊर्जा क्षेत्र तक सीमित नहीं है, बल्कि यह दोनों देशों की रणनीतिक और भूराजनीतिक साझेदारी को भी दर्शाता है। यह कदम ईरान की ऊर्जा सुरक्षा, रूस के वैश्विक प्रभाव और पश्चिमी देशों के साथ टकराव तीनों ही पहलुओं पर महत्वपूर्ण असर डालेगा।

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