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इज़रायल-फिलिस्तीन संघर्ष और भारत

(प्रारंभिक परीक्षा : राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व की सामयिक घटनाएँ)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र - 2 : भारत के हितों पर विकसित तथा विकासशील देशों की नीतियों तथा राजनीति का प्रभाव; प्रवासी भारतीय, महत्त्वपूर्ण अंतर्राष्ट्रीय संस्थान, संस्थाएँ, मंच व अधिदेश)

संदर्भ

इज़रायल-फिलिस्तीन संघर्ष के संबंध में ‘संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद्’ में भारत ने परोक्ष रूप से पुनः फिलिस्तीन का समर्थन किया, लेकिन येरूशलम की स्थिति या इज़रायल-फिलिस्तीन की सीमाओं के बारे में कोई स्पष्ट बयान नहीं दिया। इसके अलावा, भारत ने यह भी कहा कि वह न्यायपूर्ण फिलिस्तीन के लिये ‘दो-राज्य समाधान’ (Two-State Solution) के प्रति प्रतिबद्धता व्यक्त करता है। विदित है कि ‘भारत’ वर्तमान में सुरक्षा परिषद् का अस्थायी सदस्य है।

भारत के बयान के प्रमुख बिंदु

  • इज़रायली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने अमेरिका, अल्बानिया सहित 25 देशों के राष्ट्रीय ध्वज को ट्वीट किया और कहा कि ये देश पूरी तरह से इज़रायल के साथ हैं तथा इज़रायल के आत्मरक्षा के अधिकार का समर्थन करते हैं।इनमें भारतीय ध्वज शामिल नहीं था।
  • संयुक्त राष्ट्र में भारत के बयान से दो बातें स्पष्ट हुई हैं।प्रथम, भारतीय प्रतिनिधि ने ‘अल-अक्सा परिसर और पूर्वी यरुशलम’ में हुई हिंसा का ज़िक्र करते हुए कहा कि पूर्वी यरुशलम में एक सप्ताह पूर्व हिंसा शुरू हुई थी। इसका अर्थ है कि भारत ने 10 मई को हमास द्वारा रॉकेट दागे जाने की घटना को नज़रंदाज करने की कोशिश की। खबरों की मानें तो पहले हमास ने रॉकेट दागे और फिर इज़रायली सेना ने अल-अक्सा मस्जिद पर हमला किया।
  • द्वितीय, भारत ने यरुशलम में हिंसा और पूर्वी यरुशलम के शेख जर्राह तथा सिलवान क्षेत्रों से लोगों के निष्कासन पर चिंता व्यक्त की। वस्तुतः पूर्वी यरुशलम क्षेत्र से ‘अरब परिवारों को इज़रायल द्वारा निष्कासित किया जाना’ अरब विरोध के प्रमुख कारणों में से एक है।
  • भारत ने दोनों पक्षों से आग्रह किया कि वे यथास्थिति को परिवर्तित करने के लिये एकतरफा फैसले ना लें। यहाँ भारत का इशारा इज़रायल की ओर था, जो अल-अक्सा परिसर में सैनिकों की तैनाती करने तथा फिलिस्तीनियों को निष्कासित करने की कोशिश कर रहा है।

भारतीय बयान के निहितार्थ

  • भारत ने इज़रायल-फिलिस्तीन मुद्दे में विकसित होती नवीन परिस्थितियों की ओर इशारा किया और संकेत दिया कि पूर्वी यरुशलम में यथास्थिति बनी रहनी चाहिये। लेकिन इस बिंदु को छोड़ दिया की ‘यरुशलम’ भविष्य में फिलिस्तीन की राजधानी होगी अथवा नहीं!
  • पहले भी ‘दो-राज्य समाधान’ को लेकर भारत का ऐसा ही रुख था। अतः भारत ‘दो-राज्य समाधान’ के मुख्य हिस्से में पूर्वी यरुशलम को शामिल किये बिना आदर्शवादी बातें कर रहा है।
  • वर्ष 2017 तक भारत ने इस मुद्दे पर फिलिस्तीन का समर्थन किया था तथा बातचीत के माध्यम से पूर्वी यरुशलम को फिलिस्तीन की राजधानी बनने के साथ वहाँ एक संप्रभु, स्वतंत्र और संयुक्त फिलिस्तीन के निर्माण की बात की।

दोनों पक्षों को साधने की कोशिश

  • भारत ने वर्ष 2017 से पूर्वी यरुशलम और इज़रायल-फिलिस्तीन सीमाओं का ज़िक्र करना छोड़ दिया है। संयुक्त राष्ट्र में भारत ने बिना कोई हल बताए ‘न्यायसंगत’ समाधान का आह्वान किया।
  • भारत के बयान में ‘हराम-ए-शरीफ’ का दो बार ज़िक्र आया और इसे भारत की ओर से ‘टेंपल माउंट’ भी कहा गया। अर्थात् भारत ने इस पर पूर्णतः फिलीस्तीनी या इस्लामी स्वामित्व नहीं माना, बल्कि इस पर यहूदीयों व मुस्लिमों, दोनों का साझा अधिकार माना।
  • इसके अलावा, भारत ने इज़रायल का ज़िक्र किये बिना रॉकेट हमले की तीखी आलोचना की तथा गाजा से रॉकेट दागे जाने को भी दुखद घटना बताया। अतः भारत ने बुद्धिमत्तापूर्ण तरीके से दोनों पक्षों को साधने की कोशिश की।
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