New
GS Foundation (P+M) - Delhi : 28th Sept, 11:30 AM Diwali Special Offer UPTO 75% + 10% Off, Valid Till : 22nd Oct. 2025 GS Foundation (P+M) - Prayagraj : 25th Sept., 11:00 AM Diwali Special Offer UPTO 75% + 10% Off, Valid Till : 22nd Oct. 2025 GS Foundation (P+M) - Delhi : 28th Sept, 11:30 AM GS Foundation (P+M) - Prayagraj : 25th Sept., 11:00 AM

न्यायिक अतिक्रमण से संबंधित मुद्दे

(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 2: विभिन्न घटकों के बीच शक्तियों का पृथक्करण, विवाद निवारण तंत्र तथा संस्थान)

संदर्भ

राज्य विधानमंडलों द्वारा प्रस्तुत विधेयकों पर कार्रवाई करने के लिए राष्ट्रपति एवं राज्यपालों के लिए समय-सीमा निर्धारित करने के सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय का विरोध करते हुए केंद्र सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय को संविधान द्वारा स्पष्ट रूप से प्रदत्त न की गई शक्तियों का प्रयोग करने के प्रति आगाह किया है। साथ ही, केंद्र ने यह भी कहा है कि न्यायिक अतिक्रमण से शक्ति पृथक्करण का संतुलन अस्थिर हो सकता है।

न्यायिक अतिक्रमण पर केंद्र सरकार का पक्ष 

  • केंद्र ने तर्क दिया कि सर्वोच्च न्यायालय को नीति-निर्माण और कार्यपालिका शक्तियों का अतिक्रमण किए बिना संवैधानिक सीमाओं के भीतर कार्य करना चाहिए।
  • नए अधिकार, नीतियाँ या प्रशासनिक निर्देश वाले न्यायिक आदेशों को कार्यपालिका/विधायी क्षेत्र में अतिक्रमण माना जाता है।
  • अनुच्छेद 200 या 201 में राष्ट्रपति और राज्यपालों के लिए विधेयकों के संदर्भ में कोई विशिष्ट समय-सीमा निर्धारित नहीं है, इसलिए किसी भी प्रकार की न्यायिक समीक्षा या न्यायिक व्याख्या उसे लागू नहीं कर सकती है। 

संवैधानिक आधार

  • शक्तियों का पृथक्करण
    • विधायिका: कानून बनाती है।
    • कार्यपालिका: नीतियों को लागू करती है।
    • न्यायपालिका: कानूनों की व्याख्या करती है और संवैधानिक अनुपालन सुनिश्चित करती है।
  • अनुच्छेद 142 सर्वोच्च न्यायालय को ‘पूर्ण न्याय’ करने की व्यापक शक्तियाँ प्रदान करता है किंतु कानून निर्माण या शासन करने की नहीं।

केंद्र सरकार की चिंताएँ

  • अत्यधिक न्यायिक सक्रियता लोकतांत्रिक जवाबदेही को कमजोर कर सकती है।
  • न्यायालय यह नहीं मान सकते हैं कि कार्यपालिका विफल हो रही है और वे शासन का स्थान नहीं ले सकते हैं।
  • नीतिगत मामलों में न्यायालयों के हस्तक्षेप से संघीय संतुलन बिगड़ने का खतरा रहता है।

पूर्व उदाहरण

  • न्यायिक सक्रियता: केशवानंद भारती, विशाखा दिशानिर्देश (जहाँ विधायी शून्यता के कारण सर्वोच्च न्यायालय ने हस्तक्षेप किया)।
  • न्यायिक अतिक्रमण की आलोचना: राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (NJAC) को रद्द करना तथा नीतिगत मुद्दों (पटाखे, प्रतिबंध, नियुक्तियाँ) पर दिशानिर्देश।

न्यायिक हस्तक्षेप का प्रभाव 

  • सकारात्मक: न्यायिक समीक्षा मौलिक अधिकारों की रक्षा करती है, कार्यपालिका की मनमानी शक्ति पर अंकुश लगाती है।
  • नकारात्मक: बार-बार न्यायिक हस्तक्षेप कार्यपालिका की स्वायत्तता को कमजोर करने के साथ ही शक्तियों के पृथक्करण को धुंधला कर सकता है और वैधता के मुद्दे उठा सकता है।

आगे की राह

  • न्यायपालिका को संवैधानिक नैतिकता को बनाए रखते हुए न्यायिक संयम बरतना चाहिए।
  • न्यायिक हस्तक्षेप की आवश्यकता को कम करने के लिए विधायी और कार्यपालिका की स्पष्ट जवाबदेही आवश्यक है।
  • राज्य के विभिन्न अंगों, जैसे- विधायिका, कार्यपालिका व न्यायपालिका के बीच संस्थागत संवाद को मजबूत करना आवश्यक है।
« »
  • SUN
  • MON
  • TUE
  • WED
  • THU
  • FRI
  • SAT
Have any Query?

Our support team will be happy to assist you!

OR
X