चर्चा में क्यों ?
भारतीय रिज़र्व बैंक की मौद्रिक नीति समिति (MPC) ने नीतिगत रेपो दर में 25 आधार अंकों (0.25 प्रतिशत) की कटौती कर इसे 5.25% कर दिया है।
प्रमुख बिन्दु:
- स्थायी जमा सुविधा (SDF) की दर 5.0% पर स्थिर रहेगी।
- सीमांत स्थायी सुविधा (MSF) एवं बैंक दर को 5.50% पर समायोजित किया गया।
- 6 सदस्यीय MPC ने सर्वसम्मति से दरों में कटौती का निर्णय लिया।
- मौद्रिक नीति का रुख तटस्थ (Neutral) रखा गया है।
- इस साल 4 बार घटी रेपो रेट, 1.25% की कटौती हुई।
- RBI ने फरवरी में हुई मीटिंग में ब्याज दरों को 6.5% से घटाकर 6.25% कर दिया था।
- मॉनेटरी पॉलिसी कमेटी की ओर से ये कटौती करीब 5 साल बाद की गई थी।
- दूसरी बार अप्रैल में हुई मीटिंग में भी ब्याज दर 0.25% घटाई गई।
- जून में तीसरी बार दरों में 0.50% कटौती हुई। अब एक बार फिर इसमें 0.25% की कटौती की गई है।
नीतिगत दरों में कटौती के प्रभाव
- सस्ता ऋण
- जब रेपो दर जैसी नीतिगत ब्याज दरें घटाई जाती हैं तो बैंकों को आरबीआई से कम ब्याज पर धन मिलता है।
- इसका लाभ वे ग्राहकों को कम ब्याज दर वाले ऋण के रूप में देते हैं। इससे घर, वाहन, शिक्षा और व्यापारिक ऋण लेना सस्ता हो जाता है।
- विकास को प्रोत्साहन
- सस्ते ऋण से उद्योगों और व्यवसायों के लिए पूंजी जुटाना आसान हो जाता है। इससे उत्पादन, रोजगार और व्यापार विस्तार को गति मिलती है, जो समग्र आर्थिक विकास को बढ़ावा देता है।
- मांग में वृद्धि
- जब लोगों और कंपनियों के पास अधिक पैसा उपलब्ध होता है, तो उपभोक्ता खर्च बढ़ता है।
- अधिक खर्च से बाजार में मांग बढ़ती है, जिसका सकारात्मक असर उत्पादन और सेवाओं पर पड़ता है।
- निवेश आकर्षण में वृद्धि
- कम ब्याज दरों के कारण स्थिर आय वाले साधनों का रिटर्न कम हो जाता है, जिससे निवेशक शेयर बाजार और अन्य जोखिम आधारित परिसंपत्तियों की ओर आकर्षित होते हैं।
- इससे शेयर बाजार में तेजी और नई कंपनियों के लिए अधिक निवेश उपलब्ध हो सकता है।
- मुद्रास्फीति का जोखिम
- मांग बढ़ने और धन की उपलब्धता अधिक होने पर भविष्य में कीमतों पर दबाव बढ़ सकता है।
- यदि आपूर्ति मांग के बराबर न बढ़े तो महंगाई बढ़ने का खतरा रहता है। इसलिए ब्याज दरों में कटौती हमेशा नियंत्रित और संतुलित रूप से की जाती है।
रेपो रेट:
- रेपो रेट वह ब्याज दर है जिस पर वाणिज्यिक बैंक, अपनी अल्पकालिक आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए केंद्रीय बैंक (भारत में RBI) से ऋण लेते हैं।
- यह कैसे काम करती है ?
- बैंक RBI को सरकारी प्रतिभूतियाँ गिरवी रखते हैं।
- RBI उनसे ब्याज लेकर ऋण देता है।
- बाद में बैंक उन प्रतिभूतियों को वापस खरीद लेते हैं।
- रेपो रेट का उद्देश्य
- बैंकों को अल्पकालिक तरलता उपलब्ध कराना
- अर्थव्यवस्था में धन के प्रवाह और मुद्रास्फीति को नियंत्रित करना
- रेपो रेट में बदलाव का प्रभाव
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स्थिति
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प्रभाव
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रेपो रेट बढ़ती है
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बैंकों के लिए ऋण महंगा → ग्राहकों को महंगे ऋण → उधार व खर्च में कमी → मुद्रास्फीति नियंत्रण
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रेपो रेट घटती है
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बैंकों को सस्ता ऋण → ग्राहकों को सस्ते ऋण → उधार व खर्च में वृद्धि → आर्थिक वृद्धि को प्रोत्साहन
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मौद्रिक नीति समिति:
- RBI अधिनियम, 1934 (2016 में संशोधित) की धारा 45ZB के तहत केंद्र सरकार द्वारा मौद्रिक नीति समिति का गठन किया गया है।
- इसका उद्देश्य मुद्रास्फीति लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए आवश्यक नीति दर निर्धारित करना है।
- इस समिति में 6 सदस्य होते हैं-
- RBI का गवर्नर (पदेन अध्यक्ष)
- RBI का डिप्टी गवर्नर (मौद्रिक नीति का प्रभारी, पदेन सदस्य)
- RBI के केंद्रीय बोर्ड द्वारा नामित एक अधिकारी (पदेन सदस्य)
- केंद्र सरकार द्वारा नियुक्त 3 सदस्य (कार्यकाल 4 वर्ष की अवधि के लिए या अगले आदेश तक, जो भी पहले हो)
- इसकी बैठक वर्ष में कम से कम 4 बार आयोजित होती है, जिसके लिए कोरम 4 सदस्यों का है।
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प्रश्न. मौद्रिक नीति समिति (MPC) में कुल कितने सदस्य होते हैं ?
(a) 4
(b) 5
(c) 6
(d) 7
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