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जल जीवन मिशन : अनियमितताएँ, चुनौतियाँ एवं समाधान

(प्रारंभिक परीक्षा: सरकारी योजनाएँ एवं कार्यक्रम)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 2: विभिन्न क्षेत्रों में विकास के लिए सरकारी नीतियाँ एवं हस्तक्षेप, उनके अभिकल्पन और कार्यान्वयन से उत्पन्न होने वाले मुद्दे)

संदर्भ

लागत में वृद्धि एवं निविदा आवंटन में कथित खामियों को लेकर केंद्र सरकार ने 29 राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों के 135 जिलों में 100 निरीक्षण दलों को भेजने का आदेश जारी किया। इन दलों का कार्य जल जीवन मिशन के तहत ग्रामीण परिवारों को व्यक्तिगत नल कनेक्शन के माध्यम से पेयजल आपूर्ति के लिए किए जा रहे कार्यों की समीक्षा करना है।

जल जीवन मिशन के बारे मे

  • प्रारंभ : 15 अगस्त, 2019
  • उद्देश्य : प्रत्येक ग्रामीण परिवार और सार्वजनिक संस्थान को कार्यात्मक घरेलू नल कनेक्शन (FHTC) के माध्यम से सुरक्षित व पर्याप्त पेयजल सुनिश्चित करना।
  • लक्ष्य : ग्रामीण एवं शहरी क्षेत्रों में जल अंतरण सुविधाएँ, उपचार संयंत्र व एक मजबूत जल वितरण नेटवर्क विकसित करना।
  • वित्त पोषण पैटर्न :
    • बिना विधानसभा वाले केंद्र शासित प्रदेशों के लिए 100% केंद्रीय वित्त पोषण
    • पूर्वोत्तर एवं हिमालयी राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों के लिए 90:10 (केंद्र:राज्य)
    • अन्य राज्यों के लिए 50:50

अनियमितता संबंधी मुद्दे

  • मानदंडों में परिवर्तन : दिसंबर 2019 में जारी ‘जल जीवन मिशन: हर घर जल’ के कार्यान्वयन के लिए परिचालन दिशानिर्देश में कहा गया है कि स्वीकृत लागत से अधिक किसी भी लागत वृद्धि को संबंधित राज्य या विधानसभा वाले केंद्र शासित प्रदेशों द्वारा वहन करना होगा और केंद्रीय हिस्से से कोई अतिरिक्त व्यय स्वीकृत नहीं होगा।
  • दिशा-निर्देशों में परिवर्तन का प्रभाव : इन परिवर्तनों ने व्यय पर नियंत्रण हटा दिया है जिसके परिणामस्वरूप लागत में उल्लेखनीय वृद्धि हुई।

  • वित्तीय प्रभाव :
    • 21 जून, 2022 से 3 अगस्त, 2024 की अवधि में 1,03,093 सूचीबद्ध योजनाओं में से 14,586 योजनाओं में लागत वृद्धि दर्ज की गई जिससे 16,839 करोड़ का अतिरिक्त व्यय हुआ, जो अनुमानित लागत से 14.58% अधिक है।
    • 16,839 करोड़ की लागत वृद्धि का लगभग 80% हिस्सा 100 करोड़ से अधिक लागत वाली योजनाओं से संबंधित था।

  • राज्य-वार प्रवृत्ति : मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, पश्चिम बंगाल, राजस्थान, कर्नाटक एवं तमिलनाडु में लागत वृद्धि विशेष रूप से स्पष्ट थी। विशेष रूप से मध्य प्रदेश में केवल 508 योजनाएँ (कुल 14,586 योजनाओं का 4% से कम) लागू की गईं किंतु कुल लागत वृद्धि में इसका योगदान लगभग 64% था।
  • केंद्रीय जांच : व्यय सचिव की अध्यक्षता वाली केंद्रीय समिति ने जल शक्ति मंत्रालय की 2.79 लाख करोड़ की अतिरिक्त केंद्रीय निधि की मांग में 46% की कटौती की सिफारिश की और कुछ राज्यों द्वारा बढ़ा-चढ़ाकर कार्य अनुबंधों को मंजूरी देने पर चिंता व्यक्त की।

कार्यान्वयन में चुनौतियाँ

  • लागत वृद्धि एवं वित्तीय कुप्रबंधन : निविदा मानदंडों में ढील व अपर्याप्त निगरानी के कारण अनियंत्रित लागत वृद्धि से परियोजनाओं के पूरा होने में देरी की है। 
  • क्षमता की कमी : कई राज्यों में बड़े पैमाने पर जल अवसंरचना परियोजनाओं को कुशलतापूर्वक लागू करने की तकनीकी व प्रशासनिक क्षमता की कमी है।
  • भौगोलिक बाधा : दूरदराज एवं पहाड़ी क्षेत्रों में जलापूर्ति अवसंरचना स्थापित करने में रसद संबंधी कठिनाइयाँ लागत व समय को बढ़ाती हैं।
  • पर्यावरणीय चुनौतियाँ : भूजल स्तर में कमी और जल स्रोतों का प्रदूषण सतत जलापूर्ति सुनिश्चित करने में चुनौतियाँ उत्पन्न करता है।
  • समुदाय सहभागिता एवं स्थायित्व : योजना व रखरखाव में समुदाय की सीमित भागीदारी के कारण बुनियादी ढांचे का कम उपयोग या उपेक्षा होती है।
  • निगरानी व जवाबदेही में कमी : राज्य एवं जिला स्तर पर कमजोर निगरानी तंत्र से अनियमितता अनियंत्रित हो गयी है।

समाधान 

वित्तीय निगरानी को मजबूत करना

  • निविदा दिशानिर्देशों को अधिक सख्त करना, जिसमें लागत अनुमानों की स्वतंत्र लेखा परीक्षण निकाय द्वारा अनिवार्य पूर्व-स्वीकृति शामिल हो।
  • व्यय की निगरानी के लिए वास्तविक समय की वित्तीय ट्रैकिंग प्रणाली लागू करना।
  • अनुचित लागत वृद्धि के लिए राज्यों या एजेंसियों को दंडित करने की नीति लागू करना।

क्षमता निर्माण

  • राज्यों एवं स्थानीय निकायों के लिए तकनीकी प्रशिक्षण व क्षमता निर्माण कार्यक्रम आयोजित करना।
  • परियोजना प्रबंधन एवं जल प्रणाली डिजाइन में विशेषज्ञों को नियुक्त करना।

भौगोलिक चुनौतियों का समाधान

  • दूरदराज के क्षेत्रों के लिए क्षेत्र-विशिष्ट तकनीकों, जैसे- वर्षा जल संचयन एवं छोटे पैमाने की उपचार इकाइयों को बढ़ावा देना।
  • जल स्रोतों की स्थायित्व सुनिश्चित करने के लिए भूजल प्रबंधन एवं प्रदूषण नियंत्रण पर ध्यान देना।

समुदाय की भागीदारी बढ़ाना

  • जल समितियों (पानी समिति) को सशक्त करना और स्थानीय स्तर पर रखरखाव एवं निगरानी में उनकी भूमिका बढ़ाना।
  • जल संरक्षण एवं बुनियादी ढांचे के उपयोग के लिए जागरूकता अभियान चलाना।

मजबूत निगरानी एवं जवाबदेही तंत्र

  • परियोजना प्रगति की वास्तविक समय निगरानी के लिए डिजिटल डैशबोर्ड व मोबाइल ऐप्स का उपयोग करना।
  • अनियमितताओं की शीघ्र जाँच एवं सुधार के लिए स्वतंत्र तृतीय-पक्ष ऑडिट लागू करना।

नीतिगत सुधार

  • लागत वृद्धि को नियंत्रित करने के लिए स्पष्ट दिशानिर्देश व जवाबदेही ढांचा स्थापित करना।
  • राज्यों के बीच सर्वोत्तम प्रथाओं को साझा करने के लिए एक केंद्रीकृत मंच बनाना।
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