New
GS Foundation (P+M) - Delhi: 30 July, 11:30 AM July End Offer UPTO 75% Off, Valid Till : 28th July 2025 GS Foundation (P+M) - Prayagraj: 30th July, 8:00 AM July End Offer UPTO 75% Off, Valid Till : 28th July 2025 GS Foundation (P+M) - Delhi: 30 July, 11:30 AM GS Foundation (P+M) - Prayagraj: 30th July, 8:00 AM

भारत में जलवायु संकट एवं पैरामीट्रिक बीमा: एक नया सुरक्षा कवच

(प्रारंभिक परीक्षा: समसामयिक घटनाक्रम)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 3: आपदा एवं आपदा प्रबंधन)

संदर्भ

भारत में जलवायु परिवर्तन के कारण बाढ़, भूस्खलन एवं सूखा जैसी चरम मौसमी घटनाएँ अधिक बार तथा अप्रत्याशित हो रही हैं। पारंपरिक बीमा मॉडल इन अप्रत्याशित और बार-बार होने वाली आपदाओं का सामना करने में अपर्याप्त हैं। इसीलिए पैरामीट्रिक बीमा एक नवीन समाधान के रूप में उभरा है जो जलवायु संकट से निपटने में तेजी एवं पारदर्शिता प्रदान करता है।

भारत में जलवायु संकट के बारे में

  • वृद्धि : वर्ष 2000 के बाद प्राकृतिक आपदाओं की आवृत्ति एवं तीव्रता में वृद्धि, जैसे-हिमाचल प्रदेश में वर्ष 2025 में 20 से अधिक फ्लैश फ्लड व भूस्खलन
  • आर्थिक नुकसान : वर्ष 2019-2023 में $56 बिलियन का नुकसान, जो एशिया-प्रशांत क्षेत्र के कुल जलवायु नुकसान का 25% है।
  • प्रभाव : बुनियादी ढांचे का विनाश, आजीविका का नुकसान और खाद्य सुरक्षा पर खतरा
  • उदाहरण : वर्ष 2023 में हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड में भारी बारिश एवं बाढ़ से हजारों लोगों का विस्थापन

क्या है पैरामीट्रिक बीमा

  • परिभाषा : यह एक बीमा मॉडल है जो पूर्व-निर्धारित सूचकांक (इंडेक्स) के आधार पर स्वचालित भुगतान करता है, जैसे- बारिश, तापमान या हवा की गति।
  • मुख्य विशेषताएँ :
    • स्वचालित भुगतान : जब सूचकांक (जैसे- 300 मिमी. से कम बारिश या 40 °C से अधिक तापमान) पार होता है, तो भुगतान तुरंत शुरू हो जाता है।
    • सत्यापित डाटा : भारत मौसम विज्ञान विभाग (IMD) या वैश्विक उपग्रह प्रणालियों से डाटा का उपयोग।
    • पारदर्शिता : भुगतान प्रक्रिया में कोई व्यक्तिपरकता नहीं, सब कुछ पहले से परिभाषित।
  • अनुप्रयोग : कृषि, नवीकरणीय ऊर्जा, परिवहन एवं पशुपालन जैसे क्षेत्रों में।

पैरामीट्रिक बीमा एवं पारंपरिक बीमा मॉडल के मध्य अंतर

विशेषताएँ 

पारंपरिक बीमा

पैरामीट्रिक बीमा

भुगतान प्रक्रिया

नुकसान का मूल्यांकन एवं सत्यापन के बाद भुगतान, जिसमें महीनों लगते हैं।

पूर्व-निर्धारित सूचकांक के आधार पर घंटों में स्वचालित भुगतान

जटिलता

दावों के लिए निरीक्षण एवं कागजी कार्रवाई की आवश्यकता

कोई निरीक्षण नहीं, डाटा-आधारित त्वरित प्रक्रिया

लागत

उच्च प्रशासनिक लागत एवं देरी

कम लागत, तीव्र एवं पारदर्शी

उपयुक्तता

छोटे, स्थानीय नुकसानों के लिए उपयुक्त

चरम एवं अप्रत्याशित जलवायु घटनाओं के लिए आदर्श

जलवायु संकट में पैरामीट्रिक बीमा से मदद 

  • तेजी से राहत : आपदा के तुरंत बाद भुगतान, जिससे बीज खरीद, ऋण चुकाने और कार्यशील पूंजी की त्वरित बहाली संभव
  • कृषि समर्थन : सूखा या अत्यधिक तापमान में छोटे किसानों को ऋण डिफॉल्ट से बचाने के लिए स्वचालित भुगतान
  • नवीकरणीय ऊर्जा : सौर ऊर्जा कंपनियों को सौर प्रकाश की कमी से होने वाले नुकसान की भरपाई
  • आर्थिक स्थिरता : आपदा प्रभावित क्षेत्रों में आजीविका एवं बुनियादी ढांचे की रक्षा
  • जोखिम प्रबंधन : जलवायु अनिश्चितता के बीच वित्तीय लचीलापन प्रदान करता है।

पैरामीट्रिक बीमा के वर्तमान प्रयोग

  • भारत :
    • राजस्थान एवं उत्तर प्रदेश : हजारों महिला छोटे किसानों को सूखे से बचाने के लिए पायलट परियोजना, जल संतुलन सूचकांक का उपयोग।
    • नागालैंड : वर्ष 2024 में पहला भारतीय राज्य जो भूस्खलन एवं भारी बारिश के लिए बहु-वर्षीय पैरामीट्रिक कवर खरीदा।
    • झारखंड : माइक्रोफाइनेंस संस्थानों ने कम बारिश या उच्च तापमान पर स्वचालित ऋण सहायता नीति लागू की।
  • वैश्विक :
    • अफ्रीका : सूखा एवं बाढ़ के लिए पैरामीट्रिक बीमा
    • प्रशांत द्वीप समूह : चक्रवात एवं बाढ़ की गहराई के लिए कवर
    • यू.के. : चरम मौसमी घटनाओं के लिए पैरामीट्रिक उत्पाद

चुनौतियाँ

  • डाटा उपलब्धता : सटीक एवं विश्वसनीय जलवायु डाटा (IMD, उपग्रह) तक सीमित पहुँच, विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में।
  • जागरूकता की कमी : छोटे किसानों एवं MSMEs में पैरामीट्रिक बीमा की समझ व स्वीकार्यता कम
  • वित्त पोषण : बड़े पैमाने पर कार्यान्वयन के लिए उच्च प्रारंभिक लागत
  • नीतिगत ढांचा : भारत में पैरामीट्रिक बीमा के लिए कोई स्पष्ट नियामक ढांचा का अभाव 
  • क्षमता निर्माण : बीमा कंपनियों एवं स्थानीय प्रशासनों में तकनीकी विशेषज्ञता की कमी

आगे की राह

  • विस्तार : राज्यों एवं केंद्र शासित प्रदेशों में नागालैंड मॉडल की तरह पैरामीट्रिक बीमा को बढ़ावा देना
  • डाटा बुनियादी ढांचा : IMD एवं उपग्रह डाटा नेटवर्क का विस्तार, विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में
  • जागरूकता अभियान : किसानों, MSMEs और नीति निर्माताओं के लिए पैरामीट्रिक बीमा की शिक्षा
  • नियामक ढांचा : IRDAI के तहत पैरामीट्रिक बीमा के लिए स्पष्ट दिशानिर्देश एवं मानक
  • वित्तीय समर्थन : केंद्र एवं राज्य सरकारों द्वारा आपदा निधि से पैरामीट्रिक बीमा के लिए बजट आवंटन
  • निजी क्षेत्र की भागीदारी : बीमा कंपनियों एवं स्टार्टअप्स को डिजिटल प्लेटफॉर्म के माध्यम से पैरामीट्रिक उत्पाद विकसित करने के लिए प्रोत्साहित करना
« »
  • SUN
  • MON
  • TUE
  • WED
  • THU
  • FRI
  • SAT
Have any Query?

Our support team will be happy to assist you!

OR