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भारत में गोद लेने की प्रक्रिया और नीतियां

(प्रारंभिक परीक्षा: समसामयिक घटनाक्रम)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 2: केंद्र एवं राज्यों द्वारा जनसंख्या के अति संवेदनशील वर्गों के लिये कल्याणकारी योजनाएँ और इन योजनाओं का कार्य-निष्पादन; इन अति संवेदनशील वर्गों की रक्षा व बेहतरी के लिये गठित तंत्र, विधि, संस्थान एवं निकाय)

संदर्भ

भारत में गोद लेने की प्रक्रिया को केंद्रीय दत्तक ग्रहण संसाधन प्राधिकरण (CARA) नियंत्रित करता है। हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने CARA को गोद लेने की प्रक्रिया को सुव्यवस्थित और तेज करने के निर्देश दिए हैं। CARA के आंकड़ों के अनुसार, गोद लेने योग्य प्रत्येक बच्चे के लिए 13 माता-पिता प्रतीक्षा सूची में हैं।

भारत में गोदनामा: एक अवलोकन

  • कानूनी परिभाषा : गोद लेना या दत्तक ग्रहण एक ऐसी कानूनी प्रक्रिया है जिसमें व्यक्ति या दंपति एक ऐसे बच्चे की जिम्मेदारी लेते हैं जो जैविक रूप से उनका नहीं है और उसे कानूनी रूप से अपना बच्चा बनाते हैं।
  • प्रभाव : गोद लिया गया बच्चा जैविक बच्चे के समान सभी अधिकार, विशेषाधिकार एवं जिम्मेदारियां प्राप्त करता है।
  • लक्ष्य : अनाथ, परित्यक्त या आत्मसमर्पित बच्चों को स्थायी व प्रेमपूर्ण परिवार प्रदान करना

वर्तमान स्थिति 

  • भारत में लगभग 3 करोड़ बच्चे अनाथ हैं जिनके माता-पिता नहीं हैं। 
  • इनमें से केवल 5 लाख बच्चे ही अनाथालयों जैसी संस्थागत सुविधाओं तक पहुँच पाते हैं और यह संख्या बहुत ही कम है। 
  • इन 5 लाख बच्चों में से भी केवल 4,000 बच्चों को ही प्रतिवर्ष गोद लिया जाता है। 
  • भारत में गोद लिए गए 60% बच्चे बालिकाएँ हैं और 80% बच्चे वो हैं जो दो वर्ष से कम आयु के हैं। अर्थात बच्चे की उम्र जितनी कम होगी उसके गोद लिए जाने की संभावना उतनी ही ज़्यादा होती है। 

भारत में गोद लेने की प्रक्रिया

  • पंजीकरण : इच्छुक माता-पिता को CARA के चाइल्ड एडॉप्शन रिसोर्स इन्फॉर्मेशन एंड गाइडेंस सिस्टम (CARINGS) पोर्टल पर पंजीकरण करना होता है।
  • होम स्टडी : विशेष गोद ग्रहण एजेंसी (SAA) द्वारा माता-पिता का घरेलू अध्ययन (होम स्टडी) किया जाता है, जिसमें उनकी शारीरिक, मानसिक एवं वित्तीय स्थिति का मूल्यांकन होता है।
  • बच्चे का चयन : बच्चे को कानूनी रूप से गोद लेने योग्य घोषित करने के बाद माता-पिता को बच्चे की प्रोफाइल दी जाती है। वे 96 घंटों में बच्चे को रिजर्व कर सकते हैं।
  • प्रि-एडॉप्शन फॉस्टर केयर : माता-पिता बच्चे को गोद लेने से पहले अस्थायी देखभाल के लिए ले सकते हैं।
  • कानूनी प्रक्रिया : SAA द्वारा जिला मजिस्ट्रेट (DM) के समक्ष याचिका दायर की जाती है जो गोद लेने का आदेश जारी करता है। आदेश 10 दिनों के भीतर ई-मेल के माध्यम से उपलब्ध होता है।
  • जन्म प्रमाणपत्र : गोद लेने के बाद बच्चे का जन्म प्रमाणपत्र माता-पिता के नाम से 5 दिनों के भीतर जारी किया जाता है।

संबंधित कानून और नीतियां

  • हिंदू गोद ग्रहण एवं भरण-पोषण अधिनियम, 1956 (HAMA) : हिंदू, जैन, सिख एवं बौद्ध धर्म के लोगों के लिए गोद लेने की प्रक्रिया को नियंत्रित करता है। इसमें ‘दत्तक होम’ समारोह या न्यायालयी आदेश के माध्यम से गोद लेना शामिल है।
  • किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम, 2015 (JJ Act) : सभी धर्मों के लिए लागू, यह अनाथ, परित्यक्त एवं आत्मसमर्पित बच्चों के गोद लेने को नियंत्रित करता है। इसके तहत जिला मजिस्ट्रेट को गोद लेने का आदेश जारी करने का अधिकार है।
  • हेग अभिसमय, 1993 : इसे अंतर्राष्ट्रीय गोद लेने की प्रक्रिया के लिए भारत द्वारा वर्ष 2003 में हस्ताक्षरित किया गया तथा CARA इसके तहत कार्य करता है।
  • गार्जियन एंड वार्ड्स एक्ट, 1890 : गैर-हिंदुओं एवं अंतर्राष्ट्रीय गोद लेने की प्रक्रिया के लिए व्यवस्था प्रदान करता है।

सरकारी पहल

  • CARA की डिजिटल पहल : डिजिटल रूप से प्रमाणित गोद लेने के आदेश और CARINGS पोर्टल के माध्यम से पारदर्शी प्रक्रिया
  • विकेंद्रीकरण : वर्ष 2022 में JJ Act में संशोधन के तहत जिला मजिस्ट्रेट को गोद लेने के आदेश जारी करने का अधिकार दिया गया।
  • GHAR पोर्टल : राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (NCPCR) द्वारा शुरू किया गया, जो किशोर न्याय प्रणाली में बच्चों की ट्रैकिंग एवं पुनर्वास के लिए है।
  • जागरूकता अभियान : नवंबर माह को गोद लेने के जागरूकता माह के रूप में मनाया जाता है, विशेष रूप से बड़े बच्चों तथा विशिष्ट जरूरतों वाले बच्चों के लिए।
  • तत्काल प्लेसमेंट श्रेणी : नवजात एवं छोटे बच्चों के लिए प्रतीक्षा समय को कम करने के लिए शुरू की गई।

महत्वपूर्ण संगठन एवं संस्थान

  • केंद्रीय गोद ग्रहण संसाधन प्राधिकरण (CARA) : भारत में गोद लेने की नोडल एजेंसी है, जिसे वर्ष 1990 में स्थापित किया गया और JJ Act, 2015 के तहत वैधानिक निकाय है। यह देश एवं अंतर्राष्ट्रीय गोद लेने की प्रक्रिया को नियंत्रित करता है।
  • विशेष गोद ग्रहण एजेंसी (SAA) : बच्चों को गोद लेने योग्य घोषित करने और माता-पिता के साथ जोड़ने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
  • जिला बाल संरक्षण इकाई (DCPU) : गोद लेने के आदेश अपलोड करने और स्थानीय स्तर पर प्रक्रिया की निगरानी में सहायता करती है।
  • बाल कल्याण समिति (CWC) : बच्चों को कानूनी रूप से गोद लेने योग्य घोषित करती है।
  • राज्य गोद ग्रहण संसाधन एजेंसी (SARA) : राज्य स्तर पर गोद लेने की प्रक्रिया का समन्वय करती है।

गोद लेने में चुनौतियाँ

  • लंबी प्रतीक्षा अवधि : सामान्य स्वास्थ्य वाले छोटे बच्चों की मांग अधिक होने के कारण औसतन 3 वर्ष का इंतजार
  • गोद लेने योग्य सीमित बच्चे : केवल 2,000 बच्चे CARA के पूल में हैं जबकि 3.1 करोड़ अनाथ बच्चे होने का अनुमान है। कई बच्चे अवैध रूप से गोद लिए जाते हैं।
  • विशेष जरूरतों वाले बच्चे : बड़े बच्चों एवं विशेष जरूरतों वाले बच्चों को गोद लेने की दर निम्न है।
  • अवैध गोद लेना : अस्पतालों एवं नर्सिंग होम से बच्चों की तस्करी व गोद लेने की अवैध घटनाएँ।
  • सामाजिक पूर्वाग्रह : जाति, वर्ग एवं आनुवंशिकी से संबंधित सामाजिक कलंक गोद लेने की प्रक्रिया को प्रभावित करते हैं।
  • प्रशिक्षण की कमी : गोद लेने के बाद माता-पिता के लिए परामर्श एवं प्रशिक्षण की कमी के कारण कुछ बच्चे वापस लौटा दिए जाते हैं।
  • प्रक्रियात्मक जटिलताएँ : जिला मजिस्ट्रेट को अधिकार देने से कुछ मामलों में भ्रम एवं देरी बढ़ती है।

आगे की राह

  • प्रक्रिया में सुधार : प्रक्रियाओं को सरल और पारदर्शी बनाना, कागजी कार्रवाई को कम करना
  • बच्चों का पूल बढ़ाना : आश्रय गृहों में बच्चों का डिजिटल डाटा बनाकर और उनकी गोद लेने की योग्यता का मूल्यांकन करके पूल को बढ़ाना
  • जागरूकता अभियान : गोद लेने, विशेषकर बड़े एवं विशेष जरूरतों वाले बच्चों के लिए जागरूकता बढ़ाना
  • प्रशिक्षण एवं परामर्श : गोद लेने से पहले और बाद में माता-पिता के लिए अनिवार्य प्रशिक्षण एवं परामर्श शुरू करना
  • अवैध गोद लेने पर रोक : गोद लेने की कानूनी प्रक्रिया को मजबूत कर तस्करी एवं अवैध प्रथाओं को रोकना
  • तकनीकी उपयोग : डिजिटल प्लेटफॉर्म (जैसे- CARINGS) को अधिक प्रभावी बनाना और डाटा प्रबंधन में सुधार करना
  • हितधारक सहयोग : सरकार, गैर-सरकारी संगठन और सामुदायिक संगठनों के बीच बेहतर समन्वय स्थापित करना

भारत में बच्चा गोद लेने के लिए प्रमुख नियम एवं शर्तें

  • बच्चा गोद लेने वाले अभिभावकों को शारीरिक, मानसिक, भावनात्मक एवं वित्तीय तौर पर सक्षम होना चाहिए।
  • उन्हें ऐसी कोई शारीरिक समस्या नहीं होनी चाहिए जो जीवन के लिए ख़तरा बने।
  • उन्हें किसी भी तरह के अपराध के लिए सज़ा नहीं हुई होनी चाहिए।
  • न ही उन पर बाल अधिकारों के हनन का कोई आरोप होना चाहिए।
  • कोई भी व्यक्ति चाहे विवाहित हो या न हो, बच्चा गोद ले सकता है।
  • पहले से कोई बायोलॉजिकल पुत्र या पुत्री हो तो भी बच्चा गोद लिया जा सकता है किंतु इसके लिए कुछ अतिरिक्त शर्तें पूरी करनी होंगी।

वैवाहिक स्थिति एवं लिंग आधारित शर्तें

  • विवाहित दंपति : बच्चा गोद लेने के लिए पति एवं पत्नी दोनों की मंज़ूरी आवश्यक है।
  • सिंगल फीमेल : एकल महिला किसी भी लिंग के बच्चे को गोद ले सकती हैं।
  • सिंगल मेल : एकल पुरुष किसी बच्ची को गोद लेने का पात्र नहीं है।

वैवाहिक संबंधों की स्थिरता और रिश्तेदारों के बच्चों को गोद लेने की शर्तें

  • स्थिर वैवाहिक संबंध : किसी भी दंपती को बच्चा तब तक गोद नहीं दिया जाएगा जब तक दो वर्ष तक उसके स्थिर वैवाहिक संबंध न हों।
  • रिश्तेदारों के बच्चों को गोद लेने की शर्तें : अगर कोई दंपती अपने किसी रिश्तेदार के बच्चे को गोद लेना चाहे तो स्थिर वैवाहिक संबंधों की शर्त ज़रूरी नहीं होगी।

आयु आधारित शर्तें

  • आयु की सीमाएँ : बच्चा गोद लेने की इच्छा रखने वाले अभिभावकों की आयु की सीमाएँ तय की गई हैं।
  • आयु का अंतर : जिस बच्चे को गोद लिया जा रहा है, उसकी तथा गोद लेने वाले अभिभावकों की आयु में कम-से-कम 25 वर्ष का अंतर होना चाहिए।
  • न्यूनतम आयु : 25 वर्ष से कम आयु का व्यक्ति बच्चे को गोद नहीं ले सकता है।
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