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मानसिक स्वास्थ्य : सर्वोच्च न्यायालय के दिशानिर्देश

(प्रारंभिक परीक्षा: समसामयिक सामाजिक मुद्दे)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 2: न्यायपालिका के कार्य; केंद्र/राज्यों द्वारा जनसंख्या के अति संवेदनशील वर्गों के लिये कल्याणकारी योजनाएँ और इनका निष्पादन)

संदर्भ

भारत में शैक्षणिक संस्थानों में छात्रों के बीच आत्महत्या एवं मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं में वृद्धि एक गंभीर मुद्दा बन गया है। सर्वोच्च न्यायालय ने 25 जुलाई, 2025 को इस समस्या से निपटने के लिए 15 दिशानिर्देश जारी किए, जो तब तक लागू रहेंगे जब तक कोई कानून या नियामक ढांचा लागू नहीं हो जाता है।

कैंपस में आत्महत्याओं के हालिया मुद्दे

  • आंकड़े : वर्ष 2001 में 5,425 छात्रों ने आत्महत्याएँ की थीं, जो वर्ष 2022 में बढ़कर 13,044 हो गईं हैं।
    • उदाहरण : विशाखापट्टनम में 17 वर्षीय NEET उम्मीदवार की संदिग्ध मृत्यु (जुलाई 2023) और IIT खड़गपुर में आत्महत्या (जुलाई 2025) ने इस मुद्दे को राष्ट्रीय स्तर पर उजागर किया।
  • कारण : शैक्षणिक दबाव, सामाजिक कलंक, रैगिंग एवं संस्थागत समर्थन की कमी

सर्वोच्च न्यायालय का हालिया निर्णय 

  • संबंधित वाद : सुकदेब साहा बनाम आंध्र प्रदेश राज्य एवं अन्य (2023)
    • यह मामला 17 वर्षीय छात्र की आत्महत्या से संबंधित था जिसने NEET परीक्षा की तैयारी के दौरान आत्महत्या कर ली थी।
  • न्यायालय ने छात्रों की मानसिक एवं शारीरिक सुरक्षा को प्राथमिकता देने पर जोर दिया, जो अनुच्छेद 21 के तहत जीवन के अधिकार से संबंधित है।
  • न्यायालय ने यह सुनिश्चित करने के लिए 15 दिशानिर्देश जारी किए कि शैक्षणिक संस्थान मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं को संबोधित करें।
  • न्यायालय ने ‘संस्थागत जवाबदेही’ पर बल दिया, यह कहते हुए कि मानसिक स्वास्थ्य उपायों में विफलता संस्थानों को कानूनी एवं नियामक परिणामों के लिए उत्तरदायी बनाएगी, जो मौलिक अधिकारों के उल्लंघन से जोड़ा जा सकता है।

सर्वोच्च न्यायालय द्वारा जारी 15 दिशानिर्देश

  1. मानसिक स्वास्थ्य नीति : सभी शैक्षणिक संस्थानों को ‘मनोदर्पण’ और राष्ट्रीय आत्महत्या रोकथाम रणनीति (2022) पर आधारित एकसमान मानसिक स्वास्थ्य नीति अपनानी होगी।
    • मनोदर्पण : यह शिक्षा मंत्रालय की एक पहल है जिसका उद्देश्य छात्रों, शिक्षकों एवं अभिभावकों को मानसिक स्वास्थ्य व कल्याण के लिए मनो-सामाजिक सहायता प्रदान करना है।
  2. काउंसलर की नियुक्ति : 100 से अधिक छात्रों वाले संस्थानों में कम-से-कम एक प्रशिक्षित काउंसलर, मनोवैज्ञानिक या सामाजिक कार्यकर्ता नियुक्त करना अनिवार्य है।
  3. छोटे संस्थान : कम छात्रों वाले संस्थान बाहरी मानसिक स्वास्थ्य पेशेवरों से संपर्क स्थापित करना
  4. सुरक्षा उपाय : आवासीय संस्थानों में पंखे एवं छतों/बालकनियों तक पहुँच प्रतिबंधित करना
  5. उचित व्यवहार : शैक्षणिक प्रदर्शन के आधार पर बैच अलग करना, सार्वजनिक शर्मिंदगी या अनुचित लक्ष्य देना प्रतिबंधित
  6. शिकायत तंत्र : यौन उत्पीड़न, रैगिंग एवं भेदभाव की शिकायतों के लिए गोपनीय और सुलभ तंत्र स्थापित करना
  7. शून्य सहनशीलता: शिकायतकर्ताओं या व्हिसलब्लोअर के खिलाफ प्रतिशोध पर सख्त कार्रवाई
  8. हेल्पलाइन नंबर : टेली-मानस सहित आत्महत्या रोकथाम हेल्पलाइन नंबर प्रमुखता से प्रदर्शित करना
  9. प्रशिक्षण : सभी शिक्षण एवं गैर-शिक्षण कर्मचारियों के लिए वर्ष में दो बार मानसिक स्वास्थ्य प्रशिक्षण
  10. कैरियर काउंसलिंग : नियमित कैरियर काउंसलिंग सत्र आयोजित करना
  11. संवेदनशीलता : हाशिए पर स्थित समुदायों के छात्रों के साथ संवेदनशील व्यवहार
  12. जवाबदेही : मानसिक स्वास्थ्य हस्तक्षेप एवं गतिविधियों की वार्षिक रिपोर्ट प्रस्तुत करना
  13. जिलास्तरीय निगरानी : जिला मजिस्ट्रेट के नेतृत्व में निगरानी समितियाँ गठित करना
  14. CBI जाँच : संदिग्ध आत्महत्याओं में CBI जाँच का प्रावधान
  15. राष्ट्रीय टास्क फोर्स : उच्च शिक्षण संस्थानों में आत्महत्या रोकथाम के लिए टास्क फोर्स का गठन

उद्देश्य

  • छात्रों की सुरक्षा : शारीरिक एवं मानसिक सुरक्षा सुनिश्चित करना
  • आत्महत्या रोकथाम : शैक्षणिक दबाव और सामाजिक मुद्दों से होने वाली आत्महत्याओं को कम करना
  • संस्थागत जवाबदेही : लापरवाही के लिए संस्थानों को जिम्मेदार ठहराना
  • जागरूकता : मानसिक स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता बढ़ाना और समर्थन प्रणाली को मजबूत करना
  • निष्पक्ष वातावरण : भेदभाव, रैगिंग एवं उत्पीड़न मुक्त शैक्षणिक वातावरण बनाना

भूमिका

  • तत्काल सहायता : काउंसलर और हेल्पलाइन के माध्यम से त्वरित मानसिक स्वास्थ्य सहायता प्राप्त होगी। 
  • सुरक्षित परिसर : छेड़छाड़-रोधी उपकरण और प्रतिबंधित क्षेत्र के माध्यम से आत्म-क्षति को रोकेंगे। 
  • निष्पक्ष व्यवहार : शैक्षणिक प्रदर्शन के आधार पर भेदभाव रोकना तनाव कम करेगा।
  • जवाबदेही : संस्थानों की लापरवाही पर कानूनी एवं नियामक परिणाम सुनिश्चित होंगे।
  • जागरूकता : कर्मचारियों और अभिभावकों के लिए प्रशिक्षण एवं संवेदनशीलता कार्यक्रम मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं की पहचान में मदद करेंगे।

चुनौतियाँ

  • कार्यान्वयन : सभी संस्थानों, विशेष रूप से छोटे एवं ग्रामीण क्षेत्रों में, नीति लागू करना कठिन
  • संसाधन : प्रशिक्षित काउंसलर और बुनियादी ढांचे की कमी
  • जागरूकता की कमी : छात्रों व कर्मचारियों में मानसिक स्वास्थ्य के प्रति कम जागरूकता
  • सामाजिक कलंक : मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं को स्वीकार करने में सामाजिक बाधाएँ
  • निगरानी : जिला स्तर पर प्रभावी निगरानी एवं अनुपालन सुनिश्चित करना

आगे की राह

  • प्रशिक्षण कार्यक्रम : मानसिक स्वास्थ्य पेशेवरों की संख्या बढ़ाने के लिए प्रशिक्षण केंद्र स्थापित करना
  • जागरूकता अभियान : स्कूलों एवं कॉलेजों में मानसिक स्वास्थ्य साक्षरता को बढ़ावा देना 
  • संसाधन आवंटन : केंद्र एवं राज्य सरकारों द्वारा मानसिक स्वास्थ्य नीतियों के लिए अधिक बजट
  • डिजिटल सहायता : टेली-मानस जैसे हेल्पलाइन को अधिक सुलभ बनाना
  • सामुदायिक भागीदारी : अभिभावकों एवं स्थानीय समुदायों को नीति कार्यान्वयन में शामिल करना
  • नियमित मूल्यांकन : वार्षिक समीक्षा एवं डाटा संग्रह के माध्यम से नीति की प्रभावशीलता की निगरानी
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