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जलानाथेश्वर मंदिर

(प्रारंभिक परीक्षा : सामान्य अध्ययनप्रश्नपत्र-1)
(मुख्य परीक्षा : सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र-1 भारतीय विरासत और संस्कृति, भारतीय संस्कृति में प्राचीन काल से आधुनिक काल तक के कला के रूप, साहित्य और वास्तुकला के मुख्य पहलू )

चर्चा में क्यों 

हाल ही में थक्कोलम स्थित जलानाथेश्वर मंदिर के जीर्णोद्धार की आवश्यकता को रेखांकित किया गया है।

जलानाथेश्वर मंदिर के बारे में 

  • अवस्थिति : यह मंदिर तमिलनाडु के रानीपेट जिले में थक्कोलम के समीप कोसास्थलाई नदी के के तट पर स्थित है। 
    • थक्कोलम का मूल नाम थिरुवुरल है। शैव गायकों द्वारा इष्टदेव की स्तुति में गाए गए भजनों में शहर का नाम थिरुवुरल ही लिखा गया है।
  • मंदिर में कुल 51 शिलालेख पाए गए हैं जिनमें थिरुवुरल शहर का उल्लेख मिलता है। 
    • इसमें पल्लव राजा अपराजित के भी शिलालेख शामिल हैं। 
    • शिलालेखों में मंदिर को दिए गए अनुदान, भूमि, सोना और बकरियों का उल्लेख है।
  • निर्माण : मूल रूप से मंदिर का निर्माण पल्लव राजाओं द्वारा करवाया गया था  और बाद में चोल तथा होयसल राजाओं द्वारा इसमें अनेक सुधार एवं परिवर्धन किए गए थे।
    • मंदिर के 3 मंजिला राजगोपुरम का निर्माण वर्ष 1543 ई. में विजयनगर के राजा वीर प्रताप सदाशिव महारायर द्वारा करवाया गया था। 
  • मंदिर निर्माण शैली : द्रविड़  शैली
  • प्रमुख विशेषताएँ : 
    • यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है जिन्हें जलानाथेश्वर के नाम से जबकि उनकी पत्नी के रूप में देवी पार्वती को गिरिराज कन्निकंबल के नाम से जाना जाता है। 
      • भगवान शिव को थिरुवुरलकत्राली महादेव के रूप में भी जाना जाता है।
    • ऐसा माना जाता है यहाँ स्थित शिवलिंग का रंग हर मौसम के साथ बदलता है। 
    • यहाँ भगवान नटराज, अय्यप्पन, गणेश, मुरुगन, पंचलिंगम, नवग्रहम, चंडीकेश्वर, कालभैरवर, नाग देवता, दक्षिणामूर्ति आदि की मूर्तियाँ स्थापित हैं। 
      • इसे टोंडाई क्षेत्र में देवरा पाडल पेट्रा स्थलम (भगवान शिव के 274 सबसे महत्वपूर्ण मंदिर) में से 12वां माना जाता है
    • टोंडाई क्षेत्र पल्लव राजवंश से संबंधित ऐतिहासिक क्षेत्र है जिसे टोंडैनाडु के नाम से भी जाना जाता है। इसके अंतर्गतत तमिलनाडु का  उत्तरी भाग और आंध्र प्रदेश के दक्षिण का कुछ क्षेत्र शामिल है।  

इसे भी जानिए

मंदिर वास्तुकला की द्रविड़ शैली

  • द्रविड़ शैली की शुरुआत 8वीं शताब्दी में पल्लव राजाओं द्वारा मानी जाती है।  चोल काल में द्रविड़ शैली अपनी चरम पर थी तथा विजयनगर काल के बाद से यह ह्रासमान हुई।
  • क्षेत्र: कृष्णा नदी से लेकर कन्याकुमारी तक 
  • प्रमुख विशेषताएँ: प्राकार (चहारदीवारी), गोपुरम (प्रवेश द्वार), वर्गाकार या अष्टकोणीय गर्भगृह (रथ), पिरामिडनुमा शिखर, मंडप (नंदी मंडप) विशाल संकेन्द्रित प्रांगण तथा अष्टकोण मंदिर संरचना।
  • यूनेस्को की विश्व विरासत सूची में शामिल तंजौर का वृहदेश्वर मंदिर (चोल शासक राजराज- द्वारा निर्मित) द्रविड़ शैली का महत्त्वपूर्ण उदाहरण है।
  • द्रविड़ शैली के अंतर्गत ही आगे नायक शैली का विकास हुआ जिसके प्रमुख उदाहरण मीनाक्षी मंदिर (मदुरै), रंगनाथ मंदिर (श्रीरंगम, तमिलनाडु), रामेश्वरम् मंदिर हैं।
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