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दलबदल विरोधी याचिका पर सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय

(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 2: विभिन्न घटकों के बीच शक्तियों का पृथक्करण, विवाद निवारण तंत्र तथा संस्थान, जन प्रतिनिधित्व अधिनियम की मुख्य विशेषताएँ)

संदर्भ

सर्वोच्च न्यायालय ने दलबदल रोधी याचिकाओं पर निर्णय लेने में अध्यक्षों (Speakers) द्वारा की जाने वाली लगातार देरी का उल्लेख करते हुए संसद से इस पर पुनर्विचार करने का आग्रह किया है कि क्या वर्तमान प्रणाली इसके लोकतांत्रिक उद्देश्य की पूर्ति करती है।

हालिया घटनाक्रम 

  • सर्वोच्च न्यायालय ने तेलंगाना विधानसभा अध्यक्ष द्वारा दलबदल रोधी याचिकाओं पर कार्रवाई में देरी पर चिंता व्यक्त की और दसवीं अनुसूची के तहत संवैधानिक दायित्वों और समय पर निर्णय लेने की आवश्यकता पर प्रकाश डाला।
  • मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई की अध्यक्षता वाली पीठ ने संवैधानिक आदेश के बावजूद पहले दायर की गई कई दलबदल रोधी याचिकाओं पर निर्णय लेने में तेलंगाना विधानसभा अध्यक्ष की निष्क्रियता पर सवाल उठाया।
    • पीठ ने तेलंगाना विधानसभा अध्यक्ष को दलबदल रोधी कार्यवाही पर तीन महीने के भीतर निर्णय लेने का आदेश दिया।
  • ये याचिकाएँ भारत राष्ट्र समिति (BRS) के कई विधायकों के खिलाफ दायर की गई थीं, जिन्होंने दल बदल लिया था। यह मामला अध्यक्ष के समक्ष बिना किसी समाधान के लंबित है।
  • सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट किया कि दसवीं अनुसूची के तहत एक न्यायाधिकरण के रूप में कार्य करते हुए अध्यक्ष को उच्च न्यायालयों या सर्वोच्च न्यायालय द्वारा न्यायिक समीक्षा से कोई संवैधानिक छूट प्राप्त नहीं है।

संवैधानिक प्रावधान 

  • दसवीं अनुसूची (दलबदल रोधी कानून) के तहत अध्यक्ष अयोग्यता के मामलों पर निर्णय लेने के लिए सक्षम प्राधिकारी हैं। 
    • हालाँकि, अनुच्छेद 212 निष्क्रियता के मामलों में अध्यक्ष को न्यायिक समीक्षा से बाहर नहीं करता है।

अनुच्छेद 212 : न्यायालयों द्वारा विधान-मंडल की कार्यवाहियों की जांच न किया जाना-

(1) राज्य के विधान-मंडल की किसी कार्यवाही की विधिमान्यता को प्रक्रिया की किसी अभिकथित अनियमितता के आधार पर प्रश्नगत नहीं किया जाएगा।

(2) राज्य के विधान-मंडल का कोई अधिकारी या सदस्य, जिसमें इस संविधान द्वारा या इसके अधीन उस विधान-मंडल में प्रक्रिया या कार्य संचालन का विनियमन करने की अथवा व्यवस्था बनाए रखने की शक्तियां निहित हैं, उन शक्तियों के अपने द्वारा प्रयोग के विषय में किसी न्यायालय की अधिकारिता के अधीन नहीं होगा।

सर्वोच्च न्यायालय की मुख्य टिप्पणियाँ

  • समय पर कार्रवाई का अभाव : सर्वोच्च न्यायालय ने संविधान की दसवीं अनुसूची के तहत दायर अयोग्यता याचिकाओं पर अध्यक्षों और सभापतियों द्वारा निष्पक्ष एवं शीघ्र कार्रवाई करने में विफल रहने पर चिंता व्यक्त की।
  • दलबदल की बुराई को समाप्त करना : सर्वोच्च न्यायालय ने टिप्पणी की कि दलबदल रोधी कानून का उद्देश्य लोकतांत्रिक संस्थाओं की गरिमा को बनाए रखना और राजनीतिक दलबदल पर अंकुश लगाना था किंतु वर्तमान देरी इस उद्देश्य को विफल कर रही है।
  • संसद की भूमिका : सर्वोच्च न्यायालय ने संसद से इस बात की समीक्षा करने का आग्रह किया कि क्या दलबदल के मामलों पर निर्णय लेने की ज़िम्मेदारी पीठासीन अधिकारियों पर बनी रहनी चाहिए, जो प्राय: राजनीतिक दलों से जुड़े होते हैं और पक्षपातपूर्ण तरीके से कार्य कर सकते हैं।
  • अध्यक्ष का संवैधानिक कर्तव्य : न्यायालय ने इस बात पर बल दिया कि अध्यक्ष का पद निष्पक्षता की माँग करता है किंतु व्यवहार में निर्णय प्राय: विलंबित होने के साथ ही पक्षपातपूर्ण विचारों से प्रभावित होते हैं।

पूर्व न्यायिक निर्णय 

  • कीशम मेघचंद्र सिंह बनाम अध्यक्ष (2020) : इस वाद में सर्वोच्च न्यायालय ने फैसला सुनाया कि अध्यक्षों को अयोग्यता के मामलों का फैसला 3 महीने के भीतर करना होगा, जब तक कि असाधारण कारण न हों।
  • राजेंद्र सिंह राणा मामला (2007) : इस वाद में इस बात पर प्रकाश डाला गया कि कार्रवाई में देरी कैसे दलबदल वालों को राजनीतिक प्रक्रिया में हेरफेर करने तथा पद का लाभ उठाने का मौका दे सकती है।

सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय का महत्त्व 

  • विधायी निष्क्रियता पर न्यायिक निगरानी को सुदृढ़ करता है।
  • दलबदल रोधी याचिकाओं के समयबद्ध निपटान के संबंध में संवैधानिक सुधारों को बल मिल सकता है।
  • विभिन्न विधि आयोग की रिपोर्ट्स एवं सर्वोच्च न्यायालय द्वारा अनुशंसित दलबदल मामलों पर निर्णय लेने के लिए एक स्वतंत्र न्यायाधिकरण की आवश्यकता को रेखांकित करता है।

सरकार के लिए निहितार्थ

  • सुधार की आवश्यकता : सर्वोच्च न्यायालय का नवीनतम फैसला अयोग्यता के मामलों पर फैसला करने के लिए न्यायाधिकरण या चुनाव आयोग जैसे एक स्वतंत्र तंत्र की माँग को मज़बूत करता है।
  • लोकतांत्रिक नैतिकता को बनाए रखना : यह सुनिश्चित करता है कि संवैधानिक पद गैर-पक्षपाती रहें और दलबदल वालों को देरी की रणनीति के ज़रिए पुरस्कृत न किया जाए।
  • लम्बित सुधार : विधि आयोग और विभिन्न समितियों ने पूर्व में अध्यक्ष से अयोग्यता निर्धारण की शक्तियों को समाप्त करने के लिए संशोधनों की सिफारिश की है।

निष्कर्ष 

सर्वोच्च न्यायालय की टिप्पणी संवैधानिक पदों पर राजनीतिक हेरफेर के प्रति बढ़ती न्यायिक सक्रियता को दर्शाता है। अब संसद पर यह दायित्व है कि वह संस्थागत सुधारों पर विचार करे जिससे दलबदल के मामलों का समय पर और निष्पक्ष एवं पारदर्शी निर्णय सुनिश्चित हो सके।

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