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झारखण्ड अधिवास नीति 

(प्रारंभिक परीक्षा- लोकनीति, अधिकारों संबंधी मुद्दे)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 2 : सरकारी नीतियों और विभिन्न क्षेत्रों में विकास के लिये हस्तक्षेप और उनके अभिकल्पन तथा कार्यान्वयन के कारण उत्पन्न विषय, जनसंख्या के अति संवेदनशील वर्गों के लिये कल्याणकारी योजनाएँ)

संदर्भ 

हाल ही में, झारखण्ड मंत्रिमंडल ने ‘झारखण्ड स्थानीय निवासी विधेयक’, 2022 के मसौदे को स्वीकृति प्रदान कर दी है। साथ ही, राज्य मंत्रिमंडल ने झारखण्ड में आरक्षण के विस्तार से संबंधित प्रस्ताव को भी अनुमोदित कर दिया है।

झारखण्ड अधिवास नीति 

  • झारखंड के स्थानीय निवासी को परिभाषित करने के उद्देश्य से ‘भूमि अभिलेख के प्रमाण’ के लिये वर्ष 1932 को कट-ऑफ वर्ष माना गया है।
  • साथ ही, राज्य के वे निवासी जिनके पास भूमि नहीं है अथवा जिनके नाम या जिनके परिवारों के नाम वर्ष 1932 के खतियान में दर्ज नहीं हैं उन्हें ग्राम सभाओं के माध्यम से सत्यापित किया जाएगा। 
  • उल्लेखनीय है कि खतियान (Khatiyan) किसी व्यक्ति के भूमि दस्तावेज़ का प्रमाण है।
  • हालाँकि, लगभग छह माह पूर्व झारखण्ड सरकार ने संकेत दिया था कि वर्ष 1932 को अधिवास का एकमात्र आधार नहीं माना जाएगा।
  • विदित है कि वर्ष 2016 में झारखण्ड सरकार ने एक रियायती अधिवास नीति अधिसूचित किया था जिसमें राज्य के अधिवास से संबंधित छ: मानकों का उल्लेख किया गया था। 
  • विशेषज्ञों ने इस नीति में राज्य के आदिवासी समुदायों को प्राथमिकता न दिये जाने के कारण इसे त्रुटिपूर्ण माना था।

आरक्षण से संबंधित विधेयक 

  • दूसरा विधेयक राज्य में आरक्षण व्यवस्था में परिवर्तन से संबंधित है। 
  • झारखण्ड की वर्तमान आरक्षण व्यवस्था में अनुसूचित जनजाति के लिये 26%, अनुसूचित जाति के लिये 10% तथा अन्य पिछड़ा वर्ग के लिये 14% आरक्षण की व्यवस्था प्रचलित है।
  • आरक्षण की नई व्यवस्था में अनुसूचित जनजाति के लिये 28%, अनुसूचित जाति के लिये 12% तथा पिछड़े वर्गों के लिये 27% (OBC+EBC) आरक्षण का प्रस्ताव किया गया है।
  • अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) के लिये 12% और अत्यंत पिछड़ा वर्ग (EBC) के लिये 15% का प्रावधान है।
  • उल्लेखनीय है कि नई व्यवस्था लागू होने के  बाद झारखण्ड में आरक्षण 50% से बढ़कर 67% हो जाएगा। 
  • यह आरक्षण की अधिकतम 50% की सीमा को पार कर जाएगा।

नौवीं अनुसूची में शामिल करने की मांग 

  • राज्य विधायिका द्वारा विधेयक पारित हो जाने के बाद इसे राज्यपाल के बजाए केंद्र सरकार के पास भेजा जाएगा। 
  • इनको केंद्र सरकार के पास भेजे जाने का उद्देश्य नौवीं अनुसूची में संशोधन की मांग करना है, जिससे इन दोनों विधेयकों को नौवीं अनुसूची में शामिल किया जा सके। 
  • नौवीं अनुसूची में शामिल कराने से इनको न्यायिक समीक्षा से बचाया जा सकता है। 

नौवीं अनुसूची 

  • संविधान की नौवीं अनुसूची केंद्र और राज्य सरकार के कानूनों की एक ऐसी सूची है, जिन्हें न्यायालय के समक्ष चुनौती नहीं दी जा सकती।  अर्थात सामान्यत: उनकी न्यायिक समीक्षा नहीं की जा सकती है। 
  • इस अनुसूची को वर्ष 1951 के प्रथम संविधान संशोधन अधिनियम के माध्यम से भारतीय संविधान में शामिल किया गया था। इस अनुसूची में शामिल विभिन्न कानूनों को संविधान के अनुच्छेद 31B के तहत संरक्षण प्राप्त होता है।
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