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हिजाब विवाद पर कर्नाटक उच्च न्यायालय का निर्णय

संदर्भ

हाल ही में, कर्नाटक उच्च न्यायालय ने ‘रेशम बनाम कर्नाटक सरकार वाद’ (2022) में निर्णय दिया कि हिजाब पहनना इस्लाम का अनिवार्य हिस्सा नहीं है। उच्च न्यायालय के इस निर्णय के आलोक में हिजाब विवाद से जुड़े विभिन्न पहलुओं पर चर्चा करना आवश्यक है। 

पृष्ठभूमि

  • कर्नाटक के एक सरकारी कॉलेज द्वारा कुछ मुस्लिम छात्राओं को हिजाब पहनने के कारण प्रवेश से वंचित करने के बाद विवाद उत्पन्न हो गया। मुस्लिम छात्राओं का तर्क था कि हिजाब पहनना उनके धार्मिक और सांस्कृतिक अभ्यास का हिस्सा है।
  • याचिकाकर्ताओं ने 5 फरवरी के एक सरकारी आदेश को भी चुनौती दी, जिसमें कहा गया था कि हिजाब पर प्रतिबंध लगाने से अनुच्छेद 25 का उल्लंघन नहीं होगा और छात्रों को संबंधित कॉलेज विकास समितियों द्वारा निर्धारित ड्रेस कोड के अनुसार कपड़े पहनने का आदेश दिया गया था।
  • इस मामले को पहले एकल पीठ के समक्ष सूचीबद्ध किया गया था, जिसने याचिकाओं को बड़ी पीठ के पास भेज दिया क्योंकि इसमें ‘मौलिक महत्त्व के प्रश्न’ शामिल थे।

उच्च न्यायालय का निर्णय

  • उच्च न्यायालय ने निर्णय दिया कि हिजाब पहनना इस्लाम का अनिवार्य हिस्सा नहीं है, अत: यह संविधान द्वारा अनुच्छेद 25 के तहत प्रदत्त धार्मिक स्वंत्रता के अधिकार का उल्लंघन नहीं करता है।
  • उच्च न्यायालय का तर्क है कि संविधान द्वारा प्रदत्त मौलिक अधिकारों पर स्वास्थ्य, नैतिकता व सार्वजनिक व्यवस्था के आधार पर प्रतिबंध लगाया जा सकता है।
  • अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और निजता के वास्तविक अधिकार का दावा कक्षा के भीतर नहीं किया जा सकता है। न्यायालय कक्षा को ‘सार्वजनिक स्थान’ के रूप में वर्गीकृत करता है।
  • सरकार का आदेश अपने आप में हिजाब के उपयोग पर प्रतिबंध नहीं लगाता है, अत: यह आदेश तटस्थ है, जिसमें मुस्लिम छात्राओं के साथ कोई भेदभाव नहीं है।

निर्णय संबंधी आलोचनात्मक पहलू 

  • भारतीय संविधान की प्रस्तावना में स्वतंत्रता, समानता तथा बंधुत्व की कल्पना एक त्रि-यक के रूप में की गई थी। इनमें से किसी एक का भी उल्लंघन लोकतंत्र के उद्देश्य को ही विफल कर देता है। याचिकाकर्ता का तर्क है कि उच्च न्यायालय के इस निर्णय में सामूहिक नैतिकता को लागू करने के लिये व्यक्तिगत अधिकारों को कम महत्त्व दिया गया है। यह प्रस्तावना में उल्लिखित त्रि-यक की अवहेलना करता है। 
  • इस निर्णय के माध्यम से न्यायालय ने केवल उन आवश्यक धार्मिक प्रथाओं (Essential Religious Practices: ERP) का उल्लेख किया जिन्हें संवैधानिक संरक्षण प्राप्त है। इनमें धार्मिक स्वतंत्रता के वैध अभ्यास के रूप में हिजाब पहनना शामिल नहीं था। इसी तरह सर्वोच्च न्यायालय ने वर्ष 2004 में तांडव नृत्य प्रदर्शन को आनंद मार्गी आस्था का अनिवार्य हिस्सा नहीं माना था।
  • इस विवाद में व्यक्तिगत स्वतंत्रता सामूहिक अधिकारों के विपरीत नहीं थी, बल्कि राज्य की कार्यवाही द्वारा चयन की स्वतंत्रता पर प्रतिबंध आरोपित किया गया था।
  • याचिकाकर्ता ने हिजाब पहनने को अंतरात्मा की स्वतंत्रता (Freedom of Conscience) का हिस्सा बताया, जो संविधान के अनुच्छेद 25 के तहत संरक्षित है। साथ ही याची द्वारा वर्ष 1986 के बिजो इमैनुएल वाद (1986) को आधार बनाया गया, जिसमें सर्वोच्च न्यायालय ने एक छात्र के राष्ट्रगान न गाने के अधिकार से संबंधित अंतरात्मा की स्वतंत्रता की रक्षा की।
  • हालिया हिजाब वाद में न्यायालय ने ‘अंतरात्मा की भावना’ से प्रेरित होकर हिजाब पहनने की अवधारणा को साबित करने का दायित्व छात्रों पर आरोपित किया है, जबकि यह स्थापित करने की जिम्मेदारी राज्य पर होनी चाहिये थी कि छात्र अंतरात्मा की भावना से हिजाब नहीं पहन रहे थे। 
  • इस वाद में न्यायालय ने यह निर्धारित करने की उपेक्षा की है कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार को कब और कैसे वैध रूप से सीमित किया जा सकता है।

निष्कर्ष

कर्नाटक उच्च न्यायालय के इस निर्णय के विरुद्ध सर्वोच्च न्यायालय ने याचिका स्वीकार कर ली है, जो इस मुद्दे पर निर्णायक व अंतिम आदेश जारी करेगा। हालाँकि, इस मुद्दे के संदर्भ में आवश्यक है कि मौलिक अधिकारों पर युक्तियुक्त प्रतिबंध ही आरोपित किये जाएँ, ताकि संविधान की प्रस्तावना में उल्लिखित स्वतंत्रता, समानता व बंधुत्व के त्रि-यक को अक्षुण्ण रखा जा सके।

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