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सिविल सेवाओं में लेटरल एंट्री क्या है ?विस्तृत व्याख्या और संबंधित मुद्दे

चर्चा में क्यों ?

  • हाल ही में केंद्र सरकार ने सचिव और संयुक्त सचिव के 45 पदों पर लेटरल एंट्री के जरिए भर्ती के लिए संघ लोक सेवा आयोग (UPSC) द्वारा जारी विज्ञापन को वापस ले लिया। 
  • इस कदम ने सुर्ख़ियां बटोरीं और लेटरल एंट्री की प्रणाली पर व्यापक बहस छेड़ दी।

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लेटरल एंट्री का तात्पर्य

  • लेटरल एंट्री का उद्देश्य सरकारी मंत्रालयों और विभागों में मध्य और वरिष्ठ स्तर के पदों पर नियुक्ति के लिए पारंपरिक सरकारी सेवा संवर्गों के बाहर से योग्य व्यक्तियों को शामिल करना है। 
  • यह भर्ती संविदात्मक आधार पर की जाती है, आमतौर पर 3 से 5 वर्षों की अवधि के लिए, और प्रदर्शन के आधार पर कार्यकाल बढ़ाया जा सकता है। 
  • उदाहरण के तौर पर भारत में मुख्य आर्थिक सलाहकार (CEA) की नियुक्ति इसी प्रणाली के माध्यम से होती है।
  • लेटरल एंट्री प्रणाली निजी क्षेत्र के पेशेवरों को सलाहकारी भूमिकाओं के लिए नियुक्त करने से अलग है। 
  • यह उन पदों पर लागू होती है जिनके लिए विशेष विशेषज्ञता की आवश्यकता होती है, जैसे अर्थशास्त्र, वित्त, तकनीकी नवाचार आदि।

अंतरराष्ट्रीय संदर्भ

  • ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका और यूनाइटेड किंगडम जैसे देशों में डायरेक्ट एंट्री (परीक्षा के माध्यम से) और लेटरल एंट्री दोनों प्रणालियाँ अपनाई जाती हैं।
  • इससे सरकार को अपने प्रशासन में विशेषज्ञता और अनुभव का मिश्रण उपलब्ध होता है।

भारतीय नौकरशाही में लेटरल एंट्री का विकास

  • 1966 प्रथम प्रशासनिक सुधार आयोग ने पहली बार लेटरल एंट्री का प्रस्ताव रखा।
  • 2005द्वितीय प्रशासनिक सुधार आयोग ने इसे संस्थागत बनाने की सिफारिश की।
  • 2016 संसदीय स्थायी समिति ने प्रशासन में विविध क्षेत्रों से प्रतिष्ठित व्यक्तियों को शामिल करने की सलाह दी।
  • 2018सरकार ने आधिकारिक रूप से लेटरल एंट्री भर्तियों की घोषणा की।

लेटरल एंट्री के लाभ

  • अधिकारियों की कमी को पूरा करना:-DOPT की 2023-24 की रिपोर्ट के अनुसार, केंद्र सरकार में केवल 442 IAS अधिकारी कार्यरत हैं, जबकि आवश्यकता 1,469 पदों की है।
  • प्रशासनिक क्षमता में वृद्धि:-नीति आयोग के अनुसार, लेटरल एंट्री से प्रतिस्पर्धा बढ़ती है और नौकरशाही में दक्षता आती है।
  • विशेषज्ञता का लाभ:-निजी क्षेत्र के अनुभवी व्यक्तियों को शामिल करने से अर्थशास्त्र, रोबोटिक्स, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, क्रिप्टोकरेंसी जैसी तकनीकों में नए दृष्टिकोण और समाधान मिलते हैं।
  • विभागीय आवश्यकताओं की पूर्ति:-कुछ मंत्रालयों और विभागों को विशिष्ट तकनीकी या व्यावसायिक विशेषज्ञता की जरूरत होती है, जैसे नागर विमानन, पर्यावरण संरक्षण आदि।

लेटरल एंट्री के साथ जुड़े मुद्दे

  • अल्पकालिक फोकस: 3 से 5 साल की संविदात्मक अवधि होती है, जिससे दीर्घकालिक प्रशासनिक स्थिरता पर प्रभाव पड़ सकता है।
  • सामाजिक न्याय में टकराव:
    लेटरल एंट्री पदों पर आरक्षण लागू नहीं होता, क्योंकि ये पद एकल-पद कैडर में आते हैं। सुप्रीम कोर्ट ने अखिलेश कुमार सिंह बनाम राम दवन (2015) में यह माना कि एकल-पद में आरक्षण लागू न करना संविधान के अनुच्छेद 16(1) और 16(4) का उल्लंघन है।
  • हितों का टकराव: निजी क्षेत्र से आए अधिकारी सरकारी नीतियों को लाभ के लिए प्रभावित कर सकते हैं।
  • जवाबदेही और पारदर्शिता: संविदात्मक पदों पर कार्यरत अधिकारी सीधे जवाबदेह नहीं होते, जिससे प्रशासनिक जवाबदेही पर असर पड़ सकता है।
  • जमीनी स्तर का अनुभव: निजी क्षेत्र के पेशेवरों में प्रशासनिक और क्षेत्रीय अनुभव की कमी हो सकती है।
  • राजनीतिक हस्तक्षेप: चयन प्रक्रिया में पक्षपात और भाई-भतीजावाद के खतरे रहते हैं।

आरक्षण से जुड़ी व्याख्या

  • लेटरल एंट्री में जारी विज्ञापन में 45 पदों का एकल-पद कैडर था।
  • "13-पॉइंट रोस्टर" के अनुसार, 3 पदों तक आरक्षण लागू नहीं होता।
  • इसलिए लेटरल एंट्री में आरक्षण नहीं दिया गया।
  • DoPT ने 2018 में UPSC को पत्र लिखकर कहा कि यदि योग्य SC, ST या OBC उम्मीदवार हैं, तो उन पर विचार किया जाना चाहिए।

आगे की राह और सुधार सुझाव

  • लोक प्रशासन विश्वविद्यालय की स्थापना:
    इससे सेवारत नौकरशाह विशेषज्ञता और प्रबंधकीय कौशल विकसित कर सकते हैं।
  • निजी क्षेत्र में प्रतिनियुक्ति:
    IAS और IPS अधिकारियों को निजी क्षेत्र में भेजकर डोमेन आधारित विशेषज्ञता और प्रतिस्पर्धा सुनिश्चित की जा सकती है।
  • उद्देश्य निर्धारण और ट्रैकिंग:
    प्रत्येक मंत्रालय/एजेंसी को परिणाम-आधारित लक्ष्य निर्धारित करने चाहिए और उनके प्रदर्शन का समय-सीमा के साथ मूल्यांकन होना चाहिए।
  • मध्य-करियर प्रशिक्षण:
    क्षमता निर्माण आयोग और मिशन कर्मयोगी जैसी योजनाओं से अधिकारी विशेषज्ञता हासिल कर सकते हैं।
  • करियर प्रबंधन को बढ़ावा:
    नौकरशाहों को शुरुआती वर्षों में विविध क्षेत्रों में अनुभव लेने और बाद में विशेष डोमेन में विशेषज्ञता प्राप्त करने की अनुमति दी जानी चाहिए।
  • दो-स्तरीय प्रवेश प्रक्रिया:
    पूर्व RBI गवर्नर डी. सुब्बाराव ने 25-30 वर्ष की आयु वर्ग के लिए सामान्य प्रवेश और 37-42 वर्ष की आयु वर्ग के लिए लेटरल एंट्री की सिफारिश की।

निष्कर्ष

  • लेटरल एंट्री भारत में नौकरशाही में विशेषज्ञता और दक्षता बढ़ाने का एक आधुनिक तरीका है। 
  • हालांकि, इसकी सफलता सामाजिक न्याय, जवाबदेही, और पारदर्शिता सुनिश्चित करने पर निर्भर करती है। 
  • उचित सुधार और संस्थागत तंत्र के साथ, लेटरल एंट्री भारतीय प्रशासनिक प्रणाली में सकारात्मक बदलाव और नवाचार ला सकती है।
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