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मैनुअल स्कैवेंजिंग : भारत में प्रचलित एक कुप्रथा

संदर्भ

हाल ही में, मुंबई में हाथ से मैला ढोने के लिये काम पर रखे गए कुछ मजदूरों की सेप्टिक टैंक में जहरीले धुएँ के कारण मौत हो गई। इस प्रकार यह कुप्रथा पुन: चर्चा के केंद्र में है।

हाथ से मैला ढोने की प्रथा (मैनुअल स्कैवेंजिंग)

  • मैनुअल स्कैवेंजिंग सीवर या सेप्टिक टैंक से मानव मल को हाथ से हटाने की प्रथा है। भारत ने ‘मैनुअल स्कैवेंजर्स के नियोजन का प्रतिषेध और उनका पुनर्वास अधिनियम, 2013’ के तहत इस प्रथा पर प्रतिबंध लगाया। 
  • यह अधिनियम किसी भी व्यक्ति के मानव मल को उसके निपटान तक मैन्युअल रूप से साफ करने, ले जाने, निपटाने या अन्यथा किसी भी तरीके से संभालने पर प्रतिबंध लगाता है। 
  • विदित है कि वर्ष 2013 में सेप्टिक टैंक, गड्ढों या रेलवे ट्रैक को साफ करने के लिये नियोजित लोगों को शामिल करने के लिये मैनुअल स्कैवेंजिंग की परिभाषा को भी विस्तृत किया गया था। 
  • यह अधिनियम मैनुअल स्कैवेंजिंग को ‘अमानवीय प्रथा’ के रूप में मान्यता देता है और मैनुअल स्कैवेंजर्स द्वारा झेले गए ऐतिहासिक अन्याय और अपमान की क्षतिपूर्ति की आवश्यकता पर बल देता है।

वर्तमान भारत में प्रचलन

सफाई कर्मचारी आंदोलन के संस्थापक और राष्ट्रीय संयोजक बेजवाड़ा विल्सन के अनुसार, वर्ष 2016 से 2020 तक मैनुअल स्कैवेंजिंग के कारण 472 मौतें दर्ज की गई हैं। इसके प्रमुख कारण अग्रलिखित हैं-

  • जागरूकता का अभाव: इस क्षेत्र में कार्यरत अधिकांश मजदूर वंचित वर्गों से आते हैं, जो सामान्यतः अपने अधिकारों के प्रति जागरूक नहीं होते हैं।
  • मशीनीकरण की उच्च लागत: नगर निकायों द्वारा सेप्टिक टैंक की सफाई के लिये अधिक शुल्क लिया जाता है। इसकी तुलना में अकुशल मजदूरों को काम पर रखना आर्थिक दृष्टिकोण से अधिक सुलभ है।
  • मजदूरों की सहज उपलब्धता: भारत में अभी भी अति-निम्न वर्ग के अकुशल श्रमिकों की संख्या अधिक है। ठेकेदार उन्हें 300-500 रुपए के दैनिक वेतन पर अवैध रूप से रोज़गार देते हैं।
  • जातीय संरचना: भारत में जातीय पदानुक्रम कि व्यवस्था अभी भी मौजूद है। यह जाति के साथ व्यवसाय के संबंधों को मज़बूत बनाता है।

उन्मूलन हेतु सरकारी प्रयास

  • मैनुअल स्कैवेंजर्स के नियोजन का प्रतिषेध और उनका पुनर्वास (संशोधन) विधेयक, 2020: यह विधेयक सीवर और सेप्टिक टैंक की सफाई की प्रक्रिया को पूरी तरह से मशीनीकृत करने का प्रस्ताव करता है और मृत्यु की स्थिति में मुआवज़े के लिये कानूनी आधार प्रदान करता है। 
  • मैनुअल स्कैवेंजर्स के नियोजन का प्रतिषेध और उनका पुनर्वास अधिनियम, 2013: यह अधिनियम शुष्क शौचालयों पर प्रतिबंध से आगे बढ़कर अस्वच्छ शौचालयों, खुली नालियों या गड्ढों की सभी मैनुअल तरीके से मलमूत्र सफाई को गैरक़ानूनी घोषित करता है।
  • राष्ट्रीय गरिमा अभियान: इस अभियान के तहत 30 नवंबर, 2012 से भोपाल से हाथ से मैला ढोने की प्रथा के पूर्ण उन्मूलन के लिये राष्ट्रीय स्तर पर ‘मैला मुक्ति यात्रा’ की शुरूआत की गई।
  • अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निरोधक) अधिनियम, 1989: मैनुअल स्कैवेंजिंग में लगे अधिकांश श्रमिक निचली जातियों से संबंधित हैं, अत: यह अधिनियम इन श्रमिकों को सुरक्षा प्रदान करता है।
  • क्षतिपूर्ति: ‘सफाई कर्मचारी आंदोलन बनाम भारत संघ’ मामले में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिये गए एक निर्णय के तहत पीड़ित परिवार को 10 लाख रुपए का मुआवज़े का प्रावधान है।

निष्कर्ष

  • एक अमानवीय प्रथा के रूप में मैनुअल स्कैवेंजिंग का उन्मूलन अपरिहार्य है। स्थानीय अधिकारियों द्वारा मैला ढोने वालों की संलिप्तता के विरुद्ध नियमित सर्वेक्षण और सामाजिक लेखा परीक्षण किया जाना चाहिये। 
  • इसमें संलिप्त श्रमिकों को आवश्यक प्रशिक्षण कौशल प्रदान कर वैकल्पिक रोज़गार की सुविधा उपलब्ध कराई जानी चाहिये। साथ ही, इन श्रमिकों को मिले क़ानूनी संरक्षण के संदर्भ में जागरूक किये जाने की आवश्यकता है।
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