
- भारतीय साहित्य के इतिहास में मुंशी प्रेमचंद का नाम एक ऐसे रचनाकार के रूप में अमर है, जिन्होंने अपनी कलम से समाज की आत्मा को शब्द दिए।
- वे केवल लेखक नहीं, बल्कि जनजीवन के प्रवक्ता थे। प्रेमचंद की रचनाओं में वह शक्ति है जो आज भी समाज की अन्यायपूर्ण संरचनाओं को आईना दिखाती है।
- 8 अक्टूबर को उनकी पुण्यतिथि हमें याद दिलाती है कि साहित्य केवल कल्पना नहीं, बल्कि जीवंत यथार्थ का संवेदनशील दस्तावेज़ भी होता है।
जीवन परिचय
- मुंशी प्रेमचंद का जन्म 31 जुलाई 1880 को लमही गाँव (वाराणसी) में हुआ था। उनका असली नाम धनपत राय श्रीवास्तव था।
- वे प्रारंभ में शिक्षक बने और बाद में स्कूल इंस्पेक्टर के पद तक पहुँचे।
- उन्होंने अपने लेखन की शुरुआत उर्दू भाषा से की और “नवाब राय” नाम से प्रारंभिक रचनाएँ लिखीं।
- जब उनकी कहानी-संग्रह ‘सोज़-ए-वतन’ (1908) अंग्रेजी हुकूमत द्वारा जब्त कर लिया गया, तो उन्होंने "मुंशी प्रेमचंद" नाम से हिंदी में लेखन शुरू किया।
साहित्यिक योगदान
मुंशी प्रेमचंद ने साहित्य को समाज सुधार का साधन बनाया। उन्होंने अपनी कहानियों और उपन्यासों में भारतीय समाज की गरीबी, शोषण, जातिवाद, नारी की पीड़ा और किसान जीवन की त्रासदी को गहराई से उकेरा।
प्रमुख उपन्यास
- गोदान – किसान “होरी” के माध्यम से भारतीय ग्रामीण जीवन की व्यथा-कथा।
- गबन – नैतिक पतन और भौतिकता की होड़ का चित्रण।
- सेवासदन – नारी जीवन की विवशता और वेश्यावृत्ति का यथार्थ।
- कर्मभूमि – नैतिकता, त्याग और सामाजिक कर्तव्य का सशक्त संदेश।
- रंगभूमि – औद्योगीकरण के युग में मानवता और पूंजी के संघर्ष की गाथा।
प्रसिद्ध कहानियाँ
ईदगाह, पूस की रात, कफन, नमक का दरोगा, बड़े घर की बेटी, शतरंज के खिलाड़ी — ये कहानियाँ न केवल समाज का चित्रण हैं, बल्कि मानव मनोविज्ञान की गहराई को भी दर्शाती हैं।
साहित्य की विशेषताएँ
- यथार्थवाद के प्रवर्तक – उन्होंने कल्पना नहीं, समाज की सच्चाई लिखी।
- मानवता का स्वर – उनकी रचनाओं में करुणा, संवेदना और नैतिकता का गहरा भाव है।
- सरल भाषा – उन्होंने हिंदी-उर्दू मिश्रित सहज भाषा में लेखन किया, जो आमजन की भाषा थी।
- नारी और किसान जीवन का चित्रण – उनकी कलम ने समाज के उपेक्षित वर्गों को आवाज़ दी।
निधन और विरासत
- मुंशी प्रेमचंद का निधन 8 अक्टूबर 1936 को वाराणसी में हुआ। वे अपने अंतिम दिनों में भी लेखन और समाज-सेवा में सक्रिय थे।
- उनका अंतिम अधूरा उपन्यास ‘मंगलसूत्र’ उनकी असीम रचनात्मकता का प्रमाण है।
- उनकी मृत्यु के बाद भी उनका साहित्य आज उतना ही प्रासंगिक है जितना उनके समय में था।
- कफन की त्रासदी आज भी गरीबी की सच्चाई बताती है, गोदान आज भी किसान की पीड़ा कहता है, और नमक का दरोगा आज भी ईमानदारी की मिसाल पेश करता है।