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भारतीय उपमहाद्वीप में लोहे की प्राचीनता संबंधी नई खोज

(प्रारंभिक परीक्षा: भारत का प्राचीन इतिहास)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 1: भारतीय संस्कृति- प्राचीन काल से आधुनिक काल तक के कला रूप, साहित्य एवं वास्तुकला के मुख्य पहलू)

संदर्भ

हाल ही में, तमिलनाडु के मुख्यमंत्री ने ‘एंटीक्विटी ऑफ आयरन’ नामक पुस्तक का विमोचन किया। यह पुस्तक भारतीय उपमहाद्वीप में लौह की प्राचीनता से संबंधित है।

भारतीय उपमहाद्वीप में लोहे की प्राचीनता संबंधी नए अध्ययन के बारे में

  • साक्ष्य का आधार : एंटीक्विटी ऑफ आयरन’ पुस्तक में लोहे की प्राचीनता के संबंध में इतिहासकार के. राजन एवं आर. शिवनाथम ने ‘एंटीक्विटी ऑफ आयरन: रीसेंट रेडियोमेट्रिक डेट्स फ्रॉम तमिलनाडु’ नामक रिपोर्ट का उल्लेख किया है।
  • पुरातात्विक स्थल : तमिलनाडु के थूथुकुडी जिले के शिवगलाई स्थल से संबंधित नमूने प्राप्त हुए हैं।

 

पुरातात्विक रिपोर्ट के प्रमुख निष्कर्ष

  • इस रिपोर्ट के अनुसार, भारतीय उपमहाद्वीप में लौह युग की शुरूआत सर्वप्रथम आधुनिक तमिलनाडु में चौथी सहस्राब्दी ईसा पूर्व की पहली तिमाही में हुई थी।
    • अर्थात, दक्षिण भारत में 5,300 वर्ष पहले लोहे का प्रयोग किया जाता था।
    • उत्तर भारत का ताम्र युग और दक्षिण भारत का लौह युग संभवतः समकालीन रहा है।
  • हालाँकि, शिवगलाई, आदिचनल्लूर, मयिलाडुमपराई, किलनामंडी एव मंगदु में इस रिपोर्ट से पहले के उत्खनन से पता चलता है कि तमिलनाडु में लौह के प्रयोग की तिथि 2500 ईसा पूर्व एवं 3000 ईसा पूर्व के बीच रही है।

शोध विधि के बारे में

  • प्राप्त पुरातात्विक साक्ष्यों की जाँच के लिए एक्सेलरेटर मास स्पेक्ट्रोमेट्री और ऑप्टिकली स्टिम्युलेटेड ल्यूमिनेसेंस दोनों को अपनाया गया।
  • कार्बन डेटिंग विधि के परिणाम ज्ञात करने के लिए नमूने अमेरिका की बीटा एनालिटिक टेस्टिंग लैबोरेटरी, लखनऊ के बीरबल साहनी इंस्टीट्यूट ऑफ पैलियोसाइंसेज और अहमदाबाद की फिजिकल रिसर्च लैबोरेटरी भेजे गए।

खोज के महत्व

  • पुरातत्व विशेषज्ञों के अनुसार, यह केवल भारत के लिए ही नहीं, बल्कि दुनिया के पुरातत्व के संदर्भ में भी महत्वपूर्ण है।
  • अन्य धातुओं की तुलना में लौह प्रगलन (लोहे को गलाने) के लिए लगभग 1,200 से 1,400 डिग्री सेल्सियस के उच्च तापमान के साथ-साथ किसी भी सभ्यता को बेहतर तकनीक की आवश्यकता होती है।
  • यह दर्शाता है कि तमिल क्षेत्र के लोगों ने लगभग 5,300 वर्ष पूर्व लौह प्रगलन के कौशल में महारत प्राप्त कर ली थी।

मानव जाति के विकास में लोहे की भूमिका

मानव जाति के विकास में लौह प्रौद्योगिकी सबसे महत्वपूर्ण खोज है। लोहे के उपयोग ने मानव जाति के इतिहास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है क्योंकि इसका उपयोग कृषि कार्यों के लिए औजार बनाने में किया गया और इससे व्यापार में वृद्धि हुई और अंततः राज्य का गठन हुआ।

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