तमिलनाडु के कुन्नूर क्षेत्र की नीलगिरि पहाड़ियों में छिपकली की एक नई प्रजाति की खोज की गई है। यह खोज भारत की जैव विविधता एवं विशेष रूप से पश्चिमी घाट की पारिस्थितिकी में एक महत्वपूर्ण योगदान है।

नई प्रजाति के बारे में
- परिचय : यह प्रजाति द्रविड़ोगेको (Dravidogecko) वंश से संबंधित है पहले इसे हेमिडैक्टिलस अनमल्लेंसिस (Hemidactylus anamallensis) की उपप्रजाति समझी जा रही थी, लेकिन विस्तृत सर्वेक्षणों ने इसे एक अलग प्रजाति के रूप में स्थापित किया।
- इस नई खोज के साथ पश्चिमी घाटों में पाए जाने वाले द्रविड़ोगेको (Dravidogecko) की कुल प्रजातियों की संख्या अब 9 हो गई है।
- खोज स्थल : यह प्रजाति कुन्नूर क्षेत्र में स्थानिक (Endemic) है।
- निवास स्थान : यह प्रजाति कुन्नूर के शहरी एवं प्राकृतिक दोनों क्षेत्रों में पाई गई है। इसे भवनों की दीवारों, वृक्षों की छाल, पौधों की शाखाओं और दीवारों की दरारों में देखा गया है।
- पर्यावास : कुन्नूर का क्षेत्र मिश्रित मॉन्टेन वनों, एकल खेती वाले बागानों और मानव बस्तियों का मिश्रण है। इस क्षेत्र में मानव प्रभाव एवं बस्तियाँ प्रमुख हैं जहाँ वनस्पति आवरण आंशिक रूप से ही मौजूद है।
- जोखिम : शोधकर्ताओं ने इस प्रजाति को संभावित रूप से खतरे की श्रेणी में वर्गीकृत किया है क्योंकि इसका पर्यावास पूरी तरह से संरक्षित क्षेत्र नेटवर्क के बाहर है।
- आवास विखंडन, वनों की कटाई एवं जलवायु परिवर्तन इस प्रजाति की आबादी के लिए प्रमुख जोखिम है।
- इसके अतिरिक्त मानव बस्तियों के विस्तार से इसके प्राकृतिक आवास पर दबाव बढ़ रहा है।