लखनऊ स्थित बीरबल साहनी पुराविज्ञान संस्थान (BSIP) के शोधकर्ताओं की एक टीम ने असम के माकुम कोलफील्ड (Makum Coalfield) से 24 मिलियन वर्ष पुराने एक विलुप्त पौधे ‘नोथोपेजिया (Nothopegia)’ की जीवाश्मित पत्तियों की खोज की है।

खोज से संबंधित प्रमुख बिंदु
- परिचय : यह नोथोपेजिया (Nothopegia) वंश की अब तक की ज्ञात सबसे प्राचीन जैविक उपस्थिति है जो पश्चिमी घाट में पाई जाती हैं जोकि इस प्रजाति का वर्तमान निवास स्थान है।
- समय : लगभग 24-23 मिलियन वर्ष पुरानी और उत्तर ओलिगोसीन युग की ये जीवाश्म पत्तियां नोथोपेजिया वंश का विश्व का सबसे पुराना जीवाश्म रिकॉर्ड हैं।
- यह वंश अब उत्तर-पूर्वी भारत में पहली बार पाया गया।
- अध्ययन पद्धति : क्लाइमेट लीफ एनालिसिस मल्टीवेरिएट प्रोग्राम (CLAMP) जैसी उन्नत तकनीकों का उपयोग करके वैज्ञानिकों ने एक गर्म, आर्द्र जलवायु का पुनर्निर्माण किया जो वर्तमान में पश्चिमी घाट की जलवायु के समान है।
नोथोपेगिया प्रजाति का विलुप्त होना
- रिव्यू ऑफ पेलियोबोटनी एंड पालिनोलॉजी जर्नल में प्रकाशित इस अध्ययन में नोथोपेगिया के पूर्वोत्तर भारत से पश्चिमी घाट तक के प्रवास का पता चलता है।
- हिमालय के विकास सहित भूवैज्ञानिक उथल-पुथल ने पूर्वोत्तर भारत में जलवायु परिवर्तन को प्रेरित किया, जिससे तापमान, वर्षा एवं वायु प्रतिरूप में बदलाव आया।
- इन भूगर्भीय उथल-पुथल ने उत्तर-पूर्व को ठंडा कर दिया, जिससे कई उष्णकटिबंधीय पौध प्रजातियां, जिनमें नोथोपेजिया शामिल थी, के लिए यह क्षेत्र उपयुक्त नहीं रहा।
- हालाँकि, जलवायु स्थिरता के कारण पश्चिमी घाट में यह पौधा जीवित रहा, जहाँ यह आज भी प्राचीन पारिस्थितिकी तंत्र का जीवित अवशेष है।
खोज की समसामयिक प्रासंगिकता
- पारिस्थितिकी तंत्र की अनुकूलन क्षमता : यह अध्ययन दर्शाता है कि कुछ पौधे जलवायु परिवर्तनों के अनुकूल होने के लिए नए आवासों की ओर प्रवास कर सकते हैं। हालाँकि, प्राचीन जलवायु परिवर्तन की तुलना में मानव गतिविधियों के कारण होने वाले आधुनिक परिवर्तन अभूतपूर्व गति से हो रहे हैं।
- जैव विविधता हॉटस्पॉट का महत्व : नोथोपेगिया के प्राचीन प्रवास को समझने से यह स्पष्ट होता है कि जैव विविधता हॉटस्पॉट जैसे पश्चिमी घाट प्राचीन पौधों की प्रजातियों के लिए आश्रय स्थल के रूप में कार्य करते हैं। इन पारिस्थितिक तंत्रों का संरक्षण भारत की समृद्ध जैव विविधता को जलवायु चुनौतियों से बचाने के लिए आवश्यक है।
- यह खोज केवल दक्षिण एशिया की प्राचीन जैव विविधता की समझ को ही समृद्ध नहीं करती है, बल्कि जलवायु परिवर्तन, पारिस्थितिकी तंत्र के अनुकूलन एवं जैव-विविधता संरक्षण के आधुनिक सवालों पर भी महत्वपूर्ण दृष्टिकोण प्रदान करती है।