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झारखंड में भाषा व अधिवास नीति का विरोध

चर्चा में क्यों

झारखंड के कई हिस्सों में मगही, भोजपुरी और अंगिका को ‘क्षेत्रीय भाषाओं’ के रूप में शामिल किये जाने और अधिवास नीति के विरुद्ध बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं।

प्रमुख बिंदु

  • ये प्रदर्शन झारखंड कर्मचारी चयन आयोग द्वारा आयोजित परीक्षाओं के माध्यम से ज़िला स्तर की चयन प्रक्रिया में ‘मगही’, ‘भोजपुरी’ और ‘अंगिका’ को क्षेत्रीय भाषाओं के रूप में शामिल करने के विरोध में हो रहे हैं।
  • प्रदर्शनकारियों का तर्क है कि बोकारो और धनबाद ज़िलों में मगही और भोजपुरी भाषियों की आबादी कम है, इसलिये चयन प्रक्रिया में इन भाषाओं को शामिल करना उचित नहीं है।

क्षेत्रीय भाषाएँ और अनुसूचित भाषाएँ

  • भारतीय संविधान की आठवीं अनुसूची में 22 भाषाओं को सूचीबद्ध किया गया है तथा इन्हें अनुसूचित भाषा के रूप में संदर्भित किया गया है।
  • क्षेत्रीय भाषाओं को सूचीबद्ध करने की स्वतंत्रता राज्यों के पास है।
  • संविधान के अनुच्छेद-348 के अनुसार मूल रूप से अंग्रेजी को विधायी और न्यायिक भाषा के रूप में मान्यता दी गई थी।

अधिवास नीति (Domicile Policy)

  • प्रदर्शनकारियों द्वारा राज्य की अधिवास नीति (Domicile Policy) के लिये भूमि अभिलेखों के प्रमाण के रूप में वर्ष 1932 को कट-ऑफ तिथि बनाने की मांग भी की जा रही है।
  • विदित है कि वर्ष 2016 में तत्कालीन मुख्यमंत्री ने ‘अधिवास नीति’ में ढ़िलाई देते हुए रोज़गार मानदंड के लिये वर्ष 1985 को कट-ऑफ वर्ष बना दिया था।
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