झारखंड उच्च न्यायालय ने पारसनाथ पहाड़ी पर माँस एवं शराब की बिक्री पर प्रतिबंध लगाने का आदेश दिया है। साथ ही, यह भी कहा है पारसनाथ पहाड़ी को पर्यटक स्थल की तरह प्रयोग न किया जाए।
पारसनाथ पहाड़ी के बारे में
- परिचय : यह जैन समुदाय के लिए सबसे पवित्र एवं पूजनीय स्थलों में से एक है। इसे श्री सम्मेद शिखरजी के नाम से भी जाना जाता है।
- यह झारखंड की सबसे ऊंची चोटी है।
- संथाल समुदाय इस पहाड़ी के लिए मरांग बुरु नाम का उपयोग करता है। जैन समुदाय के साथ उनका पैतृक पूजा और अन्य अधिकारों को लेकर कुछ विवाद भी है।
- नामकरण : इस पहाड़ी का नामकरण 23वें जैन तीर्थंकर पार्श्वनाथ के नाम पर किया गया।
- भौगोलिक विशेषताएँ
- स्थान : गिरिडीह ज़िला, झारखंड
- उँचाई : लगभग 1,365 मीटर (4,479 फीट)
- पर्वतमाला : छोटा नागपुर पठार के पूर्वी भाग में
- प्राकृतिक संरचना : ग्रेनाइट एवं क्रिस्टलीय चट्टानों से निर्मित
धार्मिक-सांस्कृतिक महत्त्व
- ऐसा माना जाता है कि 24 में से 20 जैन तीर्थंकरों ने इसी पर्वत पर मोक्ष प्राप्त किया था। यहाँ 31 से अधिक जैन मंदिरों की श्रृंखला है जो मध्यकालीन स्थापत्य कला का महत्वपूर्ण उदाहरण हैं।
- पहाड़ पर शिखरजी जैन मंदिर हैं जो एक महत्वपूर्ण तीर्थक्षेत्र या जैन तीर्थ स्थल है। प्रत्येक तीर्थंकर के लिए पहाड़ी पर एक तीर्थस्थल (गुमटी या टोंक) है।
- ऐसा माना जाता है कि इस जैन मंदिर का निर्माण या तो मगध राजा बिम्बिसार ने या फिर कलिंग राजा अवकिन्नायो करकाण्डु ने करवाया था।
- पहाड़ की चोटी पर संगमरमर से बना एक अन्य जैन मंदिर है जिसे ‘स्वर्ण भद्र कूट’ (स्वर्ण अनुग्रह की झोपड़ी) के रूप में जाना जाता है। पहाड़ी पर स्थित एक अन्य संगमरमर जैन मंदिर को जल मंदिर के नाम से जाना जाता है।
- पालगंज की घाटी में भगवान पारसनाथ की एक प्राचीन मूर्ति स्थित है। माना जाता है कि यह मूर्ति 2500 वर्ष पुरानी है।
- चरण पदुका : यहाँ तीर्थंकरों के अंतिम चरण चिह्न मौजूद हैं।
- इको-टूरिज्म परियोजना विवाद (2022-23) : झारखंड सरकार ने पारसनाथ क्षेत्र में इको-टूरिज्म को बढ़ाने की योजना बनाई थी जिसमें ट्रेकिंग, कैम्पिंग, होटल निर्माण आदि शामिल थे। जैन समुदाय ने इसका तीव्र विरोध किया क्योंकि यह स्थान मोक्ष भूमि है, न कि पर्यटन स्थल।
- आदिवासी समुदायों और स्थानीय जीवन से संबंध : आसपास के क्षेत्र में संथाल, मुंडा एवं उरांव आदिवासी समुदायों की उपस्थिति है। ये समुदाय पर्वत को ‘मरांग बुरु’ (महान पर्वत देवता) के रूप में पूजते हैं। इनका जीवन पर्वत की प्राकृतिक संपदाओं, जैसे- लकड़ी, जड़ी-बूटी, फल आदि पर निर्भर है।