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भारतीय स्टेट बैंक की QIP वित्तीय रणनीति

(प्रारंभिक परीक्षा: समसामयिक घटनाक्रम)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 3: भारतीय अर्थव्यवस्था तथा योजना, संसाधनों को जुटाने, प्रगति, विकास तथा रोज़गार से संबंधित विषय)

संदर्भ

भारतीय स्टेट बैंक (SBI) वर्ष 2025 में 25,000 करोड़ रुपए तक की राशि जुटाने के लिए क्वालिफाइड इंस्टीट्यूशनल प्लेसमेंट (QIP) वित्तीय रणनीति की तैयारी कर रहा है।

क्या है क्वालिफाइड इंस्टीट्यूशनल प्लेसमेंट (QIP)

  • यह पूंजी जुटाने का एक उपकरण है जिसके तहत सूचीबद्ध कंपनियाँ क्वालिफाइड इंस्टीट्यूशनल बायर्स (QIBs) को इक्विटी शेयर, पूर्ण या आंशिक रूप से परिवर्तनीय डिबेंचर या अन्य परिवर्तनीय प्रतिभूतियाँ (वारंट को छोड़कर) जारी करती हैं। 
  • इसे वर्ष 2006 में सेबी (भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड) ने भारतीय कंपनियों को विदेशी पूंजी पर निर्भरता कम करने और घरेलू बाजारों में पूंजी जुटाने के लिए प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से शुरू किया था। 

प्रमुख पहलू

  • QIBs : ये संस्थागत निवेशक होते हैं, जिनके पास वित्तीय विशेषज्ञता और जोखिम मूल्यांकन की क्षमता होती है, जैसे- म्यूचुअल फंड, पेंशन फंड, वेंचर कैपिटल फंड, बीमा कंपनियाँ और विदेशी पोर्टफोलियो निवेशक (FPI), ।
  • न्यूनतम आवंटन : 250 करोड़ रुपए तक के इश्यू के लिए कम-से-कम 2 आवंटी और इससे अधिक के लिए कम-से-कम 5 आवंटी होने चाहिए।
  • प्रमोटर की गैर-भागीदारी : कंपनी के प्रमोटर या उनके रिश्तेदार QIP में हिस्सा नहीं ले सकते हैं।
  • प्रक्रिया : QIP के लिए बोर्ड की मंजूरी, शेयरधारकों की मंजूरी, प्लेसमेंट दस्तावेज तैयार करना, मूल्य निर्धारण और शेयरों का आवंटन आवश्यक है।

प्रमुख विशेषताएँ

  • तेजी से पूँजी जुटाना : यह IPO या FPO की तुलना में तेजी से पूँजी जुटाने का साधन है क्योंकि इसमें नियामक औपचारिकताएँ कम होती हैं।
  • मूल्य निर्धारण : सेबी के दिशानिर्देशों के अनुसार, फ्लोर प्राइस पिछले दो सप्ताह के औसत समापन मूल्य के आधार पर निर्धारित होता है।
  • लॉक-इन अवधि : QIP के माध्यम से जारी शेयरों पर तत्काल बिक्री रोकने के लिए लॉक-इन अवधि होती है, जो बाजार स्थिरता सुनिश्चित करती है।
  • केवल QIBs के लिए : यह केवल संस्थागत निवेशकों के लिए उपलब्ध है, जिससे बाजार में अस्थिरता कम होती है।
  • लागत प्रभावी : QIP में व्यापक विपणन की आवश्यकता नहीं होती है जिससे लागत कम होती है।
  • लचीलापन : कंपनियाँ बाजार की स्थिति के आधार पर मूल्य निर्धारण और समय में लचीलापन रख सकती हैं।

SBI की QIP वित्तीय रणनीति 

  • SBI ने मई 2025 में अपने बोर्ड से 25,000 करोड़ रुपए तक की इक्विटी पूंजी जुटाने की मंजूरी प्राप्त की, जो वित्त वर्ष 2026 में एक या अधिक किश्तों में QIP या FPO के माध्यम से होगी। 
  • यह QIP भारत में अब तक का सबसे बड़ा QIP होगा। 
  • SBI ने इस प्रक्रिया के लिए छह प्रमुख निवेश बैंकों ICICI सिक्योरिटीज, कोटक इन्वेस्टमेंट बैंकिंग, मॉर्गन स्टेनली, SBI कैपिटल मार्केट्स, सिटीग्रुप और HSBC होल्डिंग्स को नियुक्त किया है। 
  • यह वर्ष 2017 के बाद SBI का पहला इक्विटी बिक्री प्रयास है, जब इसने 15,000 करोड़ रुपए जुटाए थे।
  • मूल्य निर्धारण : सटीक मूल्य अज्ञात है किंतु विश्लेषकों का मानना है कि फ्लोर प्राइस SBI के वर्तमान शेयर मूल्य (14 जुलाई 2025 को 809.3 रुपए) के करीब होगा।
  • प्रमुख निवेशक : पिछले QIP (2017) में भारतीय जीवन बीमा निगम (LIC) ने आधा हिस्सा खरीदा था और इस बार भी LIC द्वारा महत्वपूर्ण हिस्सा खरीदने की उम्मीद है।

QIP से SBI को लाभ

  • CET1 अनुपात में सुधार : मार्च 2025 तक SBI का CET1 अनुपात 10.81% था, जो सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में सबसे कम है। 25,000 करोड़ रुपए का QIP इस अनुपात को लगभग 60 बेसिस पॉइंट्स (0.6%) बढ़ाएगा, जिससे बैंक की वित्तीय स्थिरता मजबूत होगी।
  • ऋण मांग को पूरा करना : यह पूंजी बफर SBI को भविष्य में बढ़ती ऋण मांग को पूरा करने में सक्षम बनाएगा।

वित्तीय मजबूती : मजबूत मुनाफे के बावजूद SBI का CET1 अनुपात सुधर नहीं रहा है। QIP इस कमी को दूर करेगा और बैंक की जोखिम-अवशोषण क्षमता को बढ़ाएगा।

बाजार विश्वास : QIP की सफलता SBI के मजबूत वित्तीय प्रदर्शन और संस्थागत निवेशकों के विश्वास को दर्शाएगी।

कॉमन इक्विटी टियर 1 (CET1) अनुपात

  • परिभाषा : यह बैंक के मुख्य इक्विटी पूंजी का जोखिम-भारित संपत्तियों (Risk-Weighted Assets: RWA) के प्रतिशत के रूप में माप है। यह बैंक की वित्तीय मजबूती एवं नुकसान को अवशोषित करने की क्षमता को दर्शाता है।
  • महत्व : उच्च CET1 अनुपात बैंक की सॉल्वेंसी एवं स्थिरता को दर्शाता है। भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने न्यूनतम 8% CET1 अनुपात (2.5% पूंजी संरक्षण बफर सहित) अनिवार्य किया है।

अन्य वित्तीय अनुपात

  • कैपिटल टू रिस्क-वेटेड एसेट्स रेशियो (CRAR) : यह बैंक की कुल पूंजी (टियर 1 एवं टियर 2) का RWA के प्रतिशत के रूप में माप है। 
  • रिटर्न ऑन इक्विटी (RoE) : यह शेयरधारकों की इक्विटी पर बैंक के मुनाफे को मापता है। 
  • ग्रॉस नॉन-परफॉर्मिंग एसेट्स (GNPA) अनुपात : यह गैर-निष्पादित संपत्तियों का कुल ऋण के प्रतिशत के रूप में माप है।

महत्त्वपूर्ण शब्दावलियाँ

  • इक्विटी शेयर : कंपनी में स्वामित्व का प्रतिनिधित्व करने वाले शेयर, जो स्वामी को कंपनी के मुनाफे और मतदान अधिकारों में हिस्सा देते हैं।
  • परिवर्तनीय डिबेंचर : ऐसी ऋण प्रतिभूतियाँ जो एक निश्चित अवधि के बाद इक्विटी शेयरों में परिवर्तित हो सकती हैं।
  • क्वालिफाइड इंस्टीट्यूशनल बायर्स (QIBs) : सेबी द्वारा परिभाषित संस्थागत निवेशक जो QIP में भाग ले सकते हैं, जैसे- म्यूचुअल फंड, बीमा कंपनियाँ और पेंशन फंड।
  • फ्लोर प्राइस : QIP में शेयरों की न्यूनतम कीमत, जो पिछले दो सप्ताह के औसत समापन मूल्य के आधार पर निर्धारित होती है।
  • लॉक-इन अवधि : वह अवधि जिसमें QIP के माध्यम से जारी शेयरों को बेचा नहीं जा सकता है, जिससे बाजार स्थिरता सुनिश्चित होती है।
  • रिस्क-वेटेड एसेट्स (RWA) : बैंक की संपत्तियों का मूल्य, जो उनके जोखिम स्तर के आधार पर भारित होता है। यह CET1 एवं CRAR की गणना में उपयोग होता है।
  • बेसिस पॉइंट (bps) : प्रतिशत का सौवां हिस्सा (1 bps = 0.01%)। उदाहरण के लिए, 60 bps = 0.6%
  • डोमेस्टिकली सिस्टमिकली इम्पॉर्टेंट बैंक (D-SIB) : ऐसे बैंक जिनका विफल होना अर्थव्यवस्था पर व्यापक प्रभाव डाल सकता है, अतः इन्हें अतिरिक्त पूंजी बनाए रखने की आवश्यकता होती है।
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