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औपनिवेशिक नाट्य प्रदर्शन कानून का निरसन

(प्रारंभिक परीक्षा: समसामयिक घटनाक्रम)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 2; भारतीय संविधान- ऐतिहासिक आधार, विकास, विशेषताएँ, संशोधन, महत्त्वपूर्ण प्रावधान और बुनियादी संरचना।)

चर्चा में क्यों 

हाल ही में, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा औपनिवेशिक कानून नाट्य प्रदर्शन अधिनियम, 1876 (Dramatic Performance Act, 1876) की चर्चा की गई।

नाट्य प्रदर्शन अधिनियम, 1876 के बारे में

  • यह औपनिवेशिक कानून सार्वजनिक स्थानों पर नाचने वाले लोगों को गिरफ़्तार करने की शक्ति देता था।
  • ब्रिटिश सरकार ने अक्टूबर 1875 से मई 1876 तक प्रिंस ऑफ वेल्स, अल्बर्ट एडवर्ड की भारत यात्रा के बाद उभरते भारतीय राष्ट्रवादी भावना को दबाने के लिए यह कानून लागू किया था।
    • इस अवधि के दौरान लागू किए गए अन्य कानूनों में कठोर वर्नाक्यूलर प्रेस एक्ट, 1878 और 1870 का राजद्रोह कानून शामिल थे।

प्रमुख प्रावधान

  • इसके द्वारा सरकार को निंदनीय, अपमानजनक, राजद्रोही या अश्लील सार्वजनिक नाट्य प्रदर्शनों पर प्रतिबंध लगाने की शक्तियाँ प्रदान की गई थी।
  • कोई भी मजिस्ट्रेट किसी भी घर, कमरे या स्थान की तलाशी और जब्ती का वारंट दे सकता था, जो इस अधिनियम के तहत निषिद्ध किसी भी प्रदर्शन के लिए उपयोग किया जाता है, या उपयोग किया जाने वाला है।
  • कानून में तीन महीने तक की जेल और जुर्माना या दोनों का प्रावधान था।

स्वतंत्रता के बाद कानून की स्थिति 

  • यह कानून आजादी के बाद वर्ष 1956 से ही एक वैध कानून नहीं रह गया था।
    • 10 मई 1956 को, राज्य बनाम बाबू लाल एवं अन्य मामले में, इलाहाबाद उच्च न्यायालय द्वारा इस कानून को भारतीय संविधान से असंगत घोषित किया गया।
  • यह कानून मध्य प्रदेश, कर्नाटक, दिल्ली और तमिलनाडु सहित राज्य स्तर पर भी लाया गया था, लेकिन कई राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में इस कानून को निरस्त कर दिया गया।
  • केंद्र सरकार द्वारा अप्रचलित कानूनों को समाप्त करने की पहल के तहत वर्ष 2018 में इस कानून को औपचारिक रूप से निरस्त कर दिया गया।
    • संसद द्वारा निरसन और संशोधन (द्वितीय) अधिनियम, 2017 के माध्यम से इस कानून को औपचारिक रूप से हटा दिया गया।
  • अप्रचलित कानूनों को निरस्त करना 'व्यापार करने में आसानी' सूचकांक में सुधार लाने के लिए केंद्र सरकार का प्रमुख प्रयास रहा है।
    • वर्ष 2014 से अब तक सरकार ने 2,000 से ज़्यादा ऐसे अप्रचलित कानूनों को निरस्त कर दिया है।
    • परिभाषा के अनुसार अप्रचलित कानून वे कानून हैं जो अब उपयोग में नहीं हैं।

यह भी जानें

भारत में औपनिवेशिक काल के कानून के बारे में

  • संविधान के अनुच्छेद 372 के अनुसार, ‘संविधान के अधीन रहते हुए, संविधान के प्रारंभ से ठीक पहले भारत के राज्यक्षेत्र में प्रवृत्त सभी विधियां तब तक प्रवृत्त बनी रहेंगी जब तक उन्हें सक्षम विधानमंडल या अन्य सक्षम प्राधिकारी द्वारा परिवर्तित, निरसित या संशोधित नहीं कर दिया जाता’।
    • अर्थात स्वतंत्रता के पूर्व लागू कानून स्वतंत्रता के बाद भी लागू रहेंगे।
  • हालाँकि, औपनिवेशिक कानूनों को संवैधानिकता का दर्जा प्राप्त नहीं है, जिसका अर्थ है कि जब किसी औपनिवेशिक कानून को चुनौती दी जाती है, तो उसे वैध बनाने के लिए सरकार को उसका बचाव करना होगा।
  • अन्य कानून जो स्वतंत्र भारत की संसद द्वारा बनाए जाते हैं, वह तब तक संवैधानिक माने जाते हैं जब तक कि अन्यथा घोषित न किया जाए।
    • अर्थात जब अदालत में चुनौती दी जाती है, तो यह साबित करने का दायित्व याचिकाकर्ता पर होता है कि कानून संविधान का उल्लंघन करता है।
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