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संशोधित उड़ान ड्यूटी समय सीमा और नागरिक उड्डयन महानिदेशक

(प्रारंभिक परीक्षा: राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व की सामयिक घटनाएँ)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र  3: बुनियादी ढाँचाः ऊर्जा, बंदरगाह, सड़क, विमानपत्तन, रेलवे आदि।)

संदर्भ

हाल ही में, नागरिक उड्डयन महानिदेशालय (DGCA) ने इंडिगो एयरलाइन को पायलटों के लिए उड़ान ड्यूटी समय सीमा (FDTL) के कुछ मानदंडों से एक बार के लिए अस्थायी छूट प्रदान की है। 

नागरिक उड्डयन महानिदेशक (DGCA) के बारे में

  • यह नागरिक उड्डयन सुरक्षा के क्षेत्र में भारत की सर्वोच्च नियामक संस्था है जो मुख्यत: सुरक्षा मुद्दों से निपटती है। यह नागरिक उड्डयन मंत्रालय का एक संबद्ध कार्यालय है।
  • यह भारत को/से/में हवाई परिवहन सेवाओं के विनियमन तथा नागरिक हवाई विनियमों, हवाई सुरक्षा एवं उड़ान योग्यता मानकों के प्रवर्तन के लिए जिम्मेदार है।
  • यह अंतर्राष्ट्रीय नागरिक उड्डयन संगठन (ICAO) के साथ सभी विनियामक कार्यों का समन्वय करता है। इसका मुख्यालय नई दिल्ली में है।  

नागरिक उड्डयन महानिदेशक के कार्य एवं जिम्मेदारियाँ

  • डी.जी.सी.ए. का एक मुख्य कार्य भारत में संचालित सभी उड़ानों में यात्रियों एवं चालक दल के सदस्यों की सुरक्षा सुनिश्चित करना है।
  • यह आवश्यक सुरक्षा मानकों को पूरा करने के लिए सभी एयरलाइनों एवं विमानों का नियमित सुरक्षा निरीक्षण करता है।
  • यह भारतीय हवाई क्षेत्र में होने वाली किसी भी घटना या दुर्घटना की भी जाँच करता है।
  • यह नए हवाई अड्डों के विकास और मौजूदा सुविधाओं के आधुनिकीकरण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि वे विमानन उद्योग की बढ़ती मांगों को पूरा कर सकें।
  • यह भारत में हवाई यातायात के नियमन के लिए ज़िम्मेदार है। यह हवाई यातायात के सुरक्षित एवं कुशल प्रबंधन को सुनिश्चित करने के लिए भारतीय विमानपत्तन प्राधिकरण (AAI) के साथ मिलकर कार्य करता है।
  • डी.जी.सी.ए. भारतीय हवाई क्षेत्र की समग्र दक्षता में सुधार के लिए नई वायु यातायात नियंत्रण प्रणालियों एवं प्रौद्योगिकियों को विकसित करने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
  • यह पायलटों, विमान रखरखाव इंजीनियरों व अन्य विमानन कर्मियों को लाइसेंस एवं प्रमाण पत्र जारी करने के लिए भी जिम्मेदार है। यह आई.सी.ए.ओ. के अनुलग्नक 16  के अनुसार विमान की ध्वनि एवं इंजन के उत्सर्जन की निगरानी करता है। 

संशोधित उड़ान ड्यूटी समय सीमा (FDTL) नियम के बारे में

पृष्ठभूमि

  • एफ.डी.टी.एल. मानदंड नागरिक उड्डयन महानिदेशालय द्वारा जारी किए गए सुरक्षा नियम हैं जो निर्धारित करते हैं कि पायलट कितने समय तक ड्यूटी पर रह सकते हैं, वे कितने घंटे उड़ान भर सकते हैं, कितनी बार नाइट लैंडिंग की अनुमति है तथा उन्हें न्यूनतम कितना आराम मिलना चाहिए।
  • ये मानदंड पायलट की थकान को रोकने, मानवीय त्रुटि को कम करने और विमानन सुरक्षा को बढ़ाने के लिए तैयार किए गए हैं तथा अंतर्राष्ट्रीय विमानन मानकों के अनुरूप हैं। 

नए एफ.डी.टी.एल. नियम 

  • साप्ताहिक विश्राम अवधि में वृद्धि: पायलटों को अब लगातार 48 घंटे का विश्राम मिलना चाहिए, जो पहले 36 घंटे था। 
  • नाइट लैंडिंग की सीमा: पायलट केवल 2 नाइट लैंडिंग कर सकते हैं जिसकी संख्या पहले 6 थी। 
  • लगातार दो बार से अधिक नाइट ड्यूटी की अनुमति नहीं है। 
  • अनिवार्य रोस्टर समायोजन: एयरलाइन्स को नई सीमाओं के अनुसार क्रू रोस्टर को पुनः डिजाइन करना होगा। 
  • त्रैमासिक थकान रिपोर्टिंग: एयरलाइन्स को डी.जी.सी.ए. को नियमित रूप से थकान जोखिम रिपोर्ट (Fatigue Risk Reports) प्रस्तुत करनी होगी। 

उद्देश्य

  • विमानन क्षेत्र में थकान एक प्रमुख परिचालन जोखिम है, विशेषकर सुबह के समय ‘प्रस्थान’ (Departure) के दौरान और रात्रि के समय ‘लैंडिंग’ के दौरान।  
  • नए एफ.डी.टी.एल. नियमों का उद्देश्य पायलटों की सजगता में सुधार लाना, मानवीय त्रुटि को कम करना तथा भारत के विमानन सुरक्षा मानकों को वैश्विक मानदंडों के अनुरूप बनाना है।

भारत के विमानन क्षेत्र की स्थिति 

  • वैश्विक रैंकिंग: अमेरिका एवं चीन के बाद भारत तीसरा सबसे बड़ा घरेलू विमानन बाजार है। शहरीकरण, पर्यटन व मध्यम वर्ग के विस्तार के कारण यात्रियों की संख्या बढ़ रही है।
  • पैसेंजर ट्रैफिक में वृद्धि: वर्ष 2040 तक पैसेंजर ट्रैफिक छह गुना बढ़कर लगभग 1.1 बिलियन हो जाने की उम्मीद है। 
  • आर्थिक योगदान: वर्ष 2025 तक विमानन क्षेत्र 7.7 मिलियन से अधिक नौकरियों (प्रत्यक्ष + अप्रत्यक्ष) का समर्थन करता है और भारत के सकल घरेलू उत्पाद में 1.5% का योगदान देता है।
  • बेड़े की ताकत: भारतीय बेड़े की हिस्सेदारी कुल वैश्विक बेड़े का लगभग 2.4% है। एयरलाइन के विस्तार और नए विमान के ऑर्डर के कारण बेड़े का आकार तेजी से बढ़ा है। 
  • हवाई अड्डा अवसंरचना विस्तार: परिचालन हवाई अड्डों की संख्या वर्ष 2014 में 74 से बढ़कर 2025 में 163 हो गई। वर्ष 2047 तक भारत का लक्ष्य 350-400 हवाई अड्डे बनाना है। 
  • ग्रीनफील्ड हवाई अड्डों और पी.पी.पी. आधारित विकास पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है। 

भारतीय नागरिक उड्डयन विनियमन

  • वायु निगम अधिनियम, 1953: नौ एयरलाइन कंपनियों का राष्ट्रीयकरण किया गया। 1990 के दशक के मध्य तक इस क्षेत्र में सरकारी स्वामित्व वाली एयरलाइनों का दबदबा था। 
  • ओपन स्काई नीति (1990-94): निजी एयर टैक्सी ऑपरेटरों को अनुमति दी गई। इंडियन एयरलाइंस (IA) और एयर इंडिया (AI) का एकाधिकार समाप्त किया गया। 
  • भारतीय वायुयान अधिनियम, 2024: यह औपनिवेशिक युग के विमान अधिनियम, 1934 का स्थान लेता है और भारत के विमानन कानूनों को आई.सी.ए.ओ. मानकों एवं शिकागो अभिसमय के अनुरूप बनाता है।  
  • यह विमानन विनिर्माण के क्षेत्र में मेक इन इंडिया और आत्मनिर्भर भारत को बढ़ावा देता है, सरलीकृत लाइसेंसिंग व नियामक प्रक्रियाओं को प्रस्तुत करता है तथा एक संरचित अपील तंत्र प्रदान करने के माध्यम से भारत के समग्र विमानन प्रशासन ढांचे का आधुनिकीकरण करता है।

भारत के विमानन क्षेत्र में प्रमुख चुनौतियाँ 

  • पायलट एवं चालक दल की कमी: हवाई यातायात में तीव्र वृद्धि के कारण प्रशिक्षित पायलटों, केबिन क्रू और रखरखाव कर्मचारियों की मांग तथा उपलब्धता के बीच असंतुलन पैदा हो गया है। 
  • एफ.डी.टी.एल. जैसे नए सुरक्षा मानदंडों ने मानवशक्ति की आवश्यकताओं को और बढ़ा दिया है जिसके कारण उड़ानें बार-बार रद्द हो रही हैं, देरी हो रही है तथा परिचालन संबंधी व्यवधान उत्पन्न हो रहे हैं क्योंकि एयरलाइनों ने नई स्टाफिंग आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए पहले से पर्याप्त पायलटों को नियुक्त व प्रशिक्षित नहीं किया था। 
  • हवाई अड्डे के बुनियादी ढांचे में बाधाएं: दिल्ली, मुंबई एवं बेंगलुरु जैसे प्रमुख हवाई अड्डे लगभग पूरी क्षमता से संचालित होते हैं जिसके कारण विशेष रूप से व्यस्त समय के दौरान रनवे पर भीड़भाड़, पार्किंग की कमी और हवाई क्षेत्र में भीड़भाड़ की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। 
  • उच्च परिचालन लागत: विमानन टर्बाइन ईंधन (ATF) की ऊंची कीमतों, डॉलर में विमान पट्टे की लागत और बढ़ते रखरखाव खर्च के कारण एयरलाइनों को भारी वित्तीय दबाव का सामना करना पड़ता है। 
  • क्षमता एवं समय-निर्धारण की आक्रामक प्रथाएँ: एयरलाइंस प्राय: पर्याप्त बैकअप क्रू या अतिरिक्त विमान के बिना महत्वाकांक्षी उड़ान कार्यक्रम की घोषणा करती हैं जिससे व्यवधान के दौरान बड़े पैमाने पर उड़ानों के रद्द होने का जोखिम बढ़ जाता है। 
  • यात्री संरक्षण एवं शिकायत निवारण: बड़े पैमाने पर व्यवधानों के दौरान यात्रियों को संचार में समस्या, कमजोर मुआवजा तंत्र और सीमित कानूनी उपायों का सामना करना पड़ता है। 
  • विदेशी विमानों और आपूर्ति श्रृंखलाओं पर निर्भरता: आयातित विमानों, इंजनों एवं स्पेयर पार्ट्स पर भारी निर्भरता के कारण इस क्षेत्र को वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला में व्यवधान और मुद्रा अस्थिरता का सामना करना पड़ता है। 
  • विनिमय दर में अस्थिरता: अमेरिकी डॉलर के मुकाबले भारतीय रुपए के मूल्य में गिरावट से एयरलाइनों  की लागत बढ़ जाती है क्योंकि विमान के पट्टे और ईंधन के आयात जैसे प्रमुख व्यय डॉलर के माध्यम से होते हैं। 
  • विमानन सुरक्षा जोखिम: वर्ष 2025 में हाल ही में हुई दुर्घटनाएँ और बढ़ता यातायात सुरक्षा निरीक्षण एवं आपातकालीन प्रतिक्रिया पर चिंता को उजागर करता है। 

भारत के विमानन क्षेत्र को मजबूत बनाने वाले उपाय 

  • स्थिरीकरण के लिए अस्थायी नियामक राहत: डी.जी.सी.ए. ने इंडिगो को कुछ रात्रिकालीन परिचालनों से एक बार के लिए अस्थायी छूट प्रदान की है। इस अल्पकालिक राहत का उपयोग केवल परिचालन स्थिरीकरण के लिए किया जाना चाहिए, न कि दीर्घकालिक निर्भरता के लिए। 
  • एफ.डी.टी.एल. मानदंडों को कमजोर नहीं किया जाना चाहिए क्योंकि थकान प्रबंधन विमानन सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण है। 
  • परिचालन बफर का निर्माण करना: व्यस्त मौसम और तकनीकी विफलताओं के दौरान व्यवधानों से निपटने के लिए स्टैंडबाय पायलट, रिजर्व केबिन क्रू एवं अतिरिक्त विमान बनाए रखना चाहिए।
  • यात्री संचार और मुआवजे में सुधार: जनता का विश्वास बहाल करने के लिए वास्तविक समय अपडेट, स्वचालित रिफंड और मुआवजे को मजबूत किया जाना चाहिए। 
  • सतत विमानन को प्रोत्साहन: सतत विमानन ईंधन (SAF), ऊर्जा कुशल हवाई अड्डों को बढ़ावा देना तथा कार्बन कटौती के लिए आई.सी.ए.ओ. की कार्बन ऑफसेटिंग और अंतर्राष्ट्रीय विमानन हेतु न्यूनीकरण योजना (CORSIA) के अनुपालन को बढ़ावा देना चाहिए। 
  • हवाई क्षेत्र आधुनिकीकरण: हवाई क्षेत्र के उपयोग को अनुकूलित करने और देरी को कम करने के लिए एडवांस्ड-सरफेस मूवमेंट और नियंत्रण प्रणाली के साथ प्रस्तावित नागरिक हवाई यातायात प्रबंधन प्रणाली में तेजी लाने की आवश्यकता है। 
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