New
GS Foundation (P+M) - Delhi: 27 June, 3:00 PM Mid Year Mega Sale UPTO 75% Off, Valid Till : 17th June 2025 GS Foundation (P+M) - Prayagraj: 22 June, 5:30 PM Mid Year Mega Sale UPTO 75% Off, Valid Till : 17th June 2025 GS Foundation (P+M) - Delhi: 27 June, 3:00 PM GS Foundation (P+M) - Prayagraj: 22 June, 5:30 PM

चुप रहने का अधिकार

(सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र-2 भारतीय संविधान- ऐतिहासिक आधार, विकास, विशेषताएँ, संशोधन, महत्त्वपूर्ण प्रावधान और बुनियादी संरचना)

संदर्भ 

हाल ही में, सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति उज्ज्वल भुइयां ने दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को जमानत देते हुए पूछताछ के दौरान आरोपी के चुप रहने के अधिकार (Right of an accused to remain silent during interrogation) को बरकरार रखा।

सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय 

  • न्यायमूर्ति सूर्यकांत की अध्यक्षता वाली दो न्यायाधीशों की पीठ में न्यायमूर्ति उज्ज्वल भुइयां ने अपनी अलग राय दी कि जांच एजेंसी किसी आरोपी के चुप रहने पर उसके  खिलाफ कोई प्रतिकूल निष्कर्ष नहीं निकाल सकती है। 
  • न्यायमूर्ति के अनुसार, आरोपी को चुप रहने का अधिका है और उसे अपने विरुद्ध  दोषपूर्ण बयान देने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता है। 

संवैधानिक अधिकार के रूप में 

  • न्यायमूर्ति भुइयां ने संविधान के अनुच्छेद 20(3) का उल्लेख करते हुए कहा कि किसी आरोपी व्यक्ति को स्वयं के विरुद्ध गवाही देने के लिए मजबूर नहीं किया जाना चाहिए।
  • न्यायमूर्ति के अनुसार, आत्म-दोषी ठहराए जाने के खिलाफ सुरक्षा केवल न्यायालय में गवाही तक ही सीमित नहीं है, बल्कि पुलिस या कानून प्रवर्तन एजेंसी द्वारा पूछताछ या पूछताछ के समय भी पूर्व-परीक्षण चरण के दौरान भी है।
    • इस प्रकार यह संवैधानिक सुरक्षा उस व्यक्ति को भी उपलब्ध है जिसके खिलाफ औपचारिक रूप से आरोप लगाया गया है, भले ही वास्तविक परीक्षण (ट्रायल) शुरू न हुआ हो। 

भारतीय संविधान में मौलिक अधिकार

  • भारतीय संविधान में छह मौलिक अधिकारों का उल्लेख है :
    • समता का अधिकार : अनुच्छेद 14-18
    • स्वतंत्रता का अधिकार : अनुच्छेद 19-22
    • शोषण के विरुद्ध अधिकार : अनुच्छेद 23-24
    • धर्म की स्वतंत्रता का अधिकार : अनुच्छेद 25-28
    • संस्कृति एवं शिक्षा संबंधी अधिकार : अनुच्छेद 29-30
    • संवैधानिक उपचारों का अधिकार : अनुच्छेद 32
  • स्वतंत्रता के अधिकार का उल्लेख अनुच्छेद 19, 20, 21 एवं 22 में है। अनुच्छेद-20 अपराध के लिये दोषसिद्धि के संबंध में संरक्षण से संबंधित है। 
  • अनुच्छेद-20 किसी भी अभियुक्त या दोषी करार दिये गए व्यक्ति, चाहे वह देश का नागरिक हो या या विदेशी या कंपनी व परिषद का कानूनी व्यक्ति हो, को मनमाने एवं अतिरिक्त दंड से संरक्षण प्रदान करता है। 
  • इस संबंध में तीन व्यवस्थाएँ प्रदान की गई हैं :
    • किसी भी व्यक्ति को अपराध के लिये तब तक दोषी नहीं ठहराया जाएगा, जब तक कि ऐसा कोई कार्य करते समय, (जो व्यक्ति अपराध के रूप में आरोपित है) उस व्यक्ति ने किसी प्रवृत्त विधि का अतिक्रमण नहीं किया हो।
    • किसी भी व्यक्ति को एक ही अपराध के लिये एक से अधिक बार अभियोजित या दंडित नहीं किया जाएगा।
    • किसी भी अपराध के लिये अभियुक्त व्यक्ति को स्वंय अपने विरुद्ध साक्षी होने (गवाही) के लिये बाध्य नहीं किया जाएगा।
« »
  • SUN
  • MON
  • TUE
  • WED
  • THU
  • FRI
  • SAT
Have any Query?

Our support team will be happy to assist you!

OR