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मरम्मत का अधिकार एवं संबंधित मुद्दे

(प्रारंभिक परीक्षा: समसामयिक घटनाक्रम)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र -2: सरकारी नीतियों एवं विभिन्न क्षेत्रों में विकास के लिये हस्तक्षेप और उनके अभिकल्पन तथा कार्यान्वयन के कारण उत्पन्न विषय)

संदर्भ 

उपभोक्ता कार्य विभाग ने मोबाइल एवं इलेक्ट्रॉनिक क्षेत्र में मरम्मत क्षमता सूचकांक (Repairability Index: RI) पर रूपरेखा के लिए एक रिपोर्ट सरकार को प्रस्तुत की है।

मरम्मत का अधिकार (Right to Repair) के बारे में

  • मरम्मत का अधिकार उपभोक्ताओं को यह अधिकार देता है कि वे अपने उत्पादों का स्वतंत्र रूप से मरम्मत कर सकें, चाहे वह स्वयं किया जाए या किसी तीसरे पक्ष के माध्यम से कराया जाए। 
  • यह अधिकार उपभोक्ताओं को यह सुनिश्चित करने में मदद करता है कि वे अपने उत्पादों की मरम्मत के लिए अधिकृत सेवा केंद्रों पर निर्भर न रहें, जो प्राय: महंगे होते हैं।
  • ‘राइट-टू-रिपेयर’ आंदोलन का प्रारंभ 1950 के दशक में कंप्यूटर युग की शुरुआत के बाद हुआ था। इसका लक्ष्य कंपनियों द्वारा उपभोक्ताओं तथा मरम्मत करने वाले अन्य लोगों को इलेक्ट्रॉनिक्स तथा अन्य उत्पादों के स्पेयर पार्ट्स, उपकरणों तथा इनको ठीक करने से संबंधित आवश्यक जानकारी उपलब्ध करवाना है।
  • एप्पल, माइक्रोसॉफ्ट, अमेज़न तथा टेस्ला जैसी दिग्गज प्रौद्योगिकी कंपनियाँ मरम्मत के अधिकार का विरोध करती रही हैं। उनका मत है कि अपनी बौद्धिक संपदा उपभोक्ताओं या शौकिया मरम्मत करने वाले किसी तीसरे पक्ष को प्रदान करने से उनका शोषण हो सकता है तथा उनके उपकरणों की विश्वसनीयता व सुरक्षा प्रभावित हो सकती है।

भारत में मरम्मत का अधिकार

  • भारत में उपभोक्ता कार्य मंत्रालय ने हाल ही में ‘मरम्मत क्षमता सूचकांक’ की घोषणा की है जो उपभोक्ता इलेक्ट्रॉनिक्स एवं उपकरणों की मरम्मत की आसानी को मापने के लिए एक ढांचा प्रदान करता है। 
  • इस सूचकांक के तहत उत्पादों को विभिन्न मानदंडों के आधार पर स्कोर दिया जाएगा, जैसे- स्पेयर पार्ट्स की उपलब्धता, मरम्मत की लागत, सॉफ़्टवेयर अपडेट एवं जानकारी की उपलब्धता।
  • हालाँकि, भारत में मरम्मत का अधिकार अभी भी विकासशील अवस्था में है और यह अधिकार अभी भी औपचारिक रूप से कानून में शामिल नहीं किया गया है।

सुधार की आवश्यकता

  • उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम: उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 में ‘मरम्मत का अधिकार’ स्पष्ट रूप से शामिल नहीं है। इसे शामिल करने से उपभोक्ताओं को अपने अधिकारों के प्रति जागरूकता बढ़ेगी और उन्हें बेहतर सुरक्षा मिलेगी।
  • निर्माताओं की जिम्मेदारी: निर्माताओं को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि वे अपने उत्पादों के लिए मरम्मत मैनुअल और स्पेयर पार्ट्स उपलब्ध कराएं। इससे उपभोक्ताओं को स्वतंत्र मरम्मत सेवाओं का उपयोग करने में मदद मिलेगी।
  • प्रशिक्षण एवं प्रमाणन: मरम्मत कर्मियों के लिए प्रशिक्षण व प्रमाणन कार्यक्रमों की आवश्यकता है ताकि वे उच्च तकनीकी उत्पादों की मरम्मत कर सकें। इससे न केवल उपभोक्ताओं को लाभ होगा, बल्कि रोजगार सृजन भी होगा।
  • अवधारणाओं का पुनरावलोकन: ‘नियोजित अप्रचलन’ (Planned Obsolescence) की अवधारणा को समाप्त करने के लिए निर्माताओं को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए, ताकि वे अधिक टिकाऊ उत्पादों का निर्माण करें।
    • ‘नियोजित अप्रचलन’ के तहत उपकरणों को सीमित समय तक कार्य करने तथा प्रतिस्थापित करने के लिये डिज़ाइन किया जाता है। इससे पर्यावरण पर अत्यधिक दबाव पड़ने के साथ-साथ प्राकृतिक संसाधनों का अपव्यय होता है।

निष्कर्ष

भारत में मरम्मत का अधिकार उपभोक्ताओं के लिए एक महत्वपूर्ण मुद्दा है, जो न केवल उनके अधिकारों की रक्षा करता है, बल्कि पर्यावरणीय संधारणीयता को भी बढ़ावा देता है। उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम में सुधार, निर्माताओं की जिम्मेदारियों को स्पष्ट करना और मरम्मत कर्मियों के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रमों की स्थापना से इस अधिकार को सशक्त बनाया जा सकता है।

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