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शिमला समझौता: पृष्ठभूमि, प्रावधान और समकालीन प्रासंगिकता

प्रारंभिक परीक्षा: 1971 भारत-पाक युद्ध - बांग्लादेश का उदय
मुख्य परीक्षा: जीएस पेपर 2 - भारत से संबंधित और/या भारत के हितों को प्रभावित करने वाले द्विपक्षीय, क्षेत्रीय और वैश्विक समूह और समझौते।

चर्चा में क्यों?

  • जम्मू-कश्मीर के पहलगाम की बैसरन घाटी में हुए आतंकी हमले के बाद भारत सरकार ने पाकिस्तान के खिलाफ कई बड़े फैसले लिए हैं।
  • इसमें वाघा बॉर्डर बंद करना, सार्क वीजा सुविधा निलंबित करना और भारतीय विमानों के लिए अपना हवाई क्षेत्र बंद करना जैसे फैसले शामिल हैं।
  • इसके जवाब में पाकिस्तान ने भी एक के बाद एक जवाबी कदम उठाए हैं।
  • पाकिस्तान ने भारत पर अंतरराष्ट्रीय कानून और संयुक्त राष्ट्र के प्रस्तावों का उल्लंघन करने का आरोप लगाया और शिमला समझौते को निलंबित कर दिया।
  • पाकिस्तान ने कहा कि वह शिमला समझौते सहित भारत के साथ किए गए सभी द्विपक्षीय समझौतों को निलंबित करने का अधिकार सुरक्षित रखता है।

शिमला समझौता क्या है?

  • शिमला समझौता, 2 जुलाई 1972 को भारत और पाकिस्तान के बीच हस्ताक्षरित एक ऐतिहासिक द्विपक्षीय समझौता है जो दक्षिण एशियाई भू-राजनीति में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर है। 
  • यह समझौता 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध और बांग्लादेश की स्वतंत्रता के बाद दोनों देशों के बीच शांति, स्थिरता और सामान्य स्थिति बहाल करने के उद्देश्य से किया गया था। 
  • भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति जुल्फिकार अली भुट्टो ने शिमला, हिमाचल प्रदेश में इस पर हस्ताक्षर किए। 
  • यह समझौता भारत-पाकिस्तान संबंधों को परिभाषित करने, कश्मीर मुद्दे को द्विपक्षीय ढांचे में लाने और क्षेत्रीय सहयोग को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण रहा है।

ऐतिहासिक संदर्भ

  • शिमला समझौता 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के परिणामस्वरूप सामने आया, जो बांग्लादेश (तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान) की स्वतंत्रता के लिए लड़ा गया। 
  • पूर्वी पाकिस्तान में बंगाली आबादी के खिलाफ पाकिस्तानी सेना के दमन और अत्याचारों ने बड़े पैमाने पर शरणार्थी संकट पैदा किया, जिसके कारण लगभग 1 करोड़ शरणार्थी भारत में प्रवेश कर गए। 
  • इस संकट ने भारत को सैन्य हस्तक्षेप के लिए प्रेरित किया। 
  • 3 दिसंबर 1971 को शुरू हुआ युद्ध 16 दिसंबर 1971 को भारत की निर्णायक जीत के साथ समाप्त हुआ, जब ढाका में 93,000 पाकिस्तानी सैनिकों ने आत्मसमर्पण किया। 
  • इस युद्ध ने बांग्लादेश को एक स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में स्थापित किया।

युद्ध के बाद की स्थिति

  • युद्ध के बाद, कई जटिल मुद्दों को हल करने की आवश्यकता थी:
    • युद्धबंदियों की वापसी: भारत के पास 93,000 पाकिस्तानी सैनिक युद्धबंदी थे।
    • कब्जाए गए क्षेत्र: दोनों देशों ने एक-दूसरे के कुछ क्षेत्रों पर कब्जा कर लिया था, विशेष रूप से पंजाब और सिंध में।
    • कश्मीर में नियंत्रण रेखा: जम्मू-कश्मीर में युद्ध के बाद की स्थिति ने नियंत्रण रेखा (LoC) को फिर से परिभाषित करने की आवश्यकता पैदा की।
    • कूटनीतिक तनाव: दोनों देशों के बीच शांति और विश्वास बहाली की आवश्यकता थी।
  • इन मुद्दों को संबोधित करने के लिए, शिमला में 28 जून से 2 जुलाई 1972 तक उच्च-स्तरीय वार्ता हुई, जिसके परिणामस्वरूप शिमला समझौता हुआ।

शिमला समझौते के प्रावधान

  • शिमला समझौता एक संक्षिप्त लेकिन व्यापक दस्तावेज है, जिसमें निम्नलिखित प्रमुख प्रावधान शामिल हैं:
    • द्विपक्षीय वार्ता का सिद्धांत: दोनों देशों ने सहमति जताई कि वे अपने सभी विवादों, विशेष रूप से जम्मू-कश्मीर से संबंधित मुद्दों को, द्विपक्षीय वार्ता के माध्यम से हल करेंगे। इसमें तीसरे पक्ष या अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता को शामिल करने से इनकार किया गया।
    • नियंत्रण रेखा (LoC) का सम्मान: 17 दिसंबर 1971 को स्थापित जम्मू-कश्मीर में नियंत्रण रेखा को दोनों पक्षों ने औपचारिक रूप से स्वीकार किया। इसे बल प्रयोग के बिना सम्मान करने का वादा किया गया।
    • शांति और सहयोग: दोनों देशों ने क्षेत्र में स्थायी शांति, मित्रता, और सहयोग को बढ़ावा देने का संकल्प लिया। इसमें व्यापार, संचार, विज्ञान, और सांस्कृतिक आदान-प्रदान को प्रोत्साहित करने की बात कही गई।
    • युद्धबंदियों और क्षेत्रों की वापसी: समझौते में 93,000 पाकिस्तानी युद्धबंदियों की वापसी और युद्ध के दौरान कब्जाए गए क्षेत्रों के आदान-प्रदान पर सहमति बनी।
    • संयुक्त राष्ट्र चार्टर का पालन: दोनों पक्षों ने संयुक्त राष्ट्र चार्टर के सिद्धांतों, जैसे संप्रभुता, क्षेत्रीय अखंडता, और एक-दूसरे के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप न करने का सम्मान करने की प्रतिबद्धता जताई।
    • आतंकवाद और शत्रुतापूर्ण गतिविधियों पर रोक: दोनों देशों ने अपनी जमीन का उपयोग एक-दूसरे के खिलाफ आतंकवादी गतिविधियों, शत्रुतापूर्ण प्रचार, या हिंसा के लिए नहीं होने देने का वादा किया।
    • भविष्य की वार्ता और कार्यान्वयन: समझौते में उच्च-स्तरीय बैठकों और वार्ताओं को जारी रखने की बात कही गई ताकि समझौते के प्रावधानों को लागू किया जा सके और स्थायी शांति स्थापित हो।

शिमला समझौते का महत्व

  • शिमला समझौता भारत-पाकिस्तान संबंधों और दक्षिण एशियाई भू-राजनीति में कई कारणों से महत्वपूर्ण है:
    • युद्ध के बाद शांति: समझौता 1971 के युद्ध के बाद तनाव को कम करने और सामान्य स्थिति बहाल करने में सफल रहा।
    • कश्मीर मुद्दे का द्विपक्षीयकरण: इसने कश्मीर मुद्दे को अंतरराष्ट्रीय मंचों से हटाकर द्विपक्षीय वार्ता का विषय बना दिया, जिससे भारत की कूटनीतिक स्थिति मजबूत हुई।
    • नियंत्रण रेखा की स्थापना: LoC को एक अस्थायी लेकिन औपचारिक सीमा के रूप में मान्यता मिली, जो आज भी भारत-पाकिस्तान संबंधों का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।
    • भारत की क्षेत्रीय शक्ति: समझौते ने भारत को एक मजबूत क्षेत्रीय शक्ति के रूप में स्थापित किया, जिसने युद्ध के बाद की स्थिति को प्रभावी ढंग से प्रबंधित किया।
    • मानवीय और कूटनीतिक समाधान: युद्धबंदियों की वापसी और क्षेत्रीय आदान-प्रदान ने मानवीय संकट को हल करने में मदद की।

शिमला समझौते की सीमाएँ और आलोचनाएँ

  • हालांकि शिमला समझौता एक महत्वपूर्ण कदम था, लेकिन इसकी कुछ सीमाएँ और आलोचनाएँ भी हैं:
    • कश्मीर मुद्दे पर अस्पष्टता: समझौते में कश्मीर मुद्दे के स्थायी समाधान के लिए कोई स्पष्ट रोडमैप नहीं था, जिसके कारण यह मुद्दा अनसुलझा रहा।
    • पाकिस्तान की प्रतिबद्धता पर सवाल: पाकिस्तान द्वारा LoC का बार-बार उल्लंघन, आतंकवाद को समर्थन, और समझौते के प्रावधानों का पालन न करने के आरोप लगे हैं। उदाहरण के लिए, 1999 का कारगिल युद्ध और 2008 का मुंबई हमला।
    • सीमित दीर्घकालिक प्रभाव: समझौते के बावजूद, भारत-पाकिस्तान संबंधों में तनाव और संघर्ष बने रहे, जिसने इसकी प्रभावशीलता पर सवाल उठाए।
    • अंतरराष्ट्रीय निगरानी की कमी: कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि समझौते में अंतरराष्ट्रीय समुदाय की निगरानी या दबाव की कमी के कारण इसका कार्यान्वयन कमजोर रहा।
    • आंतरिक राजनीतिक दबाव: भारत और पाकिस्तान दोनों में आंतरिक राजनीतिक गतिशीलता ने समझौते के प्रावधानों को लागू करने में बाधा डाली।

समकालीन प्रासंगिकता

  • शिमला समझौता भारत-पाकिस्तान संबंधों में अभी भी एक महत्वपूर्ण दस्तावेज है, लेकिन इसकी प्रासंगिकता और प्रभावशीलता को कई समकालीन कारकों ने जटिल बना दिया है। 
  • निम्नलिखित बिंदु समझौते की समकालीन प्रासंगिकता को दर्शाते हैं:

जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 का निरसन:

  • 5 अगस्त 2019 को भारत ने जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 को हटा दिया और राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों (जम्मू-कश्मीर और लद्दाख) में विभाजित कर दिया। 
  • भारत ने इसे अपना आंतरिक मामला बताया, लेकिन पाकिस्तान ने इसे शिमला समझौते के द्विपक्षीय सिद्धांत का उल्लंघन करार दिया। 
  • इस कदम ने दोनों देशों के बीच तनाव को और बढ़ा दिया।
  • पाकिस्तान ने इस मुद्दे को संयुक्त राष्ट्र और अन्य अंतरराष्ट्रीय मंचों पर उठाया, जो शिमला समझौते के द्विपक्षीय वार्ता के सिद्धांत के खिलाफ है।

नियंत्रण रेखा पर तनाव:

  • LoC पर बार-बार होने वाली झड़पें, गोलीबारी, और घुसपैठ की घटनाएँ समझौते के प्रावधानों का उल्लंघन दर्शाती हैं। 
  • हालांकि, 2021 में दोनों देशों ने LoC पर युद्धविराम समझौते को मजबूत करने की घोषणा की, लेकिन इसकी दीर्घकालिक सफलता अनिश्चित है।
  • 2020 और 2021 में कुछ समय के लिए तनाव कम हुआ, लेकिन छोटी-मोटी घटनाएँ और सैन्य तैनाती दोनों पक्षों के बीच अविश्वास को दर्शाती हैं।

आतंकवाद का मुद्दा:

  • भारत ने पाकिस्तान पर आतंकवादी समूहों, जैसे लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद, को समर्थन देने का बार-बार आरोप लगाया है। 
  • 2016 का उरी हमला, 2019 का पुलवामा हमला, और हाल ही में 2025 का पहलगाम हमला शिमला समझौते के उस प्रावधान का उल्लंघन हैं, जिसमें दोनों देशों ने अपनी जमीन का उपयोग शत्रुतापूर्ण गतिविधियों के लिए नहीं करने का वादा किया था।
  • भारत ने 2019 के बालाकोट हवाई हमले जैसे कदमों के साथ आतंकवाद के खिलाफ सख्त रुख अपनाया, जिसने दोनों देशों के बीच तनाव को और बढ़ाया।

कूटनीतिक संबंधों में ठहराव:

  • हाल के वर्षों में भारत और पाकिस्तान के बीच उच्च-स्तरीय कूटनीतिक संपर्क न्यूनतम रहे हैं। 
  • 2015 के बाद कोई व्यापक शांति वार्ता नहीं हुई है, जो समझौते के भविष्य की वार्ता के प्रावधान को कमजोर करता है।
  • दोनों देशों के बीच व्यापार और लोगों का आवागमन भी सीमित है। 
  • 2019 में भारत ने पाकिस्तान से सर्वाधिक तरजीही राष्ट्र (MFN) का दर्जा वापस ले लिया, जिसने आर्थिक सहयोग को और कम कर दिया।

अंतरराष्ट्रीय मंचों पर कश्मीर:

  • पाकिस्तान ने कश्मीर मुद्दे को संयुक्त राष्ट्र, इस्लामिक सहयोग संगठन (OIC), और अन्य अंतरराष्ट्रीय मंचों पर बार-बार उठाया है। 
  • यह शिमला समझौते के द्विपक्षीय वार्ता के सिद्धांत का उल्लंघन करता है। 
  • भारत ने इस दृष्टिकोण का कड़ा विरोध करते हुए कश्मीर को अपना आंतरिक मामला बताया है।
  • अंतरराष्ट्रीय समुदाय, विशेष रूप से संयुक्त राष्ट्र ने इस मुद्दे पर तटस्थ रुख अपनाया है, जिसने शिमला समझौते के सिद्धांत को अप्रत्यक्ष रूप से समर्थन दिया है।

क्षेत्रीय और वैश्विक भू-राजनीति:

  • चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (CPEC) और भारत-चीन सीमा तनाव जैसे क्षेत्रीय घटनाक्रमों ने भारत-पाकिस्तान संबंधों को और जटिल किया है। 
  • CPEC के तहत पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर (PoK) में बुनियादी ढांचा परियोजनाएँ भारत के लिए चिंता का विषय हैं, क्योंकि भारत इसे अपनी संप्रभुता का उल्लंघन मानता है।
  • वैश्विक स्तर पर, अफगानिस्तान में तालिबान की वापसी (2021) और क्षेत्रीय सुरक्षा गतिशीलता ने भारत और पाकिस्तान के बीच सहयोग की संभावनाओं को प्रभावित किया है।

प्रश्न - शिमला समझौते का मुख्य उद्देश्य क्या था?

(a) कश्मीर मुद्दे का स्थायी समाधान

(b) 1971 के युद्ध के बाद शांति और सामान्य स्थिति बहाल करना

(c) भारत-पाकिस्तान के बीच व्यापार समझौता

(d) संयुक्त सैन्य अभ्यास की शुरुआत

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