New
GS Foundation (P+M) - Delhi: 30 July, 11:30 AM July Exclusive Offer UPTO 75% Off, Valid Till : 14th July 2025 GS Foundation (P+M) - Prayagraj: 14th July, 8:30 AM July Exclusive Offer UPTO 75% Off, Valid Till : 14th July 2025 GS Foundation (P+M) - Delhi: 30 July, 11:30 AM GS Foundation (P+M) - Prayagraj: 14th July, 8:30 AM

शिपकी ला दर्रा: ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और सामरिक महत्व

(प्रारंभिक परीक्षा: भारत का भौतिक भूगोल, समसामयिक घटनाक्रम)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 1: विश्व के भौतिक भूगोल की मुख्य विशेषताएँ)

संदर्भ

हिमाचल प्रदेश ने किन्नौर जिले में 3,930 मीटर की ऊँचाई पर स्थित शिपकी ला दर्रे को घरेलू पर्यटकों के लिए खोल दिया है। यह कदम सीमा पर्यटन को बढ़ावा देने और भारत-चीन व्यापार के फिर से शुरू होने की उम्मीदों को बल देता है।

शिपकी ला दर्रे के बारे में

भौगोलिक महत्त्व

  • अवस्थिति : किन्नौर ज़िले (हिमाचल प्रदेश) में 
    • यह महान या वृहद् हिमालय में स्थित है। 
  • समुद्र तल से ऊँचाई: 3,930 मीटर
  • यह एक मोटर वाहन योग्य पहाड़ी दर्रा है जो भारत के हिमाचल प्रदेश को तिब्बत से जोड़ता है। 
  • यह दर्रा हिमाचल प्रदेश के किन्नौर जिले और तिब्बत के न्गारी संभाग के ज़ान्दा ज़िले के बीच स्थित है।
  • शिपकी ला का पुराना नाम ‘पेमा ला’ या ‘साझा द्वार’ था। वर्ष 1962 के बाद इसे वास्तविक नियंत्रण रेखा घोषित कर दिया गया और बाद में भारत-तिब्बत सीमा पुलिस ने इसका नाम शिपकी ला रखा।
  • सतलुज नदी इसी दर्रे के पास से होकर तिब्बत से भारत में प्रवेश करती है। सतलुज को तिब्बत में ‘लांगकेन ज़ंगबो’ के नाम से जाना जाता है। 

ऐतिहासिक महत्त्व

  • उपलब्ध लिखित साक्ष्यों के अनुसार, यह दर्रा भारत एवं तिब्बत (वर्तमान चीन) के बीच 15वीं सदी से प्रमुख व्यापार मार्ग रहा है। हालाँकि, अनुश्रुतियों के अनुसार, हजारों वर्षों से इस क्षेत्र से व्यापार होता रहा है। 
    • ऐतिहासिक रूप से भारत में बुशहर राज्य (अब रामपुर, हिमाचल प्रदेश) और तिब्बत में गुगे इस क्षेत्र के व्यापार में प्रमुख हितधारक थे।
  • लोककथाओं के अनुसार, दोनों पक्षों के समुदायों ने एक शपथ ली थी: ‘जब तक कैलाश मानसरोवर झील का पानी सूख नहीं जाता है, काला कौआ सफेद नहीं हो जाता है और रिजो पुगल की सबसे ऊँची चोटी समतल नहीं हो जाती है, यह व्यापार समझौता जारी रहेगा’। यह काव्यात्मक प्रतिज्ञा शताब्दियों तक चली।
  • यह शपथ भारत-तिब्बत की परस्पर आस्था व विश्वास का प्रतीक था। यह दर्रा प्राचीन सिल्क रोड का हिस्सा था, जो भारत को मध्य एशिया एवं चीन से जोड़ता था।
  • यह दर्रा सिक्किम में नाथू ला और उत्तराखंड में लिपुलेख के माध्यम तिब्बत के साथ भारत के सीमावर्ती व्यापार बिंदुओं में से एक है। 

व्यापार मार्ग का बंद होना

  • वर्ष 1962 के भारत-चीन युद्ध के बाद व्यापार रुक गया था।
  • वर्ष 1992 में व्यापार फिर शुरू हुआ किंतु वर्ष 2020 में कोविड-19 एवं लद्दाख में सीमा तनाव के कारण फिर पूरी तरह बंद हो गया। 
  • वर्तमान में यह मार्ग व्यावसायिक आदान-प्रदान के लिए बंद है।

हालिया पहल

  • हिमाचल के मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुखू ने 10 जून, 2025 को अनिवार्य परमिट प्रणाली के बिना पर्यटन शुरू किया और अब केवल आधार कार्ड से पर्यटक जा सकते हैं।
  • पहले रणनीतिक रूप से संवेदनशील इस क्षेत्र में प्रवेश के लिए भारतीय सेना और भारत-तिब्बत सीमा पुलिस (ITBP) से विशेष अनुमति की आवश्यकता होती थी क्योंकि यह वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) से निकट है।
  • यह कदम स्थानीय अर्थव्यवस्था को मजबूत करने, रोजगार सृजन एवं सांस्कृतिक आदान-प्रदान को बढ़ावा देने के लिए है।
  • किन्नौर इंडो-चीन व्यापार संघ ने व्यापार फिर शुरू करने की मांग की है जिसे मुख्यमंत्री ने विदेश मंत्रालय के समक्ष उठाने का आश्वासन दिया है।

व्यापारित वस्तुएँ

  • तिब्बत से आयात : ऊन (सबसे लाभकारी), याक एवं बकरी की खाल, याक बाल (रस्सी व सैडलबैग के लिए), प्रार्थना चक्र, थांगका, मालाएँ, बोरैक्स, फ़िरोज़ा और सोना
  • भारत से निर्यात : जौ, गेहूं, चावल, बाजरा, दाल, छोले, तेल, सूखे फल, सब्जियाँ, मसाले, तंबाकू, लकड़ी, तांबा एवं पीतल के बर्तन और लोहे के औजार
    • सोना एवं फ़िरोज़ा (किन्नौरी महिलाओं के आभूषणों में लोकप्रिय) ने स्थानीय कारीगरों को समर्थन दिया।
    • इन आदान-प्रदानों ने सांस्कृतिक प्रथाओं, हस्तशिल्प एवं आहार को प्रभावित किया।

सांस्कृतिक एवं आध्यात्मिक संबंध

  • भारत-पाक सीमा के विपरीत (जहाँ रक्त संबंध हैं) शिपकी ला के दोनों ओर समान जीवनशैली (पशुपालन सहित) एवं सांस्कृतिक समानताएँ हैं।
  • उपरी किन्नौर एवं तिब्बती क्षेत्र में बौद्ध धर्म प्रमुख है जो आध्यात्मिक व सभ्यतागत निरंतरता को बनाए रखता है।
  • नामग्याल जैसे सामान्य उपनाम लेह एवं तिब्बती पठार में मिलते हैं। मठवासी परंपराएँ, त्योहार एवं मौखिक लोककथाएँ साझा विरासत को दर्शाती हैं।

धार्मिक पर्यटन की संभावना

  • शिपकी ला कैलाश मानसरोवर यात्रा का संभावित मार्ग है, जो हिंदू, बौद्ध एवं जैन तीर्थयात्रियों के लिए पवित्र है।
  • यह दर्रा दिल्ली से मानसरोवर की यात्रा को 14 दिन कम कर सकता है जिससे धार्मिक पर्यटन में क्रांति आ सकती है।
  • यह मार्ग पहले व्यापार के लिए तैयार किया गया था किंतु तीर्थयात्रियों के लिए भी उपयुक्त है।
  • हालाँकि, इस मार्ग के लिए चीन की मंजूरी आवश्यक है क्योंकि यह क्षेत्र उनके नियंत्रण में है।

कम व्यापार मात्रा के बावजूद उत्साह

  • भारत-चीन के बीच तीन राज्यों (हिमाचल, अरुणाचल, उत्तराखंड) से व्यापार की मात्रा कम है।
  • उत्साह का कारण : कनेक्टिविटी, आर्थिक अवसर एवं सांस्कृतिक आदान-प्रदान।
  • पर्यटन एवं व्यापार से स्थानीय युवाओं के लिए रोजगार, आतिथ्य क्षेत्र में वृद्धि व क्षेत्रीय व्यापार ढांचे का विकास होगा।
  • सामरिक महत्व : यह सॉफ्ट कूटनीति व समुदाय-आधारित विश्वास निर्माण का माध्यम हो सकता है।

निष्कर्ष

शिपकी ला ऐतिहासिक व्यापार, सांस्कृतिक संबंध एवं आध्यात्मिक महत्व का प्रतीक है। इसका पुनर्विकास पर्यटन, व्यापार एवं धार्मिक यात्रा को बढ़ावा दे सकता है। साथ ही, भारत-चीन संबंधों में विश्वास निर्माण का अवसर प्रदान कर सकता है। भारत को सामरिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से इस अवसर का लाभ उठाने के लिए नीतिगत समन्वय व बुनियादी ढांचे में निवेश करना चाहिए।

« »
  • SUN
  • MON
  • TUE
  • WED
  • THU
  • FRI
  • SAT
Have any Query?

Our support team will be happy to assist you!

OR