(प्रारंभिक परीक्षा: समसामयिक घटनाक्रम) (मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र-2: केन्द्र एवं राज्यों द्वारा जनसंख्या के अति संवेदनशील वर्गों के लिये कल्याणकारी योजनाएँ और इन योजनाओं का कार्य-निष्पादन; इन अति संवेदनशील वर्गों की रक्षा एवं बेहतरी के लिये गठित तंत्र, विधि, संस्थान एवं निकाय) |
संदर्भ
हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्र सरकार से पूछा कि क्या दिव्यांगजनों (PwDs) का अपमान या उपहास करने वालों के खिलाफ एससी/एसटी अत्याचार अधिनियम जैसा एक सख़्त कानून लाया जा सकता है। यह टिप्पणी सोशल मीडिया पर दिव्यांगजनों के प्रति की गई अभद्र टिप्पणियों के मामले में सुनवाई के दौरान की गई।
पृष्ठभूमि
- मामला SMA Cure Foundation द्वारा दायर एक याचिका से जुड़ा है। याचिका में समय रैना और कुछ अन्य सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर्स द्वारा दिव्यांगजनों पर की गई असंवेदनशील टिप्पणियों का विरोध किया गया था।
- SMA Cure Foundation एक संस्था है जो दुर्लभ बीमारी स्पाइनल मस्कुलर अट्रोपी (SMA) से प्रभावित लोगों के लिए कार्य करती है।
सर्वोच्च न्यायालय के सुझाव
- दिव्यांगजनों के उपहास, अपमान या तिरस्कार के खिलाफ एससी/एसटी अत्याचार अधिनियम जैसे सख़्त कानून बनाने पर विचार किया जाए।
- सोशल मीडिया पर होने वाले अपमान से दिव्यांगजनों की सुरक्षा के लिए ठोस कानूनी प्रावधान की आवश्यकता है।
- YouTube होस्ट और अन्य इन्फ्लुएंसर्स को दंडित न करते हुए अदालत ने उन्हें:
- हर महीने कम से कम दो कार्यक्रम दिव्यांगजनों की सफलता कहानियों पर बनाने का सुझाव दिया।
- दिव्यांगजनों को प्लेटफ़ॉर्म पर आमंत्रित करके समाज में सकारात्मक संदेश फैलाने का निर्देश दिया।
- इसे अदालत ने उनका “सामजिक दण्ड” कहा।
मजबूत PwD कानून की आवश्यकता
- दिव्यांगजनों के खिलाफ ऑनलाइन ट्रोलिंग, मीम्स और उपहास लगातार बढ़ रहा है।
- वर्तमान कानून मुख्य रूप से भेदभाव रोकते हैं, उपहास और मानसिक आघात पर सीधे प्रावधान बहुत सीमित हैं।
- समाज में संवेदनशीलता बढ़ाने और सम्मानजनक व्यवहार सुनिश्चित करने के लिए अधिक कठोर दंडात्मक प्रावधान ज़रूरी हैं।
- डिजिटल स्पेस के तेज़ विस्तार से साइबर संरक्षण के प्रावधानों की जरूरत और बढ़ जाती है।
इससे होने वाले लाभ
- दिव्यांगजनों के सम्मान व गरिमा की कानूनी सुरक्षा सुनिश्चित होगी।
- ऑनलाइन तथा ऑफलाइन किसी भी प्रकार के अपमान में कमी आएगी।
- सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर सख्त आत्म-नियमन को प्रोत्साहन मिलेगा।
- समाज में दिव्यांगजनों के प्रति सकारात्मक और समावेशी दृष्टिकोण विकसित होगा।
- SMA जैसी दुर्लभ बीमारियों के बारे में जागरूकता बढ़ेगी और अधिक लोग उपचार व सहायता अभियानों से जुड़ेंगे।
चुनौतियाँ
- सोशल मीडिया पर सामग्री की तेजी से वायरल होने की क्षमता।
- प्लेटफॉर्म पर मॉनिटरिंग और कंटेंट मॉडरेशन की कमी।
- समाज में दिव्यांगजनों के प्रति संवेदनशीलता का अभाव।
- कानून होने पर भी कई बार लागू करने की क्षमता कमजोर रहती है।
- ऑनलाइन ट्रोलिंग की पहचान और कार्रवाई में तकनीकी जटिलताएँ।
आगे की राह
- केंद्र सरकार को दिव्यांगजनों के उपहास के खिलाफ कठोर और स्पष्ट कानून लाने पर विचार करना चाहिए।
- सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स के लिए अनिवार्य कंटेंट मॉनिटरिंग नीति तैयार की जाए।
- स्कूलों, विश्वविद्यालयों और सार्वजनिक संस्थानों में सेंसिटाइजेशन प्रोग्राम चलाए जाएं।
- ऑनलाइन अपमान के मामलों की त्वरित रिपोर्टिंग और कार्रवाई के लिए विशेष हेल्पलाइन बनाई जाए।
- दिव्यांगजनों की प्रेरक कहानियों को बढ़ावा देकर समाज में सम्मान की संस्कृति विकसित की जाए।