(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 2: भारतीय संविधान- ऐतिहासिक आधार, विकास, विशेषताएँ, संशोधन, महत्त्वपूर्ण प्रावधान और बुनियादी संरचना; सरकारी नीतियों और विभिन्न क्षेत्रों में विकास के लिये हस्तक्षेप तथा उनके अभिकल्पन व कार्यान्वयन के कारण उत्पन्न विषय) |
संदर्भ
कई राज्यों द्वारा लागू किए गए धर्मांतरण-रोधी कानूनों को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने सवाल उठाया है कि यह तय करने का अधिकार किसके पास है कि कोई धर्मांतरण ‘धोखाधड़ी’ से किया गया है या नहीं।
हालिया याचिका
- याचिकाकर्ता के अनुसार कई राज्यों (उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, गुजरात, उत्तराखंड) में धर्मांतरण को नियंत्रित करने वाले कानून हैं।
- इन कानूनों को धर्म स्वतंत्रता अधिनियम कहा जाता है। वस्तुतः ये धर्मांतरण रोधी कानून हैं।
- इन कानूनों में हाल ही में किए गए संशोधन तीसरे पक्ष को अंतर-धार्मिक विवाह करने वाले युगलों के खिलाफ आपराधिक शिकायत दर्ज करने का अधिकार देते हैं।
- इसके तहत सजा में ‘न्यूनतम 20 वर्ष की सजा या अधिकतम आजीवन कारावास’ शामिल है।
- ज़मानत की शर्तें कठोर गैरकानूनी गतिविधियाँ (रोकथाम) अधिनियम के समान हैं।
- याचिकाकर्ता का तर्क है कि केवल धोखाधड़ी, जबरदस्ती, प्रलोभन या विवाह जैसे आधार पर धर्म परिवर्तन की घटनाओं का उल्लेख किया जाता है। ये कानून अनुच्छेद 25 (अंतःकरण की स्वतंत्रता और धर्म का स्वतंत्रपूर्ण पालन, आचरण एवं प्रचार करने) पर अंकुश लगाते हैं।
सर्वोच्च न्यायालय की टिप्पणियाँ
- केवल धर्मांतरण होने के आधार पर उसे धोखाधड़ी या कपटपूर्ण नहीं माना जा सकता है।
- ‘प्रलोभन’ या ‘धोखाधड़ी’ की परिभाषा को अस्पष्ट नहीं छोड़ा जाना चाहिए।
- अंतर्धार्मिक विवाहों और स्वैच्छिक धर्मांतरण के विरुद्ध दुरुपयोग का जोखिम है।
- वर्ष 2023 में इससे संबंधित मामले की सुनवाई के दौरान सर्वोच्च न्यायालय ने यह प्रश्न भारत के विधि आयोग को भेजने से इंकार कर दिया था कि क्या ‘जबरन धर्म परिवर्तन’ को भारतीय दंड संहिता के तहत धर्म से संबंधित एक अलग अपराध बनाया जाना चाहिए।
संवैधानिक दृष्टिकोण
- अनुच्छेद 25: सार्वजनिक व्यवस्था, नैतिकता एवं स्वास्थ्य के अधीन धर्म की स्वतंत्रता
- अनुच्छेद 21: गरिमा, निजता एवं पसंद का अधिकार
- अनुच्छेद 14: कानून के समक्ष समानता- मनमाने प्रतिबंध से इनका उल्लंघन हो सकता है।
चिंताएँ
- व्यक्तिगत पसंद का अति-अपराधीकरण
- साक्ष्य का भार प्राय: व्यक्तियों या आरोपियों पर डालना
- अंतर्धार्मिक सद्भाव पर नकारात्मक प्रभाव
आगे की राह
- मनमानी से बचने के लिए ‘धोखे से धर्मांतरण’ को स्पष्ट रूप से परिभाषित किया जाना चाहिए।
- व्यक्तिगत अधिकारों एवं सार्वजनिक व्यवस्था के बीच संतुलन सुनिश्चित करने के लिए राज्य के कानूनों की न्यायिक जाँच होनी चाहिए।
- निजी धार्मिक निर्णयों को अपराध घोषित करने के बजाय जागरूकता एवं संवाद को बढ़ावा देने की आवश्यकता है।