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भारत में निम्न विकास दर : कारण एवं सिफारिशें

(प्रारंभिक परीक्षा : भारतीय अर्थव्यवस्था)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 3: समावेशी विकास तथा इससे उत्पन्न विषय)

संदर्भ

  • राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (NSO) द्वारा जारी पहले अग्रिम अनुमान के अनुसार, भारत की वास्तविक सकल घरेलू उत्पाद (GDP) वृद्धि दर वित्त वर्ष 2023-24 में 8.2% से घटकर वर्ष 2024-25 में 6.4% रहने का अनुमान है। 
  • वित्त वर्ष 2024-25 के लिए सांकेतिक सकल घरेलू उत्पाद वृद्धि 9.7% अनुमानित है, जो केंद्रीय बजट में 10.5% के अनुमान से कम है।

भारत में निम्न विकास दर के कारण 

  • डाटा संबंधी मुद्दे : थोक मूल्य सूचकांक (WPI) को अपस्फीतिकारक (Deflator) के रूप में उपयोग करने के कारण भारत के सकल घरेलू उत्पाद के अनुमानों में विसंगतियाँ आ रही हैं। इसके कारण वास्तविक सकल घरेलू उत्पाद के आँकड़े असंगत हो रहे हैं।

इसे भी जानिए!

  • जी.डी.पी. डिफ्लेटर को इंप्लिसिट प्राइस डिफ्लेटर (Implicit Price Deflator) भी कहते है जोकि मुद्रास्फीति की एक माप है। यह किसी अर्थव्यवस्था में किसी विशेष वर्ष में वर्तमान कीमतों पर उत्पादित वस्तुओं एवं सेवाओं के मूल्य और आधार वर्ष के दौरान प्रचलित कीमतों के बीच का अनुपात है।
  • यह अनुपात यह दर्शाने में सहायक होता है कि सकल घरेलू उत्पाद में वृद्धि किस सीमा तक उत्पादन में वृद्धि के बजाय उच्च कीमतों के कारण हुई है। डिफ्लेटर अर्थव्यवस्था को मुद्रास्फीति के अधिक व्यापक माप के रूप में देखा जाता है क्योंकि यह थोक या उपभोक्ता मूल्य सूचकांकों के सीमित कमोडिटी बास्केट के विपरीत उत्पादित वस्तुओं एवं सेवाओं की पूरी श्रृंखला को कवर करता है।
  • निजी निवेश में कमी : उम्मीदों के बावजूद, निजी क्षेत्र, विशेष कर मशीनरी एवं उपकरण क्षेत्र में निवेश कमज़ोर बना हुआ है। निवेश का अधिकांश हिस्सा रियल एस्टेट क्षेत्र की तरफ झुका हुआ है, जो संतुलित विकास के लिए उचित नहीं है। 
  • सार्वजनिक निवेश पर निर्भरता : महामारी के बाद की रिकवरी पर्याप्त सीमा तक सार्वजनिक निवेश पर निर्भर रही है। इस स्थिति को प्रशासन एवं रक्षा क्षेत्र में विशेष रूप से देखा जा सकता है।
  • प्रमुख क्षेत्रों में मंदी : विनिर्माण, खनन, निर्माण एवं सेवाओं (वित्त, रियल एस्टेट) जैसे प्रमुख क्षेत्रों की विकास दर में गिरावट आ रही है।
  • राजकोषीय तनाव : कर राजस्व की धीमी वृद्धि ने बजटीय योजनाओं को बाधित किया है। फलतः सार्वजनिक व्यय (विशेष रूप से पूंजीगत व्यय) अपेक्षाकृत न्यून रहा है। 
  • निवेश सुधारों में विफलता : कर सुधारों एवं प्रोत्साहनों से निवेश में उल्लेखनीय वृद्धि नहीं हुई है। 
    • उदाहरण के लिए, प्रधानमंत्री पैकेज की घोषणा से निजी कॉर्पोरेट निवेश में तेजी की उम्मीद थी, जबकि ऐसा नहीं हुआ। 

नीतिगत सिफारिशें

  • उन्नत GDP अनुमान विधि : GDP अनुमानों की सटीकता में सुधार करने के लिए थोक मूल्य सूचकांक (WPI) के बजाय उत्पादक मूल्य सूचकांक (PPI) को अपनाकर आधिकारिक GDP डाटा की विसंगतियों को दूर किया जा सकता है।
  • निजी निवेश को प्रोत्साहन : निजी क्षेत्र के निवेश को बढ़ावा देने में कॉर्पोरेट कर में कटौती की नीति की प्रभावशीलता का पुनर्मूल्यांकन किया जाना चाहिए। 
    • अस्थायी कर प्रोत्साहनों के बजाय दीर्घकालिक पूंजी निर्माण एवं औद्योगिक विकास को प्रोत्साहित करने वाले संरचनात्मक सुधारों पर ध्यान केंद्रित करना अधिक व्यावहारिक कदम हो सकता है।
  • सार्वजनिक व्यय को बढ़ावा : निजी निवेश कमज़ोर है, इसलिए आर्थिक विकास को बनाए रखने के लिए सार्वजनिक क्षेत्र के निवेश को बढ़ाया जाना महत्वपूर्ण है। विशेष रूप से बुनियादी ढाँचे में अधिक ध्यान देने की आवश्यकता है। 
    • अर्थव्यवस्था को प्रोत्साहित करने के लिए पूंजीगत व्यय पर खर्च को प्राथमिकता देना आवश्यक है।
  • कर सुधार : संपत्ति एवं कॉर्पोरेट लाभ पर ध्यान केंद्रित करने वाली एक अधिक संतुलित कर प्रणाली को अपनाया जा सकता है, जिससे सतत् सार्वजनिक व्यय के लिए राजस्व उत्पन्न करने में मदद मिलेगी।
  • राजकोषीय अनुशासन : यह सुनिश्चित करते हुए कि राजकोषीय लक्ष्य आर्थिक सुधार के लिए आवश्यक निवेश को कम न करें; राजकोषीय समेकन को आवश्यक सार्वजनिक व्यय के साथ संतुलित किया जाना चाहिए।

क्या आप जानते हैं?

जी.डी.पी. डिफ्लेटर वास्तविक जी.डी.पी. एवं सांकेतिक जी.डी.पी. के बीच के अंतर को मापता है। सांकेतिक जी.डी.पी. में मुद्रास्फीति शामिल नहीं होती है जबकि वास्तविक जी.डी.पी. में मुद्रास्फीति शामिल होती है। इसके परिणामस्वरूप एक विस्तारित अर्थव्यवस्था में सांकेतिक जी.डी.पी. प्राय: वास्तविक जी.डी.पी. से अधिक होगी।

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