(प्रारंभिक परीक्षा: भारतीय प्राचीन इतिहास) (मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 1: भारतीय संस्कृति में प्राचीन काल से आधुनिक काल तक के कला के रूप, साहित्य तथा वास्तुकला के मुख्य पहलू) |
संदर्भ
27 जुलाई, 2025 को प्रधानमंत्री मोदी ने तमिलनाडु में राजेंद्र चोल प्रथम की जयंती के अवसर पर आयोजित ‘आदि तिरुवाथिरै उत्सव’ के समापन समारोह में भाग लिया।
चोल वंश के बारे में
- ऐतिहासिक महत्व : चोल वंश ने 9वीं से 13वीं शताब्दी तक दक्षिण भारत पर शासन किया और इसे भारतीय इतिहास का स्वर्ण युग माना जाता है।
- प्रमुख राजा :
- राजराज चोल प्रथम
- उन्होंने चोल साम्राज्य को एक शक्तिशाली सामुद्रिक एवं स्थलीय शक्ति के रूप में स्थापित किया।
- तंजावुर में विश्व प्रसिद्ध बृहदीश्वर मंदिर का निर्माण करवाया, जो यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल है।
- एक शक्तिशाली नौसेना का निर्माण किया, जिसने श्रीलंका एवं मालदीव पर विजय प्राप्त की।
- राजेंद्र चोल प्रथम
- राजराज चोल के पुत्र, जिन्होंने पिता की विरासत को विस्तार दिया।
- गंगाईकोंड (गंगैकोण्ड) चोलपुरम की स्थापना की, जो चोल साम्राज्य की नई राजधानी बनी।
- गंगा के मैदानों तक विजयी अभियान चलाया और चोलगंगम नामक एक विशाल झील का निर्माण करवाया।
- दक्षिण-पूर्व एशिया (जैसे- सुमात्रा एवं मलय प्रायद्वीप) के साथ व्यापारिक तथा राजनयिक संबंध स्थापित किए।
- सांस्कृतिक योगदान : चोल वंश ने कला, साहित्य एवं धर्म को बढ़ावा दिया, विशेष रूप से शैव परंपरा को, जिसने भारतीय संस्कृति को समृद्ध किया।
सैन्य शक्ति
- शक्तिशाली नौसेना : राजराज चोल ने एक शक्तिशाली नौसेना का निर्माण किया, जिसे राजेंद्र चोल ने और सशक्त किया। इस नौसेना ने श्रीलंका, मालदीव एवं दक्षिण-पूर्व एशिया में चोल साम्राज्य का विस्तार किया।
- सामरिक उपलब्धियाँ : चोलों ने अपनी सैन्य रणनीतियों के माध्यम से दक्षिण भारत में स्थिरता एवं एकता स्थापित की। गंगा के मैदानों तक विजय अभियान ने चोल साम्राज्य को उत्तरी भारत तक प्रभावशाली बनाया।
- आधुनिक प्रासंगिकता : प्रधानमंत्री मोदी ने चोल नौसेना की तुलना आधुनिक भारत की रक्षा नीति से की, विशेष रूप से ऑपरेशन सिंदूर के माध्यम से देश की संप्रभुता की रक्षा को रेखांकित किया।
प्रशासन
- स्थानीय प्रशासन : चोलों ने एक कुशल स्थानीय प्रशासन प्रणाली विकसित की, जिसमें गाँवों एवं स्थानीय समुदायों को स्वायत्तता दी गई।
- आर्थिक प्रबंधन : चोलों ने व्यापार एवं वाणिज्य को बढ़ावा दिया, जिससे श्रीलंका, मालदीव व दक्षिण-पूर्व एशिया के साथ व्यापारिक संबंध मजबूत हुए। कर प्रणाली को व्यवस्थित किया गया, जिससे साम्राज्य की आर्थिक समृद्धि बढ़ी।
- जल प्रबंधन : चोलों ने उत्कृष्ट जल प्रबंधन प्रणालियाँ विकसित कीं (जैसे- चोलगंगम झील एवं सिंचाई नहरें) जो कृषि व जल संरक्षण में सहायक थीं।
प्राचीन मतदान प्रणाली : कुदवोलई
- लोकतंत्र का प्रारंभिक रूप : चोल वंश ने कुदवोलई प्रणाली के माध्यम से स्थानीय स्तर पर प्रतिनिधियों का चुनाव शुरू किया। इस प्रणाली में ग्रामीण समुदाय अपने प्रतिनिधियों को चुनते थे, जो प्रशासनिक एवं सामुदायिक निर्णयों में भाग लेते थे।
- आधुनिक प्रासंगिकता : यह प्रणाली आधुनिक लोकतांत्रिक मूल्यों की नींव को दर्शाती है जो भारत की प्राचीन लोकतांत्रिक परंपराओं का प्रतीक है।
वास्तुकला
- बृहदीश्वर मंदिर : राजराज चोल द्वारा निर्मित यह मंदिर द्रविड़ वास्तुकला का एक उत्कृष्ट उदाहरण है। इसकी भव्यता एवं जटिल नक्काशी विश्व स्तर पर प्रशंसित है।
- गंगाईकोंड चोलपुरम : राजेंद्र चोल द्वारा निर्मित यह शहर और इसका मंदिर चोल वास्तुकला की उत्कृष्टता को दर्शाता है।
- सांस्कृतिक महत्व : चोल वास्तुकला ने शैव धर्म और भारतीय कला को बढ़ावा दिया, जो आज भी तमिलनाडु की सांस्कृतिक पहचान का हिस्सा है।
- प्रधानमंत्री की पहल : चोल सम्राटों ‘राजराज चोल’ एवं ‘राजेंद्र चोल’ की भव्य मूर्तियों की स्थापना की घोषणा की गई, जो देश की ऐतिहासिक चेतना को मजबूत करेगी।
आधुनिक विकसित भारत के लिए रोडमैप
- राष्ट्रीय एकता : चोल वंश ने सांस्कृतिक एवं क्षेत्रीय एकता को बढ़ावा दिया। आधुनिक भारत को भी क्षेत्रीय व सांस्कृतिक विविधता को एकजुट करने की आवश्यकता है। काशी तमिल संगमम और सौराष्ट्र तमिल संगमम जैसे आयोजन इसी दिशा में कदम हैं।
- रक्षा व नौसेना : चोलों की शक्तिशाली नौसेना आधुनिक भारत के लिए प्रेरणा है। देश को अपनी रक्षा शक्ति (विशेष रूप से नौसेना) को और मजबूत करना चाहिए।
- जल एवं पर्यावरण प्रबंधन : चोलों की जल प्रबंधन प्रणालियाँ आधुनिक भारत के लिए जल संरक्षण एवं पर्यावरण संरक्षण के महत्व को दर्शाती हैं।
- सांस्कृतिक संरक्षण : चोलों ने अपनी सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित किया। भारत सरकार द्वारा वर्ष 2014 के बाद से 600 से अधिक प्राचीन मूर्तियों और कलाकृतियों को वापस लाया गया है जिनमें से 36 तमिलनाडु की हैं।
- शैव परंपरा एवं मूल्य : सिद्ध तिरुमूलर का सिद्धांत ‘अनबे शिवम’ (प्रेम ही ईश्वर है) विश्व में अस्थिरता, हिंसा एवं पर्यावरणीय संकट को हल करने का मार्ग दिखाता है।
- आर्थिक एवं सामरिक प्रगति : चोलों ने व्यापार एवं राजनयिक संबंधों के माध्यम से आर्थिक समृद्धि हासिल की। भारत को भी वैश्विक व्यापार और सामरिक साझेदारियों को बढ़ावा देना चाहिए।
निष्कर्ष
चोल वंश की विरासत न केवल भारत की ऐतिहासिक गौरव की कहानी कहती है बल्कि आधुनिक भारत के लिए एक रोडमैप भी प्रदान करती है। उनकी सैन्य शक्ति, प्रशासनिक कुशलता, प्राचीन लोकतांत्रिक प्रणाली और सांस्कृतिक योगदान वर्तमान में भी प्रासंगिक हैं।