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चाइल्ड पोर्नोग्राफी की निरंतर बढ़ती मांग

(सामान्य अध्ययन, मुख्य परीक्षा प्रश्नपत्र- 1 : सामाजिक मुद्दे)

वर्तमान संदर्भ

  • हाल ही में, इंडिया चाइल्ड प्रोटेक्शन फंड (ICPF) की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत में कोविड-19 महामारी के कारण लागू लॉकडाउन के दौरान चाइल्ड पोर्नोग्राफी सामग्री (Child Sexual Abuse Material-CSAM) की मांग में दोगुनी वृद्धि देखी गई है।
  • ध्यातव्य है कि आई.सी.पी.एफ. एक गैर-सरकारी संगठन है, जो बाल अधिकार सम्बंधी विषयों पर कार्य करता है। इस संस्था का प्रबंधन कैलाश सत्यार्थी के पुत्र भुवन रिभु द्वारा किया जाता है।
  • आई.सी.पी.एफ. द्वारा सरकार को सूचित किया गया है कि बाल बलात्कारियों और चाइल्ड पोर्नोग्राफी कारोबार से जुड़े व्यक्तियों को लाखों पीडोफाइल (ऐसे व्यक्तियों की वीडियो जो बच्चों के साथ यौन शोषण के प्रति आकर्षित होते हैं) की ऑनलाइन आपूर्ति की जा रही है।

पोक्सो अधिनियम, 2012

  • ‘पोक्सो’ का पूरा नाम ‘बाल यौन अपराध संरक्षण’ (Protection of Children From Sexual Offences-POCSO) अधिनियम है।
  • पोक्सो अधिनियम, 2012 बच्चों को यौन उत्पीड़न, यौन शोषण तथा पोर्नोग्राफी से संरक्षण प्रदान करता है।
  • पोक्सो अधिनियम में वर्ष 2019 में निम्नलिखित संशोधन किये गए-
    • चाइल्ड पोर्नोग्राफी को परिभाषित करने के साथ ही इसमें अश्लील साहित्य को भी शामिल किया गया है।
    • 18 वर्ष से कम उम्र के व्यक्ति को बच्चे के रूप में परिभाषित किया गया है।
    • अधिनियम की धारा- 4 में बच्चों के साथ ‘पेनिट्रेटिव सेक्सुअल असॉल्ट’ की स्थिति में न्यूनतम सज़ा 7 वर्ष से बढ़ाकर 10 वर्ष कर दी गई है।
    • धारा- 6 में सशोधन करते हुए न्यूनतम सज़ा को 10 वर्ष से बढ़ाकर 20 वर्ष कर दिया गया है। साथ ही, अधिकतम सज़ा को बढ़ाकर आजीवन कारावास या मृत्युदण्ड का प्रावधान किया गया है।
    • पुलिस अधिकारी, सशत्र सेनाओं के सदस्य अथवा लोक सेवक द्वारा यौन हमले को ‘सीरियस पेनिट्रेटिव सेक्सुअल असॉल्ट’ माना जाएगा।
    • समय से पहले यौन परिपक्वता लाने के लिये कोई हार्मोन अथवा रासायनिक पदार्थ देने या दिलवाने को भी ‘गम्भीर यौन हमला’ (Serious sexual assault) माना जाएगा।
    • यौन सहमति की उम्र 16 वर्ष से बढ़ाकर 18 वर्ष कर दी गई है।
    • 12 वर्ष तक की बच्ची से बलात्कार के दोषियों के लिये मृत्युदण्ड का प्रावधान किया गया है।
    • यदि अभियुक्त एक किशोर है, तो उसके ऊपर ‘किशोर न्याय (बच्चों की देखरेख और संरक्षण) अधिनियम, 2000 के तहत मुकदमा चलाया जाएगा।

चिंता  के  विषय

  • दोष सिद्धि की दर (Conviction Rate) में लगातार गिरावट और लम्बित मामलों की संख्या में वृद्धि। साथ ही, बाल अपराध की दर में लगातार वृद्धि।
  • पीड़ित बच्चों के पुनर्वास हेतु पर्याप्त सुविधाओं का अभाव। साथ ही, ऐसे विषयों में सामाजिक जागरूकता की कमी।
  • आदिवासी क्षेत्रों, गाँव एवं दूर-दराज के ग्रामीण क्षेत्रों में मामलों का ठीक से दर्ज न हो पाना।
  • प्रशासनिक कर्मियों, पुलिस, समाज यहाँ तक कि न्यायाधीशों में भी संवेदनशीलता की कमी।
  • माता-पिता एवं बच्चों के मध्य सम्वाद की कमी।
  • बाल श्रम एवं बाल तस्करी।
  • लैंगिक एवं जातीय भेदभाव, कन्या भ्रूण हत्या, भिक्षावृत्ति एवं बाल विवाह आदि।
  • स्कूली स्तर पर यौन शिक्षा का आभाव।

बाल यौन शोषण रोकने हेतु सुझाव

  • फास्ट ट्रैक कोर्ट के माध्यम से ऐसे मामलों की निपटान प्रक्रिया में तेज़ी लाई जाए।
  • कठोर कानून के साथ-साथ समाज में जागरूकता एवं नैतिक मूल्यों के विकास पर बल देना चाहिये।
  • टीवी के माध्यम से सत्यमेव जयते तथा बालिका वधु जैसे कार्यक्रमों को प्रसारित कर बच्चों व उनके माता-पिता को बाल अधिकारों के बारे में सजग करते रहना चाहिये।
  • इन मामलों में संलग्न दोषियों का सामाजिक बहिष्कार किया जाना चाहिये।
  • उम्र का विचार किये बिना अपराध के आनुपातिक सज़ा होनी चाहिये।
  • यौन उत्पीड़न के शिकार बच्चों के मामलों के कार्यान्वयन हेतु संवेदनशील पुलिसकर्मियों के साथ ही चिकित्सा व मनोवैज्ञानिक सहायता भी प्रदान की जानी चाहिये।
  • उचित क्षतिपूर्ति एवं पुनर्वास की सुविधा प्रदान की जानी चाहिये।

क्या हो आगे की राह

  • कानूनों एवं नीतियों के कार्यान्वयन पर अधिक ज़ोर देने के साथ-साथ बच्चों का संरक्षण, पोषण एवं गौरवपूर्ण बचपन सुनिश्चित किया जाना चाहिये।
  • बच्चों की अवहेलना राष्ट्र के भविष्य के साथ खिलवाड़ है। इस सम्बंध में परिवार, समाज, राष्ट्र और अंतर्राष्ट्रीय मंचों को और अधिक सजग होने की आवश्यकता है।
  • सरकार को चाइल्ड पोर्नोग्राफी के खिलाफ सख्त कानूनी कार्यवाही करने के साथ-साथ बाल यौन शोषण सामग्री के खिलाफ अंतर्राष्ट्रीय अभिसमय के लिये वैश्विक स्तर पर पहल की जानी चाहिये।
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