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ट्रांसजेंडर-समावेशी यौन शिक्षा की आवश्यकता

(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 2: केंद्र एवं राज्यों द्वारा जनसंख्या के अति संवेदनशील वर्गों के लिये कल्याणकारी योजनाएँ और इन योजनाओं का कार्य-निष्पादन; इन अति संवेदनशील वर्गों की रक्षा एवं बेहतरी के लिये गठित तंत्र, विधि, संस्थान व निकाय)

संदर्भ 

सर्वोच्च न्यायालय ने स्कूलों में ट्रांसजेंडर-समावेशी यौन शिक्षा की मांग करने वाली एक याचिका पर केंद्र सरकार और राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद (National Council of Educational Research and Training: NCERT) से जवाब मांगा है। इस याचिका का उद्देश्य ट्रांसजेंडर्स के प्रति कलंक की भावना को कम करना और समावेशिता को बढ़ावा देना है।

हालिया याचिका 

  • भारत के मुख्य न्यायाधीश भूषण रामकृष्ण गवई और न्यायमूर्ति के. विनोद चंद्रन की पीठ ने दिल्ली की 16 वर्षीय छात्रा काव्या मुखर्जी साहा द्वारा दायर याचिका पर नोटिस जारी किया और प्रतिवादियों को छह सप्ताह के भीतर जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया।
  • याचिका में तर्क दिया गया है कि मौजूदा यौन शिक्षा सामग्री द्विआधारी (पुरुष/महिला) है और ट्रांसजेंडर एवं लिंग-विविध पहचानों को बाहर करती है।
  • पाठ्यक्रम में लैंगिक संवेदनशीलता को शामिल करने के लिए राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (National Commission For Protection of Child Rights: NCPCR) दिशानिर्देशों और एन.सी.ई.आर.टी. की पूर्व पहलों का हवाला दिया गया है।
  • याचिकाकर्ता द्वारा नाल्सा बनाम भारत संघ मामले (2014) में सर्वोच्च न्यायालय के फैसले का संदर्भ दिया गया है जिसमें ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को ‘तीसरे लिंग’ के रूप में मान्यता दी गई थी और उनके सम्मान एवं समानता के अधिकार की पुष्टि की गई थी।
  • याचिकाकर्ता के अनुसार यौन शिक्षा में लैंगिक संवेदनशीलता और ट्रांसजेंडर-समावेशी दृष्टिकोण को शामिल किया जाना चाहिए।
  • याचिका में आरोप लगाया गया है कि एन.सी.ई.आर.टी. और अधिकांश राज्य शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद (SCERT) ट्रांसजेंडर व्यक्ति (अधिकार संरक्षण) अधिनियम, 2019 की धारा 2 (डी) व 13 के तहत स्पष्ट दायित्वों के बावजूद लिंग पहचान, लिंग विविधता तथा सेक्स और जेंडर के बीच अंतर पर परीक्षा योग्य मॉड्यूल शामिल करने में विफल रहे हैं।
  • याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि ये विफलता समानता के अधिकार का उल्लंघन करती हैं और राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांतों को कमज़ोर करती हैं। 
    • इसलिए, देश भर के परीक्षा योग्य पाठ्यक्रमों में ‘वैज्ञानिक रूप से सटीक, आयु-उपयुक्त’ और ट्रांसजेंडर-समावेशी व्यापक यौन शिक्षा को अनिवार्य रूप से शामिल करने के निर्देश मांगे गए थे।
  • याचिका में सर्वोच्च न्यायालय के दिसंबर 2024 के उस फैसले का भी हवाला दिया गया था, जिसमें बाल विवाह रोकने में यौन शिक्षा की महत्त्वपूर्ण भूमिका पर बल दिया गया था।

संबंधित मुद्दे

  • संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन : समावेशी यौन शिक्षा का अभाव अनुच्छेद 14 (समानता), अनुच्छेद 15 (भेदभाव न करना) और अनुच्छेद 21 (गरिमा, शिक्षा, स्वास्थ्य) का उल्लंघन करता है।
  • जन स्वास्थ्य संबंधी चिंताएँ : समावेशी यौन शिक्षा का अभाव गलत सूचना, मानसिक स्वास्थ्य तनाव और एच.आई.वी./एड्स के प्रति संवेदनशीलता को बढ़ाता है।
  • सामाजिक समावेशन : शिक्षा प्रणाली ट्रांसजेंडर बच्चों के प्रति उत्पीड़न, भेदभाव एवं सामाजिक कलंक को कम करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है।

सर्वोच्च न्यायालय का रुख

सर्वोच्च न्यायालय ने इस संदर्भ में केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय, एन.सी.ई.आर.टी. व अन्य हितधारकों को नोटिस जारी किया है कि क्या यौन शिक्षा मॉड्यूल में ट्रांसजेंडर दृष्टिकोण को शामिल करने के लिए संशोधन किया जाना चाहिए।

निर्णय का महत्त्व 

  • शैक्षिक सुधार : राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020 के तहत समावेशी पाठ्यक्रम के निर्माण पर बल दे सकता है।
  • सामाजिक न्याय : सतत विकास लक्ष्य 4 (गुणवत्तापूर्ण शिक्षा) और सतत विकास लक्ष्य 5 (लैंगिक समानता) के तहत भारत की प्रतिबद्धताओं का समर्थन करता है।
  • कानूनी स्पष्टता : नालसा निर्णय (2014) और ट्रांसजेंडर व्यक्ति (अधिकार संरक्षण) अधिनियम, 2019 पर आधारित।
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