(प्रारंभिक परीक्षा: राष्ट्रीय महत्त्व की सामयिक घटनाएँ, जनसांख्यिकी) (मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 2: स्वास्थ्य, शिक्षा, मानव संसाधनों से संबंधित सामाजिक क्षेत्र/सेवाओं के विकास और प्रबंधन से संबंधित विषय) |
संदर्भ
स्वास्थ्य मंत्रालय की मलेरिया उन्मूलन तकनीकी रिपोर्ट, 2025 एक अहम चेतावनी के साथ सामने आई है। रिपोर्ट के अनुसार, दिल्ली जैसे बड़े महानगरों में शहरी मलेरिया तेजी से उभरती हुई एक राष्ट्रीय चिंता बन गया है। इसका प्रमुख कारण है मच्छरों की आक्रामक प्रजाति एनोफेल्स स्टेफेन्सी है जो भारत के वर्ष 2030 तक मच्छर जनित बीमारियों के उन्मूलन के लक्ष्य के लिए गंभीर चुनौती प्रस्तुत कर रही है।
प्रमुख बिंदु
- रिपोर्ट में उल्लेख है कि लक्षणहीन संक्रमण, दुर्गम भौगोलिक क्षेत्र और लोगों की निरंतर आवाजाही मलेरिया के प्रसार को बनाए रखने वाले प्रमुख कारक हैं। ओडिशा, त्रिपुरा एवं मिजोरम के कुछ जिलों में अब भी संक्रमण का स्तर उच्च है। इसके अलावा म्यांमार और बांग्लादेश से होने वाला सीमा पार संक्रमण पूर्वोत्तर भारत के सीमावर्ती इलाकों में जोखिम को और बढ़ा रहा है।
- भारत ने मलेरिया उन्मूलन के दीर्घकालिक लक्ष्य (2030) के साथ-साथ विश्व स्वास्थ्य संगठन की वैश्विक रणनीति के अनुरूप 2027 तक स्वदेशी मामलों को शून्य पर लाने का एक मध्यवर्ती लक्ष्य भी तय किया है।
एनोफेल्स स्टेफेन्सी के बारे में
- एनोफेल्स स्टेफेन्सी मच्छरों की एक आक्रामक प्रजाति है जिसकी उत्पत्ति दक्षिण-पूर्व एशिया और अरब प्रायद्वीप के कुछ क्षेत्रों में मानी जाती है।
- यह मलेरिया रोग का प्रमुख वाहक है और मानव स्वास्थ्य के लिए गंभीर खतरा पैदा करता है।
- हाल के वर्षों में इसका प्रसार अफ्रीका के कई हिस्सों तक हो गया है जिससे वैश्विक स्तर पर सार्वजनिक स्वास्थ्य संबंधी चिंताएँ बढ़ी हैं।
- अन्य मलेरिया फैलाने वाले मच्छरों के विपरीत यह प्रजाति शहरी परिवेश में बहुत आसानी से अनुकूलन कर लेती है।
- यह बहुत कम मात्रा में पानी में भी पूरे वर्ष प्रजनन करने की क्षमता रखती है और शहरों में इसके लिए अनुकूल परिस्थितियां उपलब्ध रहती हैं।
- अपने प्राकृतिक क्षेत्रों में यह मच्छर ‘प्लास्मोडियम फाल्सीपेरम’ और ‘प्लास्मोडियम विवैक्स’ दोनों प्रकार के मलेरिया परजीवियों का प्रभावी वाहक है।
- शहरी इलाकों में एन. स्टेफेन्सी साल भर मौजूद रहता है किंतु जून से अगस्त के बीच इसकी संख्या सबसे अधिक होती है जो मलेरिया के प्रसार की सबसे संवेदनशील अवधि मानी जाती है।
भारत के शहरी क्षेत्र में मलेरिया नियंत्रण में आने वाली चुनौतियाँ
शहरी भारत में मलेरिया नियंत्रण को कई विशिष्ट चुनौतियों का सामना करना पड़ता है—
- तेजी से बढ़ती आबादी
- अनियोजित बस्तियां
- गतिविधियां और बिखरी हुई स्वास्थ्य सेवाएँ
रिपोर्ट में उल्लेखित उपाय
- निगरानी प्रणालियों को सुदृढ़ करना
- वेक्टर सर्विलांस का विस्तार करना
- आपूर्ति श्रृंखला की विश्वसनीयता बढ़ाना
सीमित होता मलेरिया
- भारत अब मलेरिया उन्मूलन के उन्नत चरण में प्रवेश कर चुका है, लेकिन बीमारी का बोझ देशभर में समान रूप से नहीं है।
- यह संक्रमण अब कुछ विशिष्ट इलाकों तक सीमित है जहाँ स्थानीय पारिस्थितिकी, मानव गतिविधियां, आजीविका से जुड़े जोखिम और स्वास्थ्य सेवाओं तक सीमित पहुंच इसे बनाए रखती हैं।
- आदिवासी और वन क्षेत्रों, सीमावर्ती जिलों और प्रवासी आबादी वाले इलाकों में अब सक्रिय निगरानी को तेज किया गया है क्योंकि यहां संक्रमण फैलने की आशंका अब भी अधिक बनी हुई है।
प्रगति के साथ चुनौतियां बरकरार
- बीते एक दशक में भारत ने मलेरिया के खिलाफ उल्लेखनीय सफलता हासिल की है।
- जहाँ 2015 में मलेरिया के मामले लगभग 11.7 लाख थे, वहीं 2024 में यह संख्या घटकर करीब 2.27 लाख रह गई।
- इसी अवधि में मलेरिया से होने वाली मौतों में भी 78% की कमी दर्ज की गई है।
- इसके बावजूद रिपोर्ट कई संरचनात्मक चुनौतियों की ओर संकेत करती है-
- निजी क्षेत्र से अपूर्ण रिपोर्टिंग
- कीटविज्ञान विशेषज्ञता की कमी
- कीटनाशकों के प्रति बढ़ता प्रतिरोध
- दूरदराज के आदिवासी क्षेत्रों में संचालन संबंधी दिक्कतें
- जांच व उपचार सामग्री की अनियमित उपलब्धता
मलेरिया उन्मूलन की दिशा तय करने वाले रणनीतिक ढांचे
- भारत में मलेरिया के खिलाफ मिली प्रगति के पीछे एक स्पष्ट और संगठित नीतिगत ढांचा काम कर रहा है। इन नीतियों का उद्देश्य न केवल संक्रमण को नियंत्रित करना है, बल्कि देश को उन्मूलन के अंतिम लक्ष्य तक पहुंचाना भी है।
- मलेरिया उन्मूलन के लिए राष्ट्रीय ढांचा, 2016 के तहत वर्ष 2027 तक स्वदेशी मलेरिया मामलों को शून्य पर लाने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है।
- इसके पूरक के रूप में राष्ट्रीय रणनीतिक योजना (2023–2027) लागू की गई है जिसमें मजबूत निगरानी व्यवस्था ‘परीक्षण–उपचार–ट्रैक’ मॉडल एवं एकीकृत स्वास्थ्य सूचना मंच के माध्यम से वास्तविक समय में मामलों की निगरानी पर विशेष जोर दिया गया है।
वेक्टर नियंत्रण और शहरी मलेरिया पर फोकस
- मलेरिया नियंत्रण में एकीकृत वेक्टर प्रबंधन की भूमिका केंद्रीय रही है। इसके अंतर्गत कई उपायों को एक साथ लागू किया गया है, जिनमें शामिल हैं—
- इनडोर अवशिष्ट छिड़काव
- दीर्घकालिक कीटनाशक जाल का व्यापक उपयोग
- इसके साथ ही, शहरी क्षेत्रों में तेजी से फैल रहे आक्रामक एनोफेलेस स्टेफेन्सी मच्छर को नियंत्रित करने और शहरी मलेरिया प्रबंधन को सुदृढ़ करने पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है।
मजबूत निदान और स्वास्थ्य प्रणाली
- मलेरिया उन्मूलन की सफलता के लिए मजबूत स्वास्थ्य तंत्र और समुदाय की भागीदारी को आवश्यक माना गया है।
- राष्ट्रीय वेक्टर जनित रोग नियंत्रण केंद्र के अंतर्गत राष्ट्रीय संदर्भ प्रयोगशालाओं की स्थापना की गई है।
- जनजातीय, वनवासी एवं अधिक प्रभावित क्षेत्रों के लिए जिला-विशेष कार्य योजनाएं तैयार की गई हैं।
- मलेरिया सेवाओं को आयुष्मान भारत कार्यक्रम में शामिल किया गया है जिससे सामुदायिक स्वास्थ्य अधिकारियों और आयुष्मान आरोग्य मंदिरों के माध्यम से जमीनी स्तर पर इलाज व जांच की सुविधा मिल रही है।
क्षमता निर्माण, अनुसंधान एवं साझेदारी
- मलेरिया उन्मूलन की प्रक्रिया में मानव संसाधन और वैज्ञानिक शोध की भूमिका भी अहम रही है।
- राष्ट्रीय प्रशिक्षण कार्यक्रमों के जरिए वर्ष 2024 में 850 से अधिक स्वास्थ्य कर्मियों को प्रशिक्षित किया गया।
- कीटनाशक प्रतिरोध और दवाओं की प्रभावशीलता पर किए गए शोध, साक्ष्य-आधारित नीतियों और हस्तक्षेपों का मार्गदर्शन कर रहे हैं।
- गहन मलेरिया उन्मूलन परियोजना–3 के तहत 12 राज्यों के 159 जिलों को कवर किया जा रहा है। यह परियोजना संवेदनशील आबादी की पहचान, एलएलआईएन का वितरण, कीटविज्ञानीय अध्ययन और सुदृढ़ निगरानी तंत्र पर केंद्रित है।
आगे की राह : अनुसंधान से उन्मूलन
- रिपोर्ट के अनुसार, परिचालन अनुसंधान मलेरिया उन्मूलन की गति बढ़ाने में निर्णायक भूमिका निभा सकता है। प्राथमिक अनुसंधान क्षेत्रों में लक्षणहीन संक्रमण की पहचान, एनोफेल्स स्टेफेन्सी की पारिस्थितिकी व नियंत्रण, दवा व कीटनाशक प्रतिरोध से निपटना और पी. विवैक्स के लिए उपचार रणनीतियों का अनुकूलन शामिल है।
- स्पष्ट है कि भारत ने मलेरिया के खिलाफ लंबी दूरी तय कर ली है किंतु शहरीकरण, सीमा पार संक्रमण और बदलते वेक्टर व्यवहार के दौर में उन्मूलन का अंतिम लक्ष्य हासिल करने के लिए सतत निगरानी, नवाचार एवं अनुसंधान की भूमिका पहले से कहीं अधिक महत्वपूर्ण हो गई है।