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यू.के. की बाल संहिता का डिजिटल स्पेस पर प्रभाव 

(प्रारंभिक परीक्षा- राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व की सामयिक घटनाएँ)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 3 : आंतरिक सुरक्षा चुनौतियों में मीडिया और सामाजिक नेटवर्किंग साइटों की भूमिका, साइबर सुरक्षा की बुनियादी बातें)

संदर्भ 

विगत सप्ताह यू.के. सरकार ने ‘डाटा संरक्षण अधिनियम, 2018’ में संशोधन के रूप में ‘आयु उपयुक्त डिज़ाइन संहिता’ या ‘बाल संहिता’ लागू की है। यह बच्चों के लिये डिजिटल स्पेस का उपयोग सुरक्षित बनाने से संबंधित है। हालाँकि, यह संहिता आधिकारिक तौर पर केवल यू.के. में लागू है किंतु टिकटॉक, इंस्टाग्राम और यूट्यूब जैसी टेक कंपनियों ने बच्चों के लिये सुरक्षा नियमों को कड़ा कर दिया है और उम्मीद है कि ये नियम विश्व स्तर पर आदर्श बनेंगे।

क्या है बाल संहिता?

  • बाल संहिता बच्चों द्वारा एक्सेस किये जाने वाली संभावित ऑनलाइन सेवाओं के लिये एक डाटा सुरक्षा अभ्यास संहिता है। इस आंदोलन की अगुवाई करने वाले ‘5 राइट्स फाउंडेशन’ के अनुसार, ‘इसमें कंपनियों द्वारा बच्चों से संबंधित डाटा को एकत्र करने, साझा करने और उपयोग करने के तरीके को पूरी तरह से बदलने की क्षमता है। साथ ही, इसके तहत कंपनियों को डिफ़ॉल्ट रूप से बच्चों को उच्च स्तर की गोपनीयता सुरक्षा प्रदान करने की आवश्यकता होती है।
  • यह ऑनलाइन सेवाओं के लिये 15 मानक निर्धारित करता है, जिसमें ऐप्स, गेम, खिलौने और डिवाइस के साथ-साथ समाचार सेवाएँ भी शामिल हैं। जब तक सेवा प्रदाता यह साबित करने में सक्षम नहीं हो जाता कि बच्चे उक्त सेवा का उपयोग बिल्कुल नहीं करते हैं या उस सेवा तक बच्चों की पहुँच नहीं है, तब तक इस संहिता के अनुसार उसमें परिवर्तन करना आवश्यक है।

बच्चों के लिये ऑनलाइन खतरे

  • 5 राइट्स और रिवीलिंग रियलिटी के शोध के अनुसार, सोशल मीडिया प्रोफाइल बनाने के 24 घंटों के भीतर ही बच्चों को ग्राफिक (चित्रात्मक) सामग्री के साथ लक्षित किया जा रहा है। इसने डिजिटल सेवाओं के डिज़ाइन और बच्चों को ऑनलाइन माध्यम से होने वाले जोखिमों के बीच संबंध (Pathways) स्थापित किया है।
  • 5 राइट्स के अनुसार, ‘फेसबुक, इंस्टाग्राम और टिकटॉक जैसी सेवाएँ बच्चों को (जिनमें से कुछ की आयु 13 वर्ष से कम है) अकाउंट बनाने के 24 घंटों के भीतर हानिकारक सामग्री के साथ सीधे लक्षित करने की अनुमति दे रही हैं। बच्चों की उम्र जानने के बावजूद कंपनियाँ उन्हें वयस्क अजनबियों से अवांछित व असामाजिक संपर्क में सक्षम कर रही हैं और हानिकारक सामग्री प्रदर्शित कर रही हैं। इसमें भोजन विकार, चरम आहार, आत्म-घात और आत्महत्या के साथ-साथ कामुक और शरीर की  डरावनी छवियों से संबंधित सामग्री शामिल है।
  • भले ही इन सेवाओं की कल्पना बच्चों को जोखिम में डालने के इरादे से नहीं की गई हो किंतु किसी 'बग' या कोड में गलती के कारण भी ऐसा नहीं हो रहा है, न ही सेवा प्रदाता इससे अनजान हैं। एक तरह से ये 'बग' नहीं बल्कि विशेषताएँ हैं।
  • इन मंचों को लोगों से अधिक जुड़ाव, गतिविधियों को अधिकतम करने तथा फालोवर्स की संख्या बढ़ाने के लिये डिज़ाइन किया जाता हैं, जोकि राजस्व के तीन प्रमुख स्रोत हैं किंतु ये बच्चों के लिये सुरक्षित नहीं है। इनसे एकत्रित आँकड़ो के आधार पर विज्ञापनों को भी तैयार किया जाता है।

किस पर लागू होती है ये संहिता?

  • 5 राइट्स के अनुसार यह संहिता ऐप्स; प्रोग्राम; सर्च इंजन; सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म; ऑनलाइन संदेश सेवा या इंटरनेट आधारित वॉयस टेलीफोनी सेवाएं; ऑनलाइन मार्केटप्लेस; कंटेंट स्ट्रीमिंग सेवाएं (जैसे वीडियो, संगीत या गेमिंग सेवाएँ); ऑनलाइन गेम; समाचार या शैक्षिक वेबसाइट और इंटरनेट पर उपयोगकर्ताओं को अन्य वस्तु या सेवाएँ प्रदान करने वाली किसी भी वेबसाइट पर लागू होगी।
  • यह संहिता यू.के. आधारित कंपनियों और देश में बच्चों के डाटा का प्रयोग करने वाली गैर-यू.के. कंपनियों पर लागू होती है।

भारत में बच्चों पर प्रभाव 

  • इस संहिता की जड़ बाल अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन में निहित है, जो बच्चों को उनके जीवन के सभी पहलुओं में विशेष सुरक्षा उपायों की आवश्यकता पर बल देता है। यह डिजिटल वातावरण के संदर्भ में भी बाल अधिकारों की बात करता है।
  • यदि कंपनियाँ अपने सुरक्षा ढाँचे को सार्वभौमिक बनाती हैं, तो दुनिया भर के बच्चों को इस संहिता से लाभ होगा। हालाँकि, बाल अधिकार कार्यकर्ताओं का कहना है कि अब समय आ गया है कि भारत सरकार अपने सोशल मीडिया एजेंडे में बाल सुरक्षा को शामिल करे।
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