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सीमा-पार दिवाला प्रक्रिया संबंधी संयुक्त राष्ट्र मॉडल

मुख्य परीक्षा : सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र – 3 : भारतीय अर्थव्यवस्था तथा योजना, संसाधनों को जुटाने, प्रगति, विकास तथा रोज़गार से संबंधित विषय।

संदर्भ

‘कॉर्पोरेट मामलों के मंत्रालय’ (MCA) ने ‘दिवाला और दिवालियापन संहिता’ (IBC) के तहत ‘अंतर्राष्ट्रीय व्यापार कानून पर संयुक्त राष्ट्र आयोग मॉडल’ (UNCITRAL) के आधार पर सीमा-पार दिवाला कार्यवाही के लिये एक मसौदा प्रकाशित किया है।

सीमा-पार दिवाला कार्यवाही

विभिन्न न्यायालयों में अनेक कंपनियों की संकटग्रस्त परिसंपत्तियों के समाधान की ‘सीमा-पार दिवाला प्रक्रिया’ लंबित है। इस मसौदे में सीमा-पार दिवाला प्रक्रिया का प्रावधान किया गया है। इस प्रक्रिया के अंतर्गत ऐसी कंपनी की विदेशी संपत्ति, लेनदारों, उनके दावों की पहचान की जाएगी तथा उनका भुगतान किया जाएगा।

अंतर्राष्ट्रीय व्यापार कानून पर संयुक्त राष्ट्र आयोग (UNCITRAL) मॉडल

  • यह मॉडल सीमा-पार दिवाला मुद्दों से निपटने के लिये व्यापक रूप से स्वीकृत कानूनी ढाँचा प्रदान करता है। इसे ब्रिटेन, अमेरिका, दक्षिण अफ्रीका, दक्षिण कोरिया तथा सिंगापुर समेत 49 देशों में अपनाया गया है।
  • यह मॉडल किसी कंपनी के ‘मुख्य हित केंद्र’ (COMI) का भी प्रावधान करता है। कोई भी कंपनी अपने मुख्य हित केंद्र का निर्धारण अपने व्यवसाय संचालन के स्थान व इसके पंजीकृत कार्यालय के स्थान के आधार पर करती है।
  • विदेशी मामलों में कार्यवाही करने या राहत प्रदान करने का निर्णय घरेलू अदालतों के विवेक पर छोड़ दिया जाता है। ऐसे देश, जो भारतीय न्यायालयों के माध्यम से अपनी दिवाला कार्यवाही को मान्यता प्रदान करना चाहते हैं, उन्हें भारत में अपनाए गए सीमा-पार दिवाला ढाँचे के साथ सामंजस्य स्थापित करने की आवश्यकता हो सकती है।
  • यह विदेशी कॉर्पोरेट देनदारों पर भारत द्वारा की गई कार्यवाही को विदेशों में मान्यता प्रदान करेगा।

मॉडल कानून तथा भारतीय ढाँचे में अंतर

  • वे देश, जिन्होंने ‘अंतर्राष्ट्रीय व्यापार कानून पर संयुक्त राष्ट्र आयोग’ (UNCITRAL) मॉडल को अपनाया है, वे अपनी घरेलू आवश्यकताओं के अनुरूप इसमें कुछ बदलाव कर सकते हैं।
  • एम.सी.ए. की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत में वित्तीय सेवा प्रदाताओं को सीमा-पार दिवाला कार्यवाही से बाहर रखा गया है। कई देश ‘बैंकों व बीमा कंपनियों’ जैसी वित्तीय सेवाएँ प्रदाताओं को सीमा-पार दिवाला ढाँचे से छूट प्रदान करते हैं।
  • रिपोर्ट के अनुसार, ‘प्री-पैकेज़्ड दिवाला समाधान प्रक्रिया’ (PIRP) से गुजरने वाली कंपनियों को सीमा-पार दीवाला कार्यवाही से छूट दी जानी चाहिये।
  • ‘सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यमों’ (MSME) के त्वरित समाधान के लिये पी.आई.आर.पी. को इस वर्ष की शुरुआत में ‘दिवाला एवं दिवालियापन संहिता’ के तहत पेश किया गया था।

आई.बी.सी. के तहत विदेशी हितधारक और न्यायालय

  • यद्यपि विदेशी लेनदार किसी घरेलू कंपनी के विरुद्ध दावा कर सकते हैं, किंतु आई.बी.सी. अन्य देशों में किसी भी दिवाला कार्यवाही की स्वत: मान्यता की अनुमति नहीं देता है।
  • जब जेट एयरवेज मामले में एक कंपनी का विमान एक यूरोपीय कार्गो फर्म का बकाया भुगतान न करने के कारण एम्स्टर्डम में रोक दिया गया था, तो ‘नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल’ (NCLT) ने विदेशी न्यायालय के ‘घरेलू दिवाला कार्यवाही’ संबंधी किसी भी आदेश को मानने से इनकार कर दिया था क्योंकि आई.बी.सी. में इस हेतु कोई सक्षम प्रावधान नहीं था।
  • लेकिन ‘नेशनल कंपनी लॉ अपीलेट ट्रिब्यूनल’ (NCLAT) ने भारत को उस कंपनी के सी.ओ.एम.आई. के रूप में तथा डच कार्यवाही को ‘गैर-मुख्य दिवाला कार्यवाही’ के रूप में मान्यता दी थी। आई.बी.सी. के मौजूदा प्रावधान भारतीय न्यायालयों को यह अनुमति नहीं देते हैं कि वे किसी कंपनी की विदेशी संपत्ति के मुद्दे पर निर्णय दे सकें।
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