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ज़ूनोटिक रोग (Zoonotic Diseases) क्या है ? प्रमुख ज़ूनोटिक रोग,वर्गीकरण, कारण और प्रभाव

  • Zoonotic Diseases यानी जन्तुजन्य रोग ऐसे संक्रामक रोग हैं जो पशुओं से मनुष्यों में तथा कभी-कभी इसके विपरीत भी फैल सकते हैं।
  • 'Zoonotic' शब्द ग्रीक के 'Zoon' (जानवर) और 'Nosos' (बीमारी) से बना है। 
  • जब ये रोग मनुष्यों से पशुओं में फैलते हैं, तो इसे रिवर्स जूनोसिस या एन्थ्रोपोनोसिस कहा जाता है।
    WHO के अनुसार,
    • 60% से अधिक संक्रामक रोग ज़ूनोटिक उत्पत्ति के हैं।
    • 75% नए उभरते संक्रामक रोग (emerging infectious diseases) का स्रोत भी जानवर रहे हैं, जैसे: COVID-19, Nipah, Ebola आदि।

ये रोग मानव-वन्यजीव संपर्क, मांसाहार, पशुपालन, और पर्यावरणीय असंतुलन जैसे कारणों से तेजी से बढ़ रहे हैं।

हर वर्ष 6 जुलाई को 'विश्व पशुजन्य रोग दिवस' (World Zoonoses Day) मनाया जाता है। इस दिन को प्रसिद्ध वैज्ञानिक लुई पाश्चर की स्मृति में मनाया जाता है, जिन्होंने 6 जुलाई 1885 को रेबीज़ का पहला सफल टीका तैयार किया था। यह दिवस पशुजन्य रोगों के प्रति जागरूकता फैलाने और वैश्विक स्वास्थ्य नीति में पशुओं के महत्व को रेखांकित करने के लिए मनाया जाता है।

वर्गीकरण (Classification of Zoonotic Diseases)

रोगजनक (Pathogen) के आधार पर:

प्रकार

उदाहरण

वायरल

रेबीज, एवियन फ्लू, निपाह, स्वाइन फ्लू, COVID-19

बैक्टीरियल

ब्रुसेलोसिस, एंथ्रेक्स, साल्मोनेलोसिस, बोवाइन टीबी

फंगल (कवकीय)

रिंगवॉर्म, क्रिप्टोकॉकोसिस

प्रोटोजोआजनित

टॉक्सोप्लाज़मोसिस, लाइशमैनियासिस

परजीवीजनित

टेनियासिस, हाइडैटिड डिज़ीज

संक्रमण के मार्ग के आधार पर:

संक्रमण माध्यम

उदाहरण

प्रत्यक्ष संपर्क

रेबीज, एंथ्रेक्स (पशु के खून/लार से)

खाद्य/जल जनित

साल्मोनेलोसिस, ई. कोलाई

कृमि/कीट जनित

मलेरिया, लाइशमैनियासिस, जापानी इंसेफलाइटिस

एरोसोल/वातावरण

बर्ड फ्लू, COVID-19

पशु उत्पादों से

कच्चा दूध, अंडा, मांस – ब्रुसेलोसिस, टीबी

प्रमुख ज़ूनोटिक रोग (Major Zoonotic Diseases)

रोग

कारक

स्रोत पशु

रेबीज

Rabies virus

कुत्ता, बिल्ली, चमगादड़

ब्रुसेलोसिस

Brucella bacteria

गाय, भैंस, बकरी

एंथ्रेक्स

Bacillus anthracis

मवेशी, भेड़

निपाह वायरस

Nipah virus

चमगादड़, सुअर

एवियन फ्लू

H5N1, H7N9

मुर्गी, बत्तख

COVID-19

SARS-CoV-2

संभावित स्रोत: चमगादड़

स्वाइन फ्लू

H1N1 virus

सूअर

कारण (Causes of Rise in Zoonotic Diseases)

  • वन्यजीव व्यापार और मांस बाजारों का विस्तार
  • वनों की कटाई और मानव-वन्यजीव संपर्क में वृद्धि
  • औद्योगिक पशुपालन
  • अतिरिक्त एंटीबायोटिक उपयोग (AMR)
  • जलवायु परिवर्तन – कीटों की नई जगहों पर उपस्थिति
  • स्वास्थ्य सेवाओं की अपर्याप्तता
  • अनियंत्रित शहरीकरण

प्रभाव (Impacts of Zoonotic Diseases)

स्वास्थ्य प्रभाव:

  • महामारी और सार्वजनिक स्वास्थ्य संकट
  • बच्चों और वृद्धों में उच्च मृत्यु दर
  • कुपोषण, न्यूरोलॉजिकल और दीर्घकालिक प्रभाव

आर्थिक प्रभाव:

  • पशुधन हानि → दुग्ध और मांस उत्पादन में गिरावट
  • इलाज पर अत्यधिक खर्च
  • अंतर्राष्ट्रीय व्यापार (export/import) पर प्रतिबंध

सामाजिक प्रभाव:

  • पशुपालकों की आजीविका पर असर
  • समाज में भय, दहशत, और अफवाहें

इतिहास में प्रमुख जूनोटिक महामारियाँ

वर्ष / युग

रोग / महामारी

स्थान / क्षेत्र

541–542 ई.

जस्टिनियन प्लेग

रोमन साम्राज्य

1347

ब्लैक डेथ (Bubonic plague)

यूरोप

6वीं सदी

यलो फीवर

दक्षिण अमेरिका

1918

स्पेनिश फ्लू (H1N1)

वैश्विक (WW1 के दौरान)

2009

H1N1 स्वाइन फ्लू

वैश्विक

2014

इबोला वायरस

पश्चिम अफ्रीका

2016

ज़ीका वायरस

ब्राज़ील और दक्षिण अमेरिका

2019–वर्तमान

COVID-19

वैश्विक

रोकथाम और नियंत्रण (Prevention and Control)

उपाय

विवरण

वन हेल्थ दृष्टिकोण

मानव-पशु-पर्यावरण का समन्वयात्मक स्वास्थ्य दृष्टिकोण

टीकाकरण

रेबीज, ब्रुसेलोसिस, एवियन फ्लू आदि के विरुद्ध

साफ-सफाई और हाइजीन

पशु बाड़ों और खाद्य प्रसंस्करण में

सर्विलांस और रिपोर्टिंग

पशु व मनुष्यों दोनों में

पशु नियंत्रण

आवारा पशुओं की निगरानी, नसबंदी

स्वास्थ्य शिक्षा और जागरूकता

ग्रामीण व शहरी दोनों क्षेत्रों में

भारत की पहलें:-

  • राष्ट्रीय रेबीज नियंत्रण कार्यक्रम (NRCP)
  • ब्रुसेलोसिस नियंत्रण कार्यक्रम (Brucellosis Control Programme)
  • वन हेल्थ मिशन (2021)
    • विभिन्न मंत्रालयों के बीच समन्वय: स्वास्थ्य, पशुपालन, पर्यावरण
    • NCDC (राष्ट्रीय रोग नियंत्रण केंद्र) के तहत
  • लाइशमैनियासिस उन्मूलन कार्यक्रम
    • ज़ूनोटिक रोगों की बढ़ती घटनाएं आधुनिक जीवनशैली, पर्यावरणीय असंतुलन और जैव विविधता के क्षरण से जुड़ी हुई हैं। 
    • इनसे निपटने के लिए ‘वन हेल्थ दृष्टिकोण’ को नीति निर्माण, अनुसंधान, शिक्षा और जमीनी क्रियान्वयन में सम्मिलित करना अत्यंत आवश्यक है।
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