New
GS Foundation (P+M) - Delhi : 20th Nov., 11:30 AM Month End Sale offer UPTO 75% Off, Valid Till : 28th Nov., 2025 GS Foundation (P+M) - Prayagraj : 03rd Nov., 11:00 AM Month End Sale offer UPTO 75% Off, Valid Till : 28th Nov., 2025 GS Foundation (P+M) - Delhi : 20th Nov., 11:30 AM GS Foundation (P+M) - Prayagraj : 03rd Nov., 11:00 AM

समलैंगिक विवाह के लिए करना होगा इंतजार

मुख्य परीक्षा- सामान्य अध्ययन, पेपर-2

संदर्भ-

  • 17 अक्टूबर,2023 को सुप्रीम कोर्ट की एक संविधान पीठ ने एलजीबीटीक्यू+ अधिकार प्रचारकों को निराश करने वाले एक फैसले में सर्वसम्मति से समान-लिंग विवाह को कानूनी मान्यता देने की उनकी याचिका को खारिज कर दिया और ऐसे लोगों के लिए कानून बनाने का कार्य संसद पर छोड़ दिया।

मुख्य बिंदु-

  • संस्थागत सीमाओं का हवाला देते हुए भारत के मुख्य न्यायाधीश डी. वाई. चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति संजय किशन कौल, एस. रवींद्र भट, हिमा कोहली और पी.एस. नरसिम्हा की पांच-न्यायाधीशों की पीठ ने चार अलग-अलग फैसलों में विशेष प्रावधानों को रद्द करने या उनमें बदलाव करने से इनकार कर दिया। 
  • विशेष विवाह अधिनियम, 1954 (Special Marriage Act, 1954 (SMA) के अनुसार, अयोग्य लोगों के लिए विवाह का कोई अधिकार नहीं है और एक समान-लिंग वाला जोड़ा संविधान के तहत मौलिक अधिकार के रूप में इसका दावा नहीं कर सकता है।
  • पीठ ने समलैंगिक लोगों और उनकी सुरक्षा के लिए समान अधिकारों को मान्यता दी और यह सुनिश्चित करने के लिए जनता को संवेदनशील बनने का आह्वान किया कि उनके साथ भेदभाव न किया जाए।
  • सभी न्यायाधीश समलैंगिक जोड़ों के अधिकारों के दायरे को परिभाषित करने और स्पष्ट करने के उद्देश्य से केंद्र के वादे के अनुसार, कैबिनेट सचिव के अधीन गठित की जाने वाली समिति को कार्य सौंपने के बिंदु पर सहमत हुए।
  • पीठ इस बात पर एकमत थी कि विवाह एक वैधानिक अधिकार है, संविधान द्वारा गारंटीकृत मौलिक अधिकार नहीं है और इसलिए यह संसद और राज्य विधानसभाओं का विषय है।

समलैंगिक समुदाय के लिए बड़ा कानूनी धक्का-

  • सुप्रीम कोर्ट का समान लिंग के व्यक्तियों के बीच शादी को कानूनी मान्यता देने से इनकार करना, देश के समलैंगिक समुदाय के लिए बड़ा कानूनी धक्का है। 
  • हाल के वर्षों में कानून में हुई प्रगति और व्यक्तिगत अधिकारों के गहरे होते अर्थ को देखते हुए, व्यापक रूप से यह उम्मीद थी कि पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ‘विशेष विवाह अधिनियम’ की लिंग-निरपेक्ष व्याख्या करेगी, ताकि समान लिंग के लोगों को इसमें शामिल किया जा सके। 
  • समय के साथ, निजता, गरिमा और वैवाहिक पसंद के अधिकारों को समाहित करने के लिए संविधान के अनुच्छेद 21 का आयाम विस्तृत किया गया है। 
  • लेकिन, सर्वोच्च अदालत ने एक अतिरिक्त कदम उठाने से खुद को रोक लिया है, जिसकी जरूरत वैसे विवाहों या विवाह जैसे कानूनी बंधनों (सिविल यूनियन) की इजाजत देने के लिए थी, जो विपरीत-लिंगी नहीं हैं। 
  • सभी पांच न्यायाधीशों ने इस तरह का कानून बनाने का काम विधायिका पर छोड़ना उचित समझा। 
  • भारत के प्रधान न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ और जस्टिस संजय किशन कौल ने फैसला दिया है कि समलैंगिक जोड़ों को अपने यूनियन के लिए मान्यता हासिल करने का अधिकार है, लेकिन साथ ही विशेष विवाह अधिनियम के उस आशय के प्रावधानों में काट-छांट करने (रीड डाउन) से इनकार किया है। 
  • दूसरी तरफ, न्यायमूर्ति एस. रवींद्र भट्ट, हिमा कोहली और पी.एस. नरसिम्हा ने इस नजरिए को खारिज कर कहा कि कोई भी ऐसी मान्यता विधायिका द्वारा बनाये गये कानून पर ही आधारित हो सकती है। 
  • यानी, अदालत ने सरकार के इस दृष्टिकोण को स्वीकार किया है कि समलैंगिक शादियों को कानूनी बनाने का कोई भी कदम विधायिका के अधिकार-क्षेत्र में आयेगा।
  • यह निष्कर्ष निकालते हुए कि विवाह का अधिकार कोई मौलिक अधिकार नहीं है, अदालत ने इस उम्मीद को खारिज कर दिया है कि वह विवाह के मामले में समलैंगिक जोड़ों के साथ भेदभाव जारी रखने की इजाजत नहीं देगी। 
  • विवाह वास्तव में एक सामाजिक संस्था है और एक वैध विवाह के लिए अपनी कानूनी जरूरतें और शर्तें हैं। 
  • विवाह के जरिए सामाजिक और कानूनी वैधता हासिल करने का अधिकार व्यक्तिगत पसंद का मामला है जिसे संविधान से संरक्षण प्राप्त है, लेकिन शीर्ष अदालत अब भी इसे विधायिका द्वारा बनाये गये कानूनों की सीमाओं के अधीन ही मानती है। 
  • बहुमत इस नजरिए के पक्ष में नहीं है कि समलैंगिक जोड़ों को बच्चे गोद लेने का अधिकार है, लेकिन इस बात पर अल्पमत से सहमत है कि परालिंगी (ट्रांस) व्यक्तियों के विपरीत-लिंगी वैवाहिक संबंध में प्रवेश करने पर कोई रोक नहीं है।
  • न्यायाधीशों के बीच इस बात पर कोई असहमति नहीं है कि ऐसे समलैंगिक जोड़ों को साथ रहने और उत्पीड़न व धमकियों से मुक्त होने का अधिकार है। 
  • यह देखते हुए कि भारतीय आबादी का बड़ा हिस्सा समलैंगिक शादियों को कानूनी बनाये जाने का धार्मिक और सांस्कृतिक आधार पर विरोध कर सकता है, संसद द्वारा ऐसी कोई पहल किये जाने की संभावना बहुत कम है। 

प्रारंभिक परीक्षा के लिए प्रश्न-

प्रश्न- उच्चतम न्यायालय के संवैधानिक पीठ के लिए न्यूनतम कितने न्यायाधीशों की संख्या होनी चाहिए।

(a) 3

(b) 5

(c) 7

(d) 9

उत्तर- (b)

मुख्य परीक्षा के लिए प्रश्न- 

प्रश्न- सुप्रीम कोर्ट का समान लिंग के व्यक्तियों के बीच शादी को कानूनी मान्यता देने से इनकार करना, देश के समलैंगिक समुदाय के लिए बड़ा कानूनी धक्का है। समीक्षा कीजिए।

« »
  • SUN
  • MON
  • TUE
  • WED
  • THU
  • FRI
  • SAT
Have any Query?

Our support team will be happy to assist you!

OR
X