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विश्व धरोहर दिवस

(प्रारंभिक परीक्षा : समसामयिक घटनाक्रम, कला एवं संस्कृति)
(मुख्य परीक्षा, समान्य अध्ययन प्रश्नपत्र-1: भारतीय संस्कृति में प्राचीन काल से आधुनिक काल तक के कला के रूप, साहित्य एवं वास्तुकला के मुख्य पहलू, विश्व के इतिहास में 18वीं सदी तथा बाद की घटनाएँ)

संदर्भ 

प्रत्येक वर्ष 18 अप्रैल को ‘विश्व धरोहर दिवस’ (World Heritage Day) का आयोजन किया जाता है। 

विश्व धरोहर दिवस

  • परिचय : इसे अंतर्राष्ट्रीय स्मारक एवं पुरास्थल दिवस भी कहा जाता है। यह दिन मानव विरासत के सम्मान एवं सुरक्षा पर केंद्रित है। 
  • उद्देश्य : इसका उद्देश्य विश्वभर के ऐतिहासिक स्थलों, स्मारकों एवं सांस्कृतिक विरासतों के प्रति जागरूकता बढ़ाना तथा उनके संरक्षण के लिए कार्यरत संस्थाओं व व्यक्तियों को सम्मानित करना है।
  • वर्ष 2025 का विषय : ‘आपदाओं एवं संघर्षों से खतरे में धरोहर: ICOMOS की 60 वर्षों की कार्रवाइयों से तैयारियाँ एवं सीख’ (Heritage under Threat from Disasters and Conflicts: Preparedness and Learning from 60 years of ICOMOS Actions)
    • यह विषय प्राकृतिक आपदाओं एवं मानव जनित संघर्षों से धरोहरों को होने वाले खतरे तथा उससे निपटने की प्रभावी तैयारियों व रणनीतियों की आवश्यकता को रेखांकित करता है। 
  • आरंभ : इस दिवस की शुरुआत वर्ष 1982 में ICOMOS (अंतर्राष्ट्रीय स्मारक एवं स्थल परिषद) द्वारा की गई थी। 
    • वर्ष 1983 में यूनेस्को (UNESCO) ने इसे आधिकारिक रूप से मान्यता दी। 

धरोहर संरक्षण के प्रयास

विश्व धरोहर अभिसमय (The World Heritage Convention)

  • परिचय : यह वर्ष 1972 में यूनेस्को द्वारा अपनाया गया एक अंतर्राष्ट्रीय समझौता है। इसे औपचारिक रूप से विश्व सांस्कृतिक एवं प्राकृतिक विरासत संरक्षण अभिसमय कहा जाता है।
    • भारत ने वर्ष 1977 में इस समझौते को स्वीकार किया। 
  • उद्देश्य : इसका उद्देश्य दुनिया भर में ‘उत्कृष्ट सार्वभौमिक मूल्य’ वाले प्राकृतिक व सांस्कृतिक स्थलों की पहचान करना तथा उनका संरक्षण करना है।
  • कुल सूचीबद्ध धरोहर स्थल : इस समझौते के तहत अक्तूबर 2024 तक विश्व के कुल 1,223 विश्व धरोहर स्थल सूचीबद्ध हैं। इनमें 952 सांस्कृतिक, 231 प्राकृतिक एवं 40 मिश्रित हैं। 

भारत के सूचीबद्ध स्थल 

  • वर्ष 1983 में आगरा किला, ताजमहल, अजंता एवं एलोरा गुफाएँ विश्व धरोहर सूची में शामिल होने वाले पहले भारतीय स्थल बने। 
  • अक्तूबर 2024 तक इस सूची में भारत के कुल 43 विश्व धरोहर स्थल शामिल हैं। इसके अलावा 62 स्थल यूनेस्को की संभावित सूची (Tentative List) में हैं।
  • 2024 में शामिल स्थल : असम के मोइदम्स (अहोम वंश का माउंड-ब्यूरियल सिस्टम) को सांस्कृतिक धरोहर के रूप में सूचीबद्ध किया गया।

सरकारी प्रयास : धरोहरों की रक्षा में भारत की प्रतिबद्धता

भारत सरकार एवं संस्कृति मंत्रालय द्वारा ऐतिहासिक स्थलों व स्मारकों के संरक्षण के लिए विभिन्न प्रयास किए गए हैं-

  • प्राचीन वस्तुओं की वापसी : सरकार को वर्ष 1976 से 2024 तक विदेशों से 655 पुरावशेष पुनः प्राप्त हुए हैं जिनमें से 642 पुरावशेष वर्ष 2014 से पुनः प्राप्त हुए हैं।
  • अडॉप्ट अ हैरिटेज योजना : वर्ष 2017 में आरंभ और वर्ष 2023 में अद्यतन की गई इस योजना के तहत निजी-सार्वजनिक संस्थाएँ सांस्कृतिक स्थलों के संरक्षण में CSR फंड के माध्यम से भाग लेती हैं।
    • इस कार्यक्रम के तहत अब तक भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण एवं विभिन्न राज्यों के विभिन्न साझेदार संगठनों के बीच 21 समझौता ज्ञापनों पर हस्ताक्षर किए जा चुके हैं। 
  • राष्ट्रीय महत्व के स्मारकों का निर्माण : भारत में 3,697 प्राचीन स्मारकों एवं पुरातात्विक स्थलों को राष्ट्रीय महत्व का घोषित किया गया है।
  • विरासत स्थलों का पुनरुद्धार एवं पुनर्विकास : भारत ने संरक्षण एवं विकास परियोजनाओं के माध्यम से प्रमुख विरासत स्थलों को पुनर्जीवित किया है। इनमें शामिल हैं-
    • काशी विश्वनाथ कॉरिडोर (वाराणसी)
    • महाकाल लोक (उज्जैन)
    • कामाख्या कॉरिडोर (गुवाहाटी)
    • चारधाम परियोजना, सोमनाथ पुनर्निर्माण, कुरुक्षेत्र, अयोध्या एवं काशी के कायाकल्प कार्य
  • राष्ट्रीय स्मारक एवं पुरावशेष मिशन : इस मिशन के तहत अब तक 12.3 लाख प्राचीन वस्तुएँ और 11,406 धरोहर स्थल डिजिटल रूप से रिकॉर्ड किए गए हैं। 
  • भारतीय धरोहर डिजिटल स्पेस (IHDS) : इस पहल का उद्देश्य इमर्सिव टूल्स एवं अनुसंधान सहायता के माध्यम से भारत की सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित करने और प्रस्तुत करने के लिए डिजिटल प्रौद्योगिकी का उपयोग करना है।
  • साहित्यिक विरासत की मान्यता : वर्ष 2024 में रामचरितमानस, पंचतंत्र व सहृदयालोक-लोकन को यूनेस्को की मेमोरी ऑफ द वर्ल्ड एशिया-पैसिफिक रीजनल रजिस्टर (MOWCAP) में शामिल किया गया। 
    • रामचरितमानस, पंचतंत्र व सहृदयालोक-लोकन की रचना क्रमशः गोस्वामी तुलसीदास, विष्णु शर्मा एवं पं. आचार्य आनंदवर्धन ने की थी।
  • भारत का पहला पुरातात्विक अनुभवात्मक संग्रहालय : वर्ष 2025 में गुजरात के वडनगर में इसका उद्घाटन किया गया।
    • इसमें वडनगर के 2,500 वर्ष पुराने इतिहास को दर्शाया गया है जिसमें 5,000 से अधिक कलाकृतियाँ शामिल हैं। इनमें चीनी मिट्टी की वस्तुएँ, सिक्के, औजार एवं कंकाल के अवशेष शामिल हैं।
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