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सशस्त्र बलों में व्यभिचार और कानून

(प्रारंभिक परीक्षा : राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व की सामयिक घटनाएँ; मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र – 2, न्यायपालिका की संरचना, संगठन और कार्य) 

संदर्भ

हाल ही में, रक्षा मंत्रालय ने उच्चतम न्यायालय से अनुरोध किया कि व्यभिचार या परस्त्रीगमन को भारतीय दंड संहिता के तहत अपराध के दायरे से बाहर करने संबंधी उच्चतम न्यायालय के वर्ष 2018 के निर्णय को सशस्त्र बलों पर लागू न किया जाय। 

मुख्य बिंदु

  • रक्षा मंत्रालय के अनुसार सशस्त्र बलों से सम्बंधित नियमों के तहत व्यभिचार, अशोभनीय आचरण के रूप में कोर्ट मार्शल का एक आधार है और इसलिये सशस्त्र बलों को संविधान पीठ के वर्ष 2018 के फैसले के दायरे से बाहर रखा जान चाहिये।
  • मंत्रालय के अनुसार सेना के उन जवानों के मन में हमेशा एक चिंता बनी रहेगी, जो अपने परिवार से दूर काम कर रहे हैं
  • सरकार ने याचिका में कहा कि सेना, नौसेना और वायु सेना के कर्मचारी एक "विशिष्ट वर्ग" के हैं।वे विशेष कानूनों जैसे  सेना अधिनियम, नौसेना अधिनियम और वायु सेना अधिनियम द्वारा शासित होते हैं।
  • व्यभिचार एक अशोभनीय आचरण के रूप में इन तीनों अधिनियमों के तहत अनुशासन का उल्लंघन माना जाता था।इन विशेष कानूनों ने कर्मियों के मौलिक अधिकारों पर भी प्रतिबंध लगा दिया, जबकि वे विशिष्ट परिस्थितियों में काम करते हैं, जिसमें अत्यधिक अनुशासन की आवश्यकता होती है। 
  • तीनों कानूनों को संविधान के अनुच्छेद 33 द्वारा संरक्षित किया गया है, जो सरकार को सशस्त्र बलों के कर्मियों के मौलिक अधिकारों को संशोधित करने की अनुमति देता है।
  • अतः सशस्त्र बलों का मामला विशेष है, उन्हें भारतीय दंड संहिता की धारा में वर्ष 2018 किये गए परिवर्तन के दायरे में नहीं रखा जाना चाहिये जबकि सशस्त्र बलों के लिये पहले से ही विशेष कानून अधिनियमित हैं।
  • न्यायमूर्ति आर. ऍफ़. नरीमन और 2 अन्य न्यायधीशों की खंडपीठ ने केंद्र के इस आवेदन पर मूल जनहित याचिकाकर्ता जोसेफ शाइन व अन्य को नोटिस जारी करने के साथ ही पाँच सदस्यीय संवैधानिक पीठ गठित करने के लिये यह मामला प्रधान न्यायधीश ए. बोबड़े को अग्रेषित कर दिया है।
  • ध्यातव्य है कि वर्ष 2018 में ऐतिहासिक निर्णय सुनाते हुए उच्चतम न्यायालय की पाँच न्यायाधीशों की खंडपीठ ने सर्वसम्मति से स्त्री एवं और पुरुष के बीच विवाहोत्तर संबंधों से जुड़ी भारतीय दंड संहिता की धारा 497 को गैर संवैधानिक घोषित कर दिया था।
  • संविधान पीठ ने कहा था कि यह धारा असंवैधानिक है क्योंकि यह महिलाओं की वैयक्तिक स्थिति पर चोट पहुँचाती है। ‘महिलाएँ पतियों की जागीर’ नहीं हैं, उन्हें भी सामान अधिकार मिलना चाहिये। महिलाओं को समाज की इक्षा के अनुसार सोचने के लिये मजबूर नहीं किया जा सकता।
  • यद्यपि न्यायालय ने यह स्पष्ट किया था कि वैवाहिक विवादों में तलाक के लिये व्यभिचार एक आधार बना रहेगा।
  • न्यायालय ने यह भी स्पष्ट किया कि व्यभिचार किसी प्रकार का अपराध नहीं है, लेकिन अगर इस वजह से किसी के पति/पत्नी आत्महत्या कर लेते हैं तो इसे आत्महत्या के लिये उकसाने का मामला माना जा सकता है। 

धारा 497

  • भारतीय दंड संहिता, 1860 की धारा 497 के अनुसार “ यदि कोई पुरुष किसी अन्य शादी शुदा महिला के साथ आपसी रजामंदी से शारीरिक संबंध बनाता है तो उक्त महिला का पति एडल्टरी/व्यभिचार/परस्त्रीगमन के मामले में उस पुरुष के खिलाफ मामला दर्ज करा सकता है। हालांकि ऐसा व्यक्ति अपनी पत्नी के खिलाफ कार्रवाई नहीं कर सकता है और न ही विवाहेतर संबंध में लिप्त पुरुष की पत्नी इस दूसरी महिला के खिलाफ कोई कार्रवाई कर सकती है।
  • इस धारा के तहत यह भी प्रावधान है कि विवाहेतर सम्बन्ध में लिप्त पुरुष के खिलाफ केवल उसकी साथी महिला का पति ही शिकायत दर्ज कर कार्रवाई करा सकता है। किसी दुसरे रिश्तेदार अथवा करीबी की शिकायत पर ऐसे पुरुष के खिलाफ कोई शिकायत नहीं स्वीकार की जाएगी।
  • व्यभिचार के अपराध के लिये पुरुष को पाँच वर्ष की कैद या जुर्माना या दोनों हो सकते हैं।
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