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बजट और कुपोषण की समस्या

(प्रारंभिक परीक्षा- राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व की सामयिक घटनाएँ, आर्थिक और सामाजिक विकास)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 3 : सरकारी बजट, भारतीय अर्थव्यवस्था तथा योजना, संसाधनों को जुटाने, प्रगति, विकास तथा रोज़गार से संबंधित विषय)

संदर्भ

भूख की व्यापकता और खाद्य असुरक्षा एक प्रकार की आपातकालीन स्थिति को दर्शाता है, जिस पर पर्याप्त ध्यान नहीं दिया जा रहा है। केंद्रीय बजट में भी इसके लिये कोई महत्त्वपूर्ण उपाय नज़र नहीं आता है।

कुपोषण में वृद्धि

  • हाल ही में आंशिक रूप से जारी किये गए राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 के परिणामों से पता चलता है कि वर्ष 2019 में बाल कुपोषण का स्तर वर्ष 2016 की तुलना में अधिकांश राज्यों में अधिक था।
  • पिछले एक वर्ष में गरीब और श्रमिक वर्ग के परिवारों की आय में गिरावट ने इस स्थिति को और भी बदतर कर दिया है। डाटा बताते हैं कि कोविड-19 से पहले भी अधिकांश भारतीयों के लिये पौष्टिक आहार वहनीय नहीं थे।
  • अक्टूबर 2020 से दिसंबर 2020 के बीच हंगर वॉच द्वारा किये गए सर्वेक्षणों में शामिल लोगों में से दो-तिहाई लोगों के भोजन और आहार का स्तर अभी भी लॉकडाउन के पहले के स्तरों तक नहीं पहुँच पाया है।
  • कुपोषण में भोजन, स्वास्थ्य और देखभाल तक पहुँच के साथ कई अन्य निर्धारक भी होते हैं। कई वर्षों तक रोज़गार रहित संवृद्धि और ग्रामीण मजदूरी में स्थिरता के बाद आई इस वैश्विक महामारी व आर्थिक मंदी ने घरेलू खाद्य सुरक्षा को बहुत अधिक प्रभावित किया है।

आवंटन का आभाव

  • उल्लेखनीय है कि आंगनवाड़ी कार्यक्रम और मिड-डे मील जैसे प्रत्यक्ष पोषण कार्यक्रम बच्चों के साथ-साथ गर्भवती तथा स्तनपान कराने वाली महिलाओं के आहार में महत्त्वपूर्ण योगदान देते हैं। गौरतलब है कि महिला और बाल विकास मंत्रालय आंगनवाड़ी सेवाओं को कार्यान्वित करता है।
  • आंगनवाड़ी सेवाओं के लिये वर्ष 2020-21 का संशोधित अनुमान (₹17,252.3 करोड़) बजट अनुमान की तुलना में कम है और बजट अनुमान स्वयं ही पूर्वानुमानित माँग से कम था। इससे पता चलता है कि आंगनवाड़ी केंद्रों के बंद होने से आंगनवाड़ी सेवाएँ बुरी तरह प्रभावित हुई हैं और इस प्रकार पूरक पोषण के वितरण में अत्यधिक अंतराल हैं

वर्तमान बजट

  • वर्तमान बजट में विभिन्न योजनाओं को एक साथ जोड़ दिया गया है और आंगनवाड़ी सेवाएं अब ‘सक्षम आंगनवाड़ी और पोषण 0’ का हिस्सा हैं, जिसे ₹20,105 करोड़ का बजट आवंटित है। इन योजनाओं का कुल बजट आवंटन वर्ष 2020 में अधिक था।
  • वर्ष 2020-21 के लिये राष्ट्रीय पोषण मिशन के संशोधित अनुमानों के साथ महिला और बाल विकास मंत्रालय के दो अन्य महत्त्वपूर्ण पोषण संबंधी अभियानों के आवंटन में भी बड़ी कमी देखी गई है।
  • मातृत्व लाभ के लिये ‘प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना’ (गर्भवती महिलाओं के लिये ₹5,000 का नकद हस्तांतरण) के तहत ₹2,500 करोड़ के बजट अनुमान की तुलना में संशोधित अनुमान ₹1,300 करोड़ है।
  • वर्ष 2021-22 के लिये मध्याह्न भोजन योजना का आवंटन ₹11,500 करोड़ है, जो वर्ष 2020-21 के लिये संशोधित अनुमान ₹12,900 करोड़ से कम है। इस प्रकार कुपोषण के प्रसार के बावजूद पोषण संबंधी योजनाओं के लिये कई वर्षों से उचित आवंटन नहीं देखा जा रहा है।
  • अन्य सामाजिक सुरक्षा कार्यक्रम, जैसे- वृद्धावस्था, विधवा और विकलांगता पेंशन में भी पिछले वर्ष की तुलना में कोई वृद्धि नहीं देखी गई है, जो बेहतर पोषण में योगदान कर सकती हैं। यहाँ तक ​​कि प्रवासी श्रमिकों के लिये एक पोर्टल की स्थापना के अलावा किन्हीं विशेष उपायों की घोषणा नहीं की गई है। ‘वन नेशन, वन राशन योजना’ में भी अपेक्षित प्रगति नहीं देखी गई है और इसकी जटिलताएँ बरक़रार हैं।

खाद्य सब्सिडी और स्वास्थ्य

  • ऐसा प्रतीत होता है कि खाद्य सब्सिडी में तीन गुना से अधिक की वृद्धि हुई है परंतु इसका तात्पर्य यह नहीं है कि रियायती दर पर अनाजों का अधिक वितरण किया जाएगा। यह केवल उस बजटीय सुधार को दर्शाता है, जहाँ सरकार भारतीय खाद्य निगम (FCI) को ऋण के लिये मजबूर करने के बजाय बकाया राशि का भुगतान कर रही है। विदित है कि 31 दिसंबर, 2020 तक कुल एफ.सी.आई. ऋण ₹7 लाख करोड़ था।
  • वित्त वर्ष 2021-22 (₹20 2.4 लाख करोड़) के लिये खाद्य सब्सिडी का आवंटन पिछले वर्ष के बजट अनुमान से अधिक है, जो राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम के अधिकारों की आवश्यकता के संदर्भ में अधिक यथार्थवादी है। हालाँकि, विस्तारित या सार्वभौमिक पी.डी.एस. के लिये कोई प्रावधान नहीं है।
  • स्वास्थ्य बजट में भी वृद्धि की बात की गई है परंतु यह द्रष्टव्य है कि कोविड-19 वैक्सीन के लिये अत्यधिक आवंटन किया गया है जोकि एक बारगी खर्च है और यह स्वास्थ्य प्रणाली को मजबूत बनाने में बहुत योगदान नहीं करता है। कुल मिलाकर भूख की समस्या को संबोधित करने या माँग को प्रोत्साहित करने के दृष्टिकोण से इस बजट के प्रभाव को देखने की आवश्यकता है।
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