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भारत में पर्यावरण की दशा और सरकार का प्रयास

( मुख्य परीक्षा,प्रश्नपत्र 4- संरक्षण,पर्यावरण प्रदूषण और क्षरण,पर्यावरण ब्रभाव का आंकलन)  

संदर्भ

  • वर्ष 1991 में जब आर्थिक सुधार की रूपरेखा प्रस्तुत की गई थी तब यह आशा थी कि भविष्य में इन सुधारों के माध्यम से भारत वैश्विक महाशक्ति बन सकता है। किंतु तीव्र आर्थिक विकास के साथ पर्यावरण संतुलन स्थापित करना, चिंता का मुख्य विषय था।
  • जब यह विषय गंभीर चर्चा का केंद्र बिंदु बन गया तो तीव्र आर्थिक विकास के साथ पर्यावरण संतुलन के मुद्दे पर जवाब देते हुए सरकार ने कहा था,यदि आर्थिक विकास के माध्यम से हमारे पास पर्याप्त धन होगा तो हम पारिस्थितिकीय उद्देश्य को पूरा करने के लिये पर्याप्त धनराशि की व्यवस्था कर पाएंगें।
  • वर्तमान में भारत आर्थिक मोर्चे पर लगातार अपने कदम आगे बढ़ा रहा है, परंतु पर्यावरण हित पीछे छूटते जा रहे हैं।

पर्यावरण असंतुलन से उत्पन्न समस्या

  • पर्यावरण असंतुलन से वैश्विक तापन में वृद्धि हो रही है, जिसके परिणामस्वरुप ग्लेशियर लगातार पिघल रहे हैं, जिससे भविष्य में जल संकट उत्पन्न हो सकता है। भारत के कई राज्य जल संकट से जूझ रहे हैं जैसे,महाराष्ट्र कर्नाटक आदि।
  • प्राकृतिक आपदा की बारंबारता के कारण आम-जनजीवन को काफी नुकसान उठाना पड़ रहा है। हाल में, उत्तराखंड ग्लेशियर का टूटना इसका ज्वलंत उदाहरण है।
  • समुद्र तल के बढ़ने के कारण तटवर्ती क्षेत्र तथा छोटे –छोटे द्वीपों के डूब जाने का डर भी बना हुआ है।
  • पर्यावरण असंतुलन से की वजह से कई प्रजाति के पशु,पक्षी एवं जीव विलुप्त हो चुके हैं, इसके अलावा कई जीवों एवं पशुओं के आवास को क्षति पहुँची है।
  • रासायनिक कीटनाशकों के उपयोग से मिट्टी की गुणवत्ता में लगातार कमी हो रही है इसका प्रभाव कृषि उत्पादन पर पड़ रहा है। कृषि उत्पादन में कमी तथा बढ़ती जनसंख्या दोनों के कारण उत्पन्न असंतुलन सामाजिक तनाव को बढ़ा सकता है। तथा भविष्य में इस वजह से मानवजाति का अस्तित्व भी खतरे में पड़ सकता है।

कहाँ चूक रही है सरकार?

  • यदि सरकार पर्यावरण संतुलन के लिये पर्याप्त धन उपलब्ध करवा दे फिर भी पारिस्थितिकीय नुकसान की क्षतिपूर्ति नहीं कर पायेगी, जैसे कि एक बाँध के नीचे डूबे वर्षावन को दुबारा प्राप्त नहीं किया जा सकता।
  • पिछले कई वर्षों से पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के बजट में लगातार कमी की जा रही है, इसके बाद भी जो राशि आवंटित की गई (उदहारण के रूप में गंगा निर्मल अभियान तथा अन्य योजनाओं पर) उनमें व्याप्त भ्रष्टाचार ने सरकार द्वारा की जा सकने वाली पर्यावरण सहायता को न्यून बना दिया है।
  • लगातार बढ़ता प्रदूषण, जैवविविधता की हानि, वन घनत्व में कमी तथा आर्द्र भूमि का नष्ट होना नीति निर्माताओं की असफलता को दर्शाता है।
  • निजी क्षेत्र की जवाबदेही तथा भागीदारी को भी उसी तरह सुनिश्चित नहीं किया गया, जैसे दिशा निर्देश का पालन किसी सरकारी संस्थान को करना पड़ता है।
  • गहरे समुद्र में संसाधनों के दोहन के लिये कई प्रोजेक्ट चलाये जा रहे हैं , जो की समुद्री पारिस्थितिकी को काफी नुकसान पहुँचा रहे हैं। जिन संस्थानों को समुद्री जैवविविधता को संरक्षित करने की ज़िम्मेदारी दी गई है (जैसे पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय, भारतीय अंतरिक्ष अनुसन्धान संगठन,रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन,परमाणु ऊर्जा विभाग, वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद्, जैव प्रौद्योगिकी विभाग और भारतीय नौसेना आदि) उनमें से किसी के पास समुद्री विशेषज्ञता नहीं है, इसलिये इस मुद्दे पर ध्यान देना आवश्यक है।
  • वर्तमान में 11,000 km से अधिक के राष्ट्रीय राजमार्ग कॉरिडोर की योजना और हिमालय क्षेत्र में बन रहे डैम स्थानीय स्तर की पारिस्थितिकीय को नुकसान पहुँचा रहे हैं। बजट में विकास के नाम पर इस प्रकार का व्यय पर्यावरण को चिंताजनक स्थिति में डाल रहा है।
  • राष्ट्रीय प्रदूषण नियंत्रण कार्यक्रम के अंतर्गत ग्रीन इंडिया मिशन, 2030 तक 10 मिलियन हेक्टेयर वृक्ष लगाने की योजना का कार्यान्वयन चल रहा है। लेकिन इतने कम बजट से यह लक्ष्य पूरा हो सकेगा, इसमें संदेह है।
  • 12 हिमालयी राज्यों को इस बजट में ग्रीन बोनस नहीं प्रदान किया गया जिसकी मांग इन राज्यों द्वारा पिछले वर्ष से की जा रही है।

बजट 2021 में पर्यावरण पर सरकार के कदम 

  • पर्यावरण मंत्रालय को 42 नगरीय केन्द्रों में वायु प्रदुषण को कम करने के लिये पिछले बजट की तुलना में 8 प्रतिशत अधिक धनराशि प्रदान की गई है। इस बार के बजट में पहली बार वायु गुणवत्ता प्रबंधन हेतु वैधानिक निकाय आयोग को बनाए जाने का प्रावधान किया गया है।
  • यद्यपि कि जलवायु परिवर्तन एक्शन प्लान और प्रोजेक्ट टाइगर के लिये धन आवंटन को कम किया गया है।
  • राष्ट्रीय तटीय मिशन को लगभग दोगुना धनराशि दी गई है जिसके अंतर्गत पर्यावरण मंत्रालय को तटीय समुदाय खासकर परंपरागत मछुआरों की सुरक्षा सुनिश्चित करनी होगी।
  • बजट में प्रोजेक्ट हाथी के अतिरिक्त राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण जिसकी ज़िम्मेदारी बाघों एवं जंगली बिल्ली को बचाना है,इनके भी बजटीय धन आवंटन में कमी की गई है।
  • ग्रीन इंडिया मिशन में पिछले वर्ष की तुलना में इस वर्ष कम पैसे दिये गए हैं लेकिन पर्यावरण प्रदूषण को रोकने हेतु धन का आवंटन पिछले वर्ष की तुलना में अधिक है।

आगे कि राह

  • विलासितापूर्ण आधारभूत संरचना (luxury infrastructure) की जगह पर पर्यावरण हितैषी संरचना पर ध्यान दिया जाय।
  • बजट में पेयजल के लिये लंबी पाइपलाइन, डैम आदि योजना पर धन व्यय करने की बजाय नगरीय क्षेत्र में बड़े जलाशय का निर्माण ,वर्षाजल को संचित करना , नगरीय आर्द्र भूमि को बचाकर बेहतर परिणाम प्राप्त किया जा सकते हैं।
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