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यूरोपीय न्यायालय और जर्मनी

(प्रारम्भिक परीक्षा: राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व की सामयिक घटनाएँ)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन, प्रश्नपत्र- 2: भारतीय संवैधानिक योजना की अन्य देशों के साथ तुलना, महत्त्वपूर्ण अंतर्राष्ट्रीय संस्थान)

चर्चा में क्यों?

जर्मनी के संवैधानिक न्यायालय ने यूरोपीय न्यायालय (European Court of Justice- ECJ) के एक पुराने निर्णय की वैधता पर सवाल उठाया है।

यूरोपीय न्यायालय

  • ई.सी.जे. यूरोपीय संघ से जुड़े कानूनी विवादों के निस्तारण हेतु यूरोपीय संघ का सर्वोच्च न्यायालय है। यह यूरोपीय संघ न्यायालय (Court of Justice of the European Union- CJEU) का एक अंग है। सी.जे.ई.यू. में दो अलग-अलग न्यायालय हैं- यूरोपीय न्यायालय और यूरोपीय जनरल कोर्ट (EGC)।
  • ई.सी.जे. की स्थापना पेरिस संधि के बाद वर्ष 1952 में हुई थी। यह लक्ज़मबर्ग में स्थित है। इस न्यायालय में प्रत्येक सदस्य देश से एक-एक न्यायाधीश होता है। वर्तमान में इसमें 27 सदस्य है। सामान्यतः इस न्यायालय द्वारा मामलों की सुनवाई 3, 5 या 15 न्यायाधीशों के पैनल द्वारा की जाती है।
  • वस्तुतः ई.सी.जे. यह सुनिश्चित करता है कि यूरोपीय संघ के कानून की सही व्याख्या होने के साथ-साथ संघ के प्रत्येक सदस्य देश में इसे समान रूप से लागू किया जाए। इसके अतिरिक्त, यह न्यायालय यूरोपीय संघ के देशों व संस्थानों द्वारा कानूनों का पालन किया जान सुनिश्चित करता है।
  • यह राष्ट्रीय सरकारों और यूरोपीय संघ के संस्थानों के बीच कानूनी विवादों का निपटारा करता है।
  • सोपान क्रम में, सदस्य देशों के राष्ट्रीय न्यायालय यूरोपीय संघ के कानून के मामलों में ई.सी.जे. से नीचे हैं।

ई.सी.जे. का वर्ष 2018 का निर्णय

  • वर्ष 2018 में, ई.सी.जे. ने निर्णय दिया था कि यूरोपीय संघ के नियमों के अनुसार यूरोपीय केंद्रीय बैंक (European Central Bank- ECB) से € 2 ट्रिलियन (यूरो) के बॉन्ड खरीदने की योजना कानूनी थी।
  • यह योजना कई वर्षों के यूरोपीय ऋण संकट के बाद यूरोपीय संघ की अर्थव्यवस्था को मज़बूत करने के उद्देश्य से बनाई गई है।

जर्मन न्यायालय का निर्णय

  • जर्मनी में, इस योजना के विरोधियों द्वारा देश की सर्वोच्च संस्था जर्मन संवैधानिक न्यायालय में इसकी शिकायत की गई थी। जर्मन न्यायालय ने वर्ष 2017 में इस योजना के कुछ हिस्सों पर चिंता व्यक्त की थी।
  • जर्मन न्यायालय ने निर्णय दिया कि ई.सी.जे. का वर्ष 2018 का निर्णय अधिकारातीत (Ultra Vires) था। इसका तात्त्पर्य है कि ई.सी.जे. का निर्णय कानूनी अधिकार से परे था। साथ ही, ई.सी.जे. ने यह भी स्पष्ट नहीं किया कि यूरोपीय केंद्रीय बैंक की योजना यूरोपीय संघ की अर्थव्यवस्था के लिये उचित रूप से अनुकूल थी या नहीं।
  • इसके अतिरिक्त, ई.सी.जे. का निर्णय यूरोपीय संघ और उसके सदस्य राज्यों के बीच प्रतिस्पर्धा के विभाजन पर लागू आनुपातिकता सिद्धांत के महत्त्व पर विचार करने में विफल रहा है।
  • जर्मन न्यायालय ने अब ई.सी.बी. को यह सिद्ध करने के लिये तीन महीने का समय दिया है कि बॉन्ड खरीदने की योजना यूरोपीय संघ की वास्तविक ज़रूरतों के अनुरूप थी।

यूरोपीय आयोग की प्रतिक्रिया

  • जर्मन न्यायालय के निर्णय के बाद, यूरोपीय आयोग (EC) ने ई.सी.जे. की सर्वोच्चता को रेखांकित किया है। आयोग ने कहा कि जर्मन न्यायालय के निर्णय के विश्लेषण के बावजूद, वे यूरोपीय संघ के कानूनों की प्रधानता और प्राथमिकता की पुष्टि करते हैं।
  • इसके अलावा, यूरोपीय आयोग ने इस बात पर भी ज़ोर दिया कि ई.सी.जे. का निर्णय सभी सदस्य देशों के राष्ट्रीय न्यायालयों के लिये बाध्यकारी है।

निर्णय का महत्त्व

  • विशेषज्ञों का कहना है की जर्मन न्यायालय द्वारा दिया गया निर्णय यूरो-संशयवादियों को खुश करने वाला था। साथ ही, यह उन सरकारों का भी प्रतिनिधित्व करता है जो यूरोपीय संघ में अधिक दखल दे रही हैं। उदाहरण के तौर पर, पोलैंड ने कहा कि जर्मन न्यायालय का निर्णय उसके लिये अत्यधिक महत्त्व रखता है।
  • आलोचकों का कहना है कि जर्मन न्यायालय द्वारा दिया गया निर्णय 27 सदस्यीय संगठन की कानूनी नींव पर आघात की तरह है। इससे दो न्यायालयों के मध्य शक्ति संघर्ष, यूरोपीय संघ की संधियों व समझौतों के पुनर्लेखन की मांग को बढ़ावा देगा, यह स्वयं में एक अत्यधिक विवादास्पद प्रक्रिया है।
  • कुछ अर्थशास्त्रियों ने जर्मन और यूरोपीय संघ दोनों अदालतों के न्यायाधीशों की मौद्रिक नीति की समझ पर भी प्रश्नचिन्ह लगाया है।
  • विशेषज्ञों का मानना ​​है कि पोलैंड और हंगरी की राष्ट्रीय स्तर की सर्वोच्च अदालतें यूरोपीय संघ के न्यायालय के आदेशों को चुनौती देने में जर्मनी द्वारा निर्धारित मिसाल का अनुसरण करेंगी।
  • ऐसी प्रवृत्ति यूरोपीय संघ की साझी सम्प्रभुता और एकता को कमज़ोर कर सकती है। इससे यूरोपीय संघ की आंतरिक चुनौतियों में वृद्धि के साथ-साथ आम सहमति में भी कमी आएगी।
  • इससे यूरोपीय संघ में पूर्वी यूरोप के देशों को शामिल करने में चुनौती आने के साथ-साथ ब्रेक्ज़िट (Brexit) सम्बंधी वार्ता में समस्या आएगी। इसके अलावा, कोविड-19 के कारण यूरोज़ोन के सदस्य देशों में आए वित्तीय संकट के प्रभाव में भी वृद्धि होगी।
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